अमेरिकी रिफाइनरियां भारत को बेच रहीं अपने तेल का कचरा
पेटकोक कच्चे तेल की रिफाइनिंग से निकलने वाला ऐसा कचरा होता है जो कोयले से सस्ता होता है और जलने पर कोयले से ज्यादा ऊष्मा पैदा करता है।
नई दिल्ली, एपी। अमेरिका की तेल रिफाइनरियां अपने गंदे कचरे यानी पेट्रोलियम कोक (पेटकोक) को अपने देश में नहीं बेच पा रही हैं इसलिए वे भारत में इसका बड़ी मात्रा में निर्यात कर रही हैं। पेटकोक कच्चे तेल की रिफाइनिंग से निकलने वाला ऐसा कचरा होता है जो कोयले से सस्ता होता है और जलने पर कोयले से ज्यादा ऊष्मा पैदा करता है। जलने पर यह कहीं अधिक कार्बन और सल्फर उत्सर्जित करता है जो स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए बेहद घातक है।
'एसोसिएटेड प्रेस' (एपी) की पड़ताल में पता चला है कि पिछले साल अमेरिका द्वारा निर्यात किए गए कुल पेटकोक में से एक चौथाई भारत को बेचा गया था। यानी 2016 में अमेरिका ने भारत को 80 लाख मीट्रिक टन पेटकोक का निर्यात किया था। यह 2010 में भारत को किए गए निर्यात से 20 गुना अधिक था।
कोयले की अपेक्षा सल्फर का 17 गुना उत्सर्जन
भारत में अदालत द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण के मुताबिक, नई दिल्ली के नजदीक इस्तेमाल किए जा रहे आयातित पेटकोक के प्रयोगशाला परीक्षण से पता चला है कि इसमें कोयले के लिए निर्धारित मात्रा से 17 गुना और डीजल के लिए निर्धारित मात्रा से 1,380 गुना अधिक सल्फर होता है।
अधिक ऊष्मा देने का कारण होता है इस्तेमाल
कारखाने इसका इस्तेमाल करना इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि इसके कम इस्तेमाल से भी भट्टियों में कोयले की अपेक्षा अधिक ऊष्मा पैदा होती है। उद्योग जगत से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि पेटकोक दशकों से अहम और मूल्यवान ईंधन रहा है और इसके इस्तेमाल से कचरा रिसाइकिल हो जाता है।
अपनी पर्यावरण समस्या का निर्यात कर रहा अमेरिका
स्वास्थ्य और पर्यावरणविदों का कहना है कि अमेरिका पेटकोक का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है और वह इसके निर्यात से अपनी पर्यावरण समस्या का निर्यात कर रहा है। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड द एनवायरमेंट की प्रमुख और अदालत द्वारा नियुक्त प्राधिकरण की सदस्य सुनीता नारायण कहती हैं, 'हमें शेष दुनिया का कूड़ेदान नहीं बनना चाहिए। यह हमारे लिए असहनीय है क्योंकि हम पहले से ही मौत का सामना कर रहे हैं।'
नुकसान उठाकर भी कर रहा निर्यात
उधर, अमेरिकन फ्यूल एंड पेट्रोकैमिकल मैनुफैक्चरर्स ने एक बयान जारी कर बताया कि बाजार की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अमेरिका को 30 से ज्यादा देशों को पेटकोक निर्यात करने की अनुमति है। लेकिन, विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी रिफाइनर बाजार की मांग की वजह से नहीं बल्कि तेल के अपने कचरे से छुटकारा पाने के लिए इसे भारी छूट या नुकसान उठाकर भी निर्यात कर रहे हैं। यही वजह है कि विकासशील देशों में इसकी मांग बढ़ रही है।
पेटकोक ने बद से बदतर की स्थिति
आलोचकों का कहना है कि पेटकोक की वजह से भारत की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। हर साल वायु प्रदूषण की वजह से भारत में करीब 11 लाख लोगों की असामयिक मौत हो जाती है। पिछले कुछ वर्षो में देश के उन इलाकों में सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में तेजी से बढ़ोतरी हुई है जहां ऊर्जा संयंत्र और स्टील कारखाने स्थित हैं।
सीमेंट कंपनियों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल
दरअसल, भारत में अमेरिकी पेटकोक की खरीद में दो साल पहले उस वक्त तेजी से उछाल आया था जब चीन ने इसके आयात पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी। हालांकि, भारतीय कारखाने और संयंत्र कुछ पेटकोक सऊदी अरब और अन्य देशों से भी खरीदते हैं, लेकिन फिर भी इसका 65 फीसद आयात अमेरिका से ही किया जाता है। भारतीय सीमेंट कंपनियां इसका सबसे ज्यादा आयात करती हैं। सीमेंट विशेषज्ञों का तर्क है कि सीमेंट उत्पादन के दौरान कुछ सल्फर अवशोषित हो जाता है।
जितना आयात उतना भारत में भी उत्पादन
खास बात यह है कि वर्तमान में भारतीय रिफाइनरियां भी पेटकोक का उत्पादन करने लगी हैं। इनमें पेटकोक का उतना ही उत्पादन हो रहा है जितना देश में आयात किया जाता है। इसी क्रम में रिलांयस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने भी पेटकोक के उत्पादन में बढ़ोतरी कर दी है।
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