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    खुद ही देख लें हम इंडियंस की डेली लाइफ में कहां तक घुसा है चीन, जानने के बाद करें फैसला

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Sun, 21 Jun 2020 10:43 AM (IST)

    हमारे निजी जीवन में चीन इस कदर घुस चुका है कि अब उसको वहां से निकाला ना आसान नहीं है। चाहे मोबाइल हो या एप या फेसबुक या दूसरे उद्योग सभी में इसका दखल है।

    खुद ही देख लें हम इंडियंस की डेली लाइफ में कहां तक घुसा है चीन, जानने के बाद करें फैसला

    नई दिल्‍ली (जेएनएन)। गलवन घाटी में भारतीय सैनिकों पर धोखे से वार करके पड़ोसी देश चीन ने अपने दुश्मन होने का परिचय दे दिया है। विस्तारवादी निरंकुश नीतियों के बूते वह अपने खिलाफ पनप रहे वैश्विक और घरेलू असंतोष का ध्यान भले ही भटकाना चाह रहा हो, लेकिन इस बार उसका पाला ऐसे भारत से पड़ा है, जो मजबूत है, सक्षम है और निर्णायक है। 1962 की बात पुरानी हो चुकी है। उसे मुगालते में रहने की जरूरत नहीं है। भारत अब अपनी हर इंच जमीन की रक्षा करने में सक्षम है।

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    चीन को घेरने की रणनीति शुरू हो चुकी है। भले ही भारत शांतिप्रिय देश हो, लेकिन उसकी इस खूबी को खामी मानने की हिमाकत ड्रैगन पर भारी पड़ सकती है। नुकसान हमें भी होगा, लेकिन देश की अखंडता और संप्रभुता की कीमत पर हमें वह नुकसान मंजूर है। घास की रोटियां खाकर दुश्मन के छक्के छुड़ाने का हमारा स्वर्णिम इतिहास रहा है। हमारी सैन्य शक्ति दुनिया के शीर्ष ताकतों में शुमार है। सरकार तो चौतरफा इस पड़ोसी देश को घेरने की रणनीति काम करेगी ही, हम देशवासी भी इसकी विषैली फुफकार को कुंद करने के लिए निजी स्तर पर लड़ाई लड़ेंगे।

    धोखेबाज चीन के उत्पादों को नकारकर हम उसकी आर्थिक कमर तोड़ देंगे। वह और बिलबिलाएगा, रही सही कसर वैश्विक मंच पर उसके खिलाफ पनप रहे आक्रोश को हवा देने से पूरी होगी। अब देश को खुलकर उन देशों के साथ खड़े होने की जरूरत है जिनका इस दगाबाज देश से गहरा मतभेद है। आर्थिक ताकत के मद में चूर चीन को उसकी हैसियत बताने का वक्त आ गया है। मौका खुद उसने दिया। इसे एक अवसर की तरह लेकर हम दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता देश की अपनी ताकत से अपने पक्ष में करने का संकल्प लें। ऐसे में आइए, पड़ोसी देश को सबक सिखाने वाली इस महाजंग में हम निजी स्तर पर अपनी आहुति दें और इस राष्ट्र यज्ञ को सफल बनाएं।

    पड़ोसी देश चीन के सामान की आलोचना हर दूसरे शख्स से सुनने को मिलती है। पर वास्तविकता तो यह है कि रोजमर्रा के जीवन में हम इतने अधिक चीनी उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं जिनकी जानकारी हमें भी नहीं हैं। एक नजर:

    फोन और गैजेट

    भारत में शाओमी, जिओनी और ओप्पो जैसी दर्जनों चीनी कंपनियां अपने मोबाइल और गैजेट्स बेच रही हैं। कम दामों में ज्यादा फीचर्स देने के लिए लोग इन्हें पसंद करते हैं। इतना ही नहीं अमेरिकी कंपनी एप्पल के आइफोन भी चीन में एसेंबल होते हैं। साथ ही एचपी, सैमसंग, लेनोवो और मोटोरोला के स्मार्टफोन और लैपटॉप के ज्यादातर डिवाइस चीन में बनते हैं।

    भारतीय कंपनियां नाकाम

    देश में इस्तेमाल होने वाले अमेरिकी और दक्षिण कोरियाई कंपनियों के गैजेट्स चीन में बनते हैं। वहीं आम जनता को भी चीन में बने सस्ते हैंडसेट लुभाते हैं। भारतीय कंपनियां इस क्षेत्र में कमजोर रही हैं। कोई भी देशी कंपनी चीन के स्तर के डिवाइस बनाने में सफल नहीं हुई है।

    मेक इन इंडिया भी चीन पर निर्भर

    सिर्फ फोन ही नहीं बल्कि प्लास्टिक का सामान, इमिटेशन जूलरी, लकड़ी या लोहे के उत्पाद भले ही भारत में बने लेकिन इनमें कोई न कोई पार्ट चीनी जरूर होता है। जैसे प्लास्टिक दाना और गहनों के बीड्स या नकली मोती।

    फेसबुक में भी हिस्सेदारी

    गूगल और फेसबुक भले ही अमेरिकी कंपनियां हों, लेकिन इनमें कई देशों के शेयर हैं जो इन कंपनियों में निवेश भी करते हैं। चीन भी इनमें से एक देश है। चीनी कंपनी अलीबाबा की बिग बॉस्केट, पेटीएम, स्नैपडील और जौमेटो में तकरीबन 50 करोड़ डॉलर का निवेश है। वहीं बीवाईजेयू, फ्लिपकार्ट, ओला, स्विगी में चीन की टेनसेंट नाम की कंपनी की हिस्सेदारी है।

    मोबाइल एप भी कम चीनी नहीं

    स्मार्ट फोनों में चैटिंग, शॉपिंग, ट्रैवल व दिन भर की हर जरूरत के लिए मोबाइल एप मौजूद हैं। ऐसी ही एक लोकप्रिय एप वी चैट चीन का है। कई मशहूर एप्स में चीन ने निवेश किया है। हाल ही में मोबाइल से चीनी एप को निकालने का अभियान चला।

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