घाटी में कुदरत का कहर: ऐसा लगा जिंदगी कुछ पल की मेहमान..
'हम सब एक सरकारी क्वॉर्टर में थे। बाहर भारी बारिश हो रही थी। देखते ही देखते जलस्तर बढ़ने लगा। कब बेसमेंट में पानी भर गया, पता ही नहीं चला। हम जान बचाने के लिए भागकर दूसरी मंजिल पर पहुंच गए। पानी बीस फुट तक भर गया। हम तीसरी मंजिल पर जा चढ़े। मौत बिल्कुल सामने थी। न खाने को रोटी-न पीने को पानी। तीन
जम्मू, [रोहित जांडियाल]। 'हम सब एक सरकारी क्वॉर्टर में थे। बाहर भारी बारिश हो रही थी। देखते ही देखते जलस्तर बढ़ने लगा। कब बेसमेंट में पानी भर गया, पता ही नहीं चला। हम जान बचाने के लिए भागकर दूसरी मंजिल पर पहुंच गए। पानी बीस फुट तक भर गया। हम तीसरी मंजिल पर जा चढ़े। मौत बिल्कुल सामने थी। न खाने को रोटी-न पीने को पानी। तीन दिन अल्लाह से दुआ करते रहे। सेना फरिश्ता बनकर आई और आज हम सकुशल लौट आए।' कश्मीर में बाढ़ में फंसी, जम्मू-कश्मीर पुलिस की सब इंस्पेक्टर महनाज उस तबाही के मंजर को याद नहीं करना चाहतीं।
सोमवार को सेना ने जब बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को बचाकर तकनीकी एयरपोर्ट जम्मू पहुंचाया तो महनाज की तरह सभी की आंखें आंसुओं से छलक पड़ीं। अपने कुछ अन्य परिजनों के साथ प्रलय की तरह आई तबाही को देख चुकीं महनाज और इशरत एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही अपने घरवालों से लिपट कर रोने लगीं। ऐसा लगा जिंदगी ने फिर गले लगा लिया है। महनाज राजौरी की रहने वाली हैं। उनके साथ इशरत भी थीं, जो कश्मीर विश्वविद्यालय में नियुक्त अपने पति प्रो. तसलीम आरिफ के पास गई थीं। इशरत ने बताया कि उनके पास खाने को कुछ नहीं था। बस दुआ कर रहे थे कि किसी तरह से जान बच जाए। कुछ पल के लिए तो उन्होंने हिम्मत हार दी थी। अचानक सेना के जवान उनके पास आए और कश्तियों से उन्हें बाहर ले आए।
सोनावर में एक किराये के मकान में रह रहे मुहम्मद अशरफ अपनी पत्नी नसरीन, चार वर्षीय बेटी सानिया तथा दो वर्षीय बेटे दानिश के साथ फंसे हुए थे। नसरीन ने बताया कि पानी ने इतना समय भी नहीं दिया कि कुछ सामान ही उठा लेते। वह खाने का कुछ सामान और पानी लेकर पहली मंजिल, फिर दूसरी और फिर तीसरी मंजिल पर भाग गए। उन्हें अपनी नहीं बस बच्चों की जान की परवाह थी। घर से बाहर देखते तो हर ओर पानी ही पानी नजर आता था। लगता था कि जिंदगी बस कुछ पल की ही मेहमान है। मगर दुआ ने काम किया और सेना ने उन्हें बचा लिया। बीस फुट से अधिक पानी में सब कुछ बह गया, अल्लाह का शुक्र है जिंदगी बच गई।
कश्मीरी पंडित मोती कौल और उनके परिवार को तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि वे जिंदा हैं। चार दिनों तक भूखे प्यासे तीसरी छत पर रहे। पत्नी ललिता तथा भाई कन्हैया लाल उनके साथ थे। करीब 75 साल के अपने जीवनकाल में पहली बार जन्नत में देखे ऐसे जल प्रलय से रूह कांप उठी। एयरपोर्ट पर जब वे बाहर आए तो परिजनों से मिलकर अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए। 63 लोग एक साथ जब एयरपोर्ट से बाहर निकले तो उनके लिए जिंदगी की नई शुरूआत थी। जम्मू में बैठे परिजनों के होठों पर मुस्कान और आंखों में नमी थी।
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