जानें, क्यों दक्षिण भारत के अभिनेता ही बनते हैं सुपर हिट राजनेता
ऐसे कई उदाहरण आपके सामने है वह चाहे एमजी राचंद्रन की बात हो या फिर हाल में निधन हुआ तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता की हो।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। फिल्मी दुनिया की अगर बात करें तो जितना नाम और शोहरत दक्षिण भारत के अभिनाताओं को राजनीति में आने के बाद मिली है वैसी कामयाबी बालीवुड छोड़कर राजनीति में आए उत्तर भारत के कलाकारों को शायद ही मिली हो। ऐसे कई उदाहरण आपके सामने है वह चाहे एमजी राचंद्रन की बात हो या फिर हाल में निधन हुआ तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता की।
रजनीकांत की राजनीति में एंट्री!
यह बात यहां इसलिए की जा रही है क्योंकि दक्षिण भारतीय फिल्मों में अपनी कला का लोहा मनवा चुके रजनीकांत ने राजनीति में आने के संकेत दिए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि रजनीकांत किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ने की बजाय खुद तमिलनाडु में अपनी नई पार्टी की घोषणा कर सकते हैं। कर्नाटक से तमिलनाडु में आकर बसे रजनीकांत ने फिल्मी दुनिया में जो शोहरत हासिल की है उसके बाद राजनीति में आने के संकेत मात्र से वहां की राजनीति में हलचल मच गई है।
अब आईये आपको बताते हैं उन दक्षिण और उत्तर भारतीय कलाकारों के बारे में जिनका बड़े पर्दें से लेकर राजनीति तक जलवा कायम रहा। दक्षिण की तरह मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के सितारे भी इसमें पीछे नहीं हैं, हालांकि इन लोगों को फिल्म सरीखी लोकप्रियता राजनीति में नहीं हासिल हो सकी।
मरुथर गोपालन रामचंद्रन (एमजीआर) :
तमिल फिल्मों के सुपर सितारे, निर्माता व निर्देशक एमजीआर ने डीएमके के साथ अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत की। 1972 में डीएमके को छोड़कर उन्होंने अपनी पार्टी एआइएडीएमके का गठन किया। 1977 के चुनावों में भारी बहुमत से जीतने के बाद वह तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। वह मुख्यमंत्री बनने वाले पहले फिल्मी सितारे थे। इसके बाद वह दो बार और मुख्यमंत्री बने और 1987 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे।
एनटी रामाराव :
तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े सितारे एनटी रामाराव ने 1949 में अपने फिल्मी दौर की शुरुआत की। कृष्ण और राम की भूमिकाओं के चलते वे लोगों के बीच देवतातुल्य माने जाने लगे। लंबे व सफल फिल्मी करियर के बाद 1982 में उन्होंने तेलुगु देसम पार्टी बनाई और तीन बार मुख्यमंत्री का पद संभाला। 18 जनवरी, 1996 को उनकी मृत्यु हो गई।
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जे जयललिता :
तमिल फिल्मों की सफल अभिनेत्री रहीं। 1982 में एमजीआर के मुख्यमंत्री रहते वे उनकी पार्टी एआइएडीएमके से जुड़ीं और जल्द ही राज्यसभा की सदस्य बनीं। 1987 में एमजीआर की मौत के बाद उन्होंने पार्टी की कमान अपने हाथ में ली और 1991 चुनावों में जीत दर्ज करके मुख्यमंत्री बनीं। पांच बार मुख्यमंत्री पद संभाला। 5 दिसंबर, 2016 को उनकी मौत हो गई।
चिरंजीवी :
तेलुगु फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता चिरंजीवी ने 2008 में प्रजा राज्यम पार्टी के गठन के साथ राजनीतिक सफर शुरू किया। 2009 चुनावों में वे आंध्र प्रदेश के तिरुपति से सांसद चुने गए। 6 फरवरी, 2011 को उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। 28 अक्टूबर, 2012 को वे राज्य पर्यावरण मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने।
पवन कल्याण :
चिरंजीवी के छोटे भाई पवन कल्याण भी तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने अभिनेता हैं। मार्च, 2014 में उन्होंने अपनी जन सेना पार्टी बनाई। 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी खम ठोंक सकती है।
विनोद खन्ना :
1997 में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े। पंजाब के गुरदासपुर निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुने गए। जुलाई, 2002 में केंद्रीय संस्कृति व पर्यटन मंत्री बने। इसके बाद विदेश मंत्रलय में राज्य मंत्री रहे। 2014 में 16वीं लोकसभा के सदस्य रहे।
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राज बब्बर :
1989 में जनता दल से जुड़कर राजनीतिक सफर शुरू किया। इसके बाद समाजवादी पार्टी से तीन बार सांसद रहे। 1994 से 1999 से राज्यसभा के सदस्य रहे। 2008 में कांग्रेस से जुड़े और चौथी बार सांसद बने। फिलहाल उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख हैं।
शत्रुघ्न सिन्हा :
भारतीय जनता पार्टी से लोकसभा सदस्य हैं। 2009 के लोकसभा चुनावों में बिहार की पटना साहिब निर्वाचन क्षेत्र से जीत दर्ज कराई। 13वीं लोकसभा में कैबिनेट मंत्री बने और स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग और जहाजरानी मंत्रलय संभाल चुके हैं। मई, 2006 में भाजपा के संस्कृति व कला विभाग के प्रमुख बने।
हेमा मालिनी :
2004 में भाजपा से जुड़ीं। 2014 में लोकसभा सदस्य बनीं।
जया बच्चन :
समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सदस्य हैं
गोविंदा :
2004 में कांग्रेस से लोक सभा सदस्य चुने गए, 2008 में राजनीति छोड़ दी।
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दक्षिण भारतीय कलाकार के राजनीति में हिट होने का कारण
दरअसल, दक्षिण भारत के बड़े पर्दे के कलाकारों को जिस तरह से राजनीति में शानदार कामयाबी उसकी वजह वरिष्ठ पत्रकार और तमिलनाडु मामलों के खास जानकार आर. राजगोपालन सेक्स को मानते हैं। उनका मानना है कि दक्षिण भारत में बनी ज्यादातर फिल्में वहां की संस्कृति को प्रदर्शित करती है। जिसके चलते लोगों को उस फिल्म हो या वह कलाकार, सीधे जुड़ाव हो जाता है।
राजगोपालन का कहना है कि चाहे बात जयललिता की ही करें तो उन्होंने कभी सेक्स को एक्सपोज नहीं किया बल्कि पूरा बदन ढक कर रखा। जबकि, उत्तर भारतीय कलाकारों ने जो फिल्म बनाई है उसमें जोर शोर से सेक्स को परोसा गया है, जैसे- छोटे कपड़े पहनना और उन चीजों को दिखाना जो भारतीय संस्कृति में कही से भी शोभनीय ना हो। उन्होंने आगे कहा कि दक्षिण भारत के लोग कहीं ना कहीं ज्यादा भावुक भी होते हैं। इसका नज़ारा आंध्र में एन.टी. रामाराव के लिए देखा गया तो वही कर्नाटक में राजेन्द्र कुमार के लिए।
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