मदर टेरेसा का चमत्कार, प्रार्थना से स्वस्थ हुई थी भारतीय महिला: विदेशी मीडिया
रविवार, 4 सितंबर को मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी जाएगी। उनके चमत्कारिक प्रार्थना ने एक भारतीय महिला और ब्राजील के एक नागरिक को मौत के मुंह से बचा लिया था।
नकोर। पूर्वी भारत के आदिवासी समुदाय की मोनिका बेसरा के कैंसर वाले ट्यूमर का इलाज मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरी ऑफ चैरिटी द्वारा किया गया था। यह पहला चमत्कार था जो मदर टेरेसा का संत साबित करने के क्रम की पहली सीढ़ी थी।
मदर टेरेसा का चमत्कार
मोनिका बेसरा की मदद के लिए 1998 में चैरिटी की ननों द्वारा प्रार्थना की गई थी। मोनिका बेसरा के अनुसार, एक छोटे से कमरे में एक नन की पोट्रेट लगी थी, जब दूसरी ननों द्वारा उन्हें वहां लाया गया तो पोट्रेट को देखते ही उन्हें ऐसा लगा मानों उस तस्वीर से एक रोशनी निकल रही है जो उनके पूरे शरीर से गुजरी। इसके बाद ननों ने एक धार्मिक मेडल से उनके ट्यूमर के कारण सूजे हुए पेट को दबाया और प्रार्थना की। बेसरा ने बताया,’उनकी नींद देर रात 1 बजे खुली, उनका शरीर हल्का हो गया था, ट्यूमर गायब था।‘
मदर टेरेसा को ‘संत’ का दर्जा
बता दें कि मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च के संत का दर्जा दिए जाने की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। रविवार, 4 सितंबर को भारतीय समयानुसार दोपहर 2 बजे वेटिकन सिटी के सेंट पीटर्स स्वापूयर में विशेष जनता के सामने पोप फ्रांसिस, मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च का संत घोषित करेंगे।
बेसरा उस चमत्कार वाले क्षण को याद करते हुए बताती हैं,’मैं उस वक्त बहुत खुश थी और सबको बताना चाहती थी कि मैं ठीक हो गई हूं।‘ कई अनुयायी मदर टेरेसा को जीवित संत मानते थे लेकिन बेसरा की कहानी को भारत में हमेशा संदेहास्पद माना गया क्योंकि डॉक्टरों व राज्य स्वास्थ्य मंत्री ने उस वक्त इस मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि बेसरा को सिस्ट था न कि कैंसर वाला ट्यूमर। डॉक्टरों ने कहा कि बलूरघाट के सरकारी अस्पताल में उसने कई महीने तक ट्यूबरकुलॉसिस का इलाज कराया। 2002 में वैटिकन ने बेसरा के केस को ‘चमत्कार’ के तौर पर माना। कलकत्ता की मदर टेरेसा के संत बनने की यात्रा का यह पहला पड़ाव था।
कैथोलिक चर्च के लिए किसी को संत घोषित करने के लिए, उस व्यक्ति के जीवन, विश्वास और अच्छाईयों की लंबी जांच करने में सालों लग जाते हैं। प्रार्थनाओं के दो ‘चमत्कारों’ का श्रेय भावी संत को प्राप्त होना चाहिए।
दो चमत्कार मदर टेरेसा के नाम
केननिज़ैषण की प्रक्रिया को आगे ले जाने के लिए, एक दूसरे चमत्कार की जरूरत होती है। इसमें वही प्रक्रिया अपनाई जाती है, जो मदर टेरेसा के मामले में अपनाई जाएगी। 2002 में, पोप ने एक बंगाली आदिवासी महिला, मोनिका बेसरा के ट्यूमर के ठीक होने को मदर टेरेसा का पहला चमत्कार माना। 2015 में ब्रेन ट्यूमर से ग्रस्त ब्राजीलियन पुरुष को दूसरा चमत्कार माना गया। उस वक्त डॉक्टर्स और तर्कशास्त्रियों ने इन कथित चमत्कारों को खारिज कर दिया था और कई सवाल खड़े हुए थे।
संत के दर्जा के लिए ‘चमत्कार’ है जरूरी
अगला कदम मोक्ष प्राप्ति है। किसी भी व्यक्ति को धन्य घोषित करने के लिए ‘चमत्कार’ की अनुमति जरूरी है, जो कि भगवान के आदरणीय सेवक की रक्षा करने वाली शक्तियों का सबूत होते हैं। यह एक संकेत होता है कि वह मृत्यु के बाद ईश्वर से जुड़ गए हैं। धर्मप्रदेश, जहां ये तथाकथित चमत्कार होने का दावा किया जाता है, एक वैज्ञानिक और धर्मशास्त्रों पर आधारित जांच करते हैं। विज्ञान आयोग को मंजूर की गई वैज्ञानिक योग्यताओं के आधार पर यह फैसला करना होता है कि कथित चमत्कार का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। धर्मशास्त्रियों का कमीशन यह तय करता है कि जो कुछ भी हुआ, वह असल में ‘चमत्कार’ था या ईश्वर के आदरणीय सेवक की रक्षा की वजह से ऐसा हुआ। अगर कमीशन सकरात्मक रिपोर्ट देता है, तो वह पोप के पास जाती हैं, अगर पोप हामी भरते हैं तो उम्मीदवार को मोक्ष प्राप्ति होती है। शहादत की स्थिति में, चमत्कार की आवश्यकता से छूट दी गई है।
संत चुने जाने की प्रक्रिया- ’केननिजैषण’
संत चुने जाने की प्रक्रिया को केननिजैषण कहते हैं। यह प्रक्रिया उम्मीदवार की मौत के 5-50 साल के भीतर शुरू की जा सकती है। यह प्रक्रिया दो चरणों में होती है। पहला चरण- 'अभ्यर्थना'- में गवाही के लिए लोग इकट्ठा होते हैं, सार्वजनिक और निजी लेखन देते हैं, फिर उनकी जांच की जाती है। यह चरण लंबा होता है और इसमें सालों लग जाते हैं। इसका अंत धर्मप्रदेश ट्राइब्यूनल के फैसले से होता है, जिसमें बिशप उम्मीदवार के गुणों और ईश्वर के प्रति समर्पण पर फैसला करते हैं। इसके बाद दूसरे चरण में अगर इजाजत मिलती है तो बिशप की रिपोर्ट रोम जाती है, जहां इसे इटैलियन में ट्रांसलेट किया जाता है, इसे 'अपोस्टोलिक प्रक्रिया' कहते हैं। इसका सार संतों की मंडली के समक्ष रखा जाता है, जहां 9 धर्मशास्त्री सबूतों और कागजातों की जांच करते हैं। बहुमत से पास होने पर, रिपोर्ट पोप के पास जाती है, पोप के हामी भरने के बाद उम्मीदवार को आदरणीय कहा जाता है।
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