चीन पर हावी हो रही भारत की आक्रामकता, क्या सता रहा अक्साई चिन के छिन जाने का डर!
चीन बीते कुछ दिनों से कश्मीर पर पाकिस्तान की भाषा बोल रहा है। उसकी इस बौखलाहट के पीछे जो वजह है वह किसी से छिपी नहीं है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कश्मीर मसले पर चीन और भारत के बीच मतभेद अब खुलकर सामने आ गए हैं। भारत ने भी साफ कर दिया है कि इस मामले में चीन की नाराजगी के कोई मायने नहीं हैं। इतना ही नहीं भारत ने अपने आक्रामक रुख से यह बात भी बेहद साफ कर दी है कि वह इस मसले में किसी भी दूसरे देश की दखल को बर्दाश्त नहीं करेगा। भारत के इस आक्रामक रुख से कहीं न कहीं चीन को इस बात का अंदाजा हो गया है कि यहां पर अब उसकी दाल नहीं गलने वाली है। इतना ही नहींं चीन को कहीं न कहीं इस बात का भी डर सताता दिखाई दे रहा है कि भारत की मौजूदा सरकार पीओके को लेकर जितनी आक्रामक है, उतनी ही आक्रामक अक्साई चिन को भी भारत में शामिल करने पर है। इस बात को खुद देश के गृहमंत्री अमित शाह संसद में कह चुके हैं।
केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू कश्मीर और लद्दाख
कश्मीर को लेकर चीन जिस तरह से बौखलाया हुआ है उससे इस संभावना को बल भी मिल रहा है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले जब चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग भारत के दौरे पर आए थे उस वक्त उन्होंने कहा था कि भारत और चीन विवादित मुद्दों को दोनों देशों के बीच संबंधों को खराब करने का जरिया नहीं बनने देंगे। इस दौरे में कश्मीर का मुद्दा भी नहीं उठा था। लेकिन, बीते तीन दिनों में चीन कश्मीर को लेकर लगातार बयानबाजी कर रहा है। हद तो तब हो गई जब गुरुवार को जम्मू कश्मीर और लद्दाख में नवनियुक्त उपराज्यपालों ने अपना पदभार ग्रहण किया। इसके साथ ही दोनों राज्यों ने बतौर केंद्र शासित प्रदेश काम करना शुरू कर दिया है।
बौखलाहट के पीछे की वजह
अब जरा हम आपको चीन की इस बौखलाहट के पीछे की वजह के बारे में भी जानकारी दे देते हैं। दरअसल,, वर्ष 2014 से ही केंद्र सरकार की तरफ से यह बात साफ की जा चुकी है कि भारत-पाकिस्तान से, कश्मीर का मुद्दा सुलझाने के लिए वार्ता को तैयार है, लेकिन, यह बातचीत केवल पीओके या गुलाम कश्मीर को लेकर ही होगी। आपको बता दें कि अगस्त में देश के गृहमंत्री अमित शाह ने देश की संसद में कहा था कि जब भारत जम्मू कश्मीर की बात करता है तो इसके अंदर गुलाम कश्मीर और अक्साई चिन भी आता है, जिस पर चीन ने अवैध कब्जा किया हुआ है।
चीन को सताने लगा है डर
चीन भविष्य की उस आहट से डरा हुआ है जिसमें भारत पीओके या गुलाम कश्मीर को अपनी सीमा में शामिल करने की कवायद कर सकता है। इस तरह की बात कई बार सरकार के मंत्रियों, भाजपा नेताओं और आर्मी चीफ की तरफ से भी की जाती रही है कि सेना को सिर्फ सरकार से इजाजत का इंतजार है। चीन के लिए समस्या केवल भारत से दिए जाने वाले जवाब को लेकर ही नहीं हो रही है बल्कि इस वजह से भी है क्योंकि उसने अरबों डॉलर का निवेश पाकिस्तान में किया हुआ है। इस निवेश की शुरुआत का अहम पड़ाव सीपैक है जो गुलाम कश्मीर की सीमा में ही आता है। इसको लेकर भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी नाराजगी दर्ज भी करवाई थी।
गुलाम कश्मीर
आपको बता दें कि पाकिस्तान ने अपनी आजादी के कुछ समय बाद ही कश्मीर पर हमला कर दिया था। इसमें काफी संख्या में कबाइली थी और उनका साथ पाकिस्तान की सेना दे रही थी। महाराजा हरि सिंह द्वारा जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के बाद वहां पर भारतीय सेना भेजी थी। यहां पर चली आमने सामन की लड़ाई के बाद पाकिस्तान की सेना और कबाइलियों ने अपने कदम वापस खींच लिए थे, लेकिन तभी से इसका कुछ इलाका पाकिस्तान के कब्जे में है। वर्तमान में 13297 वर्ग किमी का इलाका गुलाम कश्मीर कहलाता है। इसकी सीमाएं गिलिगिट बाल्टिस्तान से लेकर पंजाब तक लगती हैं। पश्चिम में इसकी खैबर पख्तून्ख्वां से मिलती है।
अक्साई चिन
वहीं अक्साई चिन वर्तमान में झिंजियांग उइगर ऑटोनॉमस रीजन का हिस्सा है। यह होटन काउंटी का एक बड़ा हिस्सा है। 37244 वर्ग किमी में फैले अक्साई चिन को लेकर चीन लगातार दुनिया के सामने झूठ का पुलिंदा पेश करता रहा है। यह पूरा इलाका जम्मू कश्मीर के कुल क्षेत्र का करीब 15 फीसद है, जिस पर चीन ने वर्षों से अवैध कब्जा किया हुआ है। समुद्र तल से अक्साई चिन की ऊंचाई लगभग 14 हजार फीट से लेकर 24 हजार फीट तक है। यह साल्ट फ्लैट का एक विशाल रेगिस्तान है। चीन ने इस पर 1950 में अवैध कब्जा किया था और बाद में इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक जिले का हिस्सा बना दिया। काश्गर में ही चीन की वायुसेना का एयरबेस भी है।
शक्सगाम वैली
चीन की बौखलाहट की एक वजह में शक्सगाम वैली का वो हिस्सा भी है, जिसको पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया था। यह इस लिहाज से भी बेहद खास है क्योंकि यहां से ही चीन और पाकिस्तान के बीच बनने वाला कॉरिडोर निकलता है। यह पूरा इलाका करीब 7 हजार वर्ग किमी में फैला है। इसी क्षेत्र में कराकोरम भी है। कभी यहां पर चीन के होतन प्रांत से वहां के रईस पोलो खेलने आते थे। 1963 में पाकिस्तान ने इसको चीन को सौंप दिया था। इसके दक्षिण पूर्व में सियाचिन है।
गिलगिट बाल्टिस्तान
72971 वर्ग किमी में फैले गिलगिट बाल्टिस्तान का भी इससे ताल्लुक है। यहां पर करोकोरम पर्वतश्रंख्ला। यह पूरा इलाका छोटी बड़ी पहाडि़यों से पटा हुआ है। यहां पर मौजूद करीब पांच हजार चोटियां ऐसी हैं जो सात हजार मीटर से भी ऊंची हैं। यहां पर दो लाख से अधिक की आबादी है। यह गुलाम कश्मीर के मुकाबले करीब छह गुणा बड़ा है। इस इलाके पर वर्षों से चीन की निगाह है। इसकी वजह है यहां पर मौजूद प्राकृतिक संसाधन।स्कर्दू यहां का सबसे बड़ा शहर है। इस पर अवैध कब्जे के बाद वर्ष 1970 में पाकिस्तान ने इस पूरे क्षेत्र को नॉर्दन एरिया का नाम दिया था।
सीपैक पर खरबों का निवेश नाॉॉ
सीपैक पर चीन 62 बिलियन डॉलर का निवेश कर रहा है। यह निवेश केवल यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके जरिए चीन पाकिस्तान के ग्वादर तक पांव पसार रहा है। इतने बड़े पैमाने पर निवेश के मायने कम लागत में अफ्रीका और पश्चिमी देशों में अपने सामान को पहुंचाना है। आपको बता दें इस प्रोजेक्ट से पहले चीन को अपना सामान विदेशी बाजारों में बेचने के लिए बहुत लंबा रास्ता तय करना पड़ता था। वहीं चीन की भौगोलिक परिस्थिति की वजह से इसके पश्चिम उसके पास कोई बंदरगाह नहीं था। ग्वादर तक उसकी पहुंच होने के बाद उसको यह सहुलियत मिल गई है कि वह पश्चिम में अपने सामान को भेज सकता है। ऐसे में यदि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर या गुलाम कश्मीर में भारत कोई कदम आगे बढ़ाता है तो चीन का अरबोंं डॉलर का निवेश जाहिरतौर पर बाधित हो जाएगा। यह हालात चीन के पक्ष में नहीं होंगे।
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