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    यूपी नहीं जानता, दूध में कितना यूरिया

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    Updated: Wed, 29 Jan 2014 01:20 PM (IST)

    सुप्रीमकोर्ट के समक्ष राज्य सरकार ने दूध में मिलावट को लेकर अपनी गलती मानते हुए हलफनामा दाखिल किया, असलियत यह है कि प्रशासन की तकनीकी अपंगता से दूध की ...और पढ़ें

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    मेरठ। सुप्रीमकोर्ट के समक्ष राज्य सरकार ने दूध में मिलावट को लेकर अपनी गलती मानते हुए हलफनामा दाखिल किया, असलियत यह है कि प्रशासन की तकनीकी अपंगता से दूध की पौष्टिकता दांव पर है। मेरठ समेत प्रदेश की संभागीय प्रयोगशालाओं में दूध में यूरिया की वास्तविक मात्रा नापने की स्पेक्टो फोटो तकनीक नहीं है। दूध के सैंपलों में पहले ही पेस्टीसाइड की घातक मात्रा दर्ज की जा चुकी है।

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    लैब में मशीन 12 साल से बंद

    आगरा स्थित लैब में दूध में यूरिया की मात्रा नापने वाली मशीन 1999 से बंद पड़ी है। अब मेरठ के नमूने लखनऊ स्थित लैब भेजे जाते हैं, किंतु वहां भी विश्लेषक एवं तकनीक की भारी कमी है। सूत्र बताते हैं प्रदेशभर में जांच रिपोर्ट को रोककर दुकानदारों एवं मिलावटखोरों से वसूली शुरू कर दी जाती है।

    यूरिया के नाम पर उगाही

    प्रति सौ एमएल दूध में 700 पीपीएम यूरिया की मात्रा स्वाभाविक पाई गई है। इससे ज्यादा मात्रा पाए जाने पर आजीवन कारावास तक का प्रावधान है। जांच में दूध में यूरिया की मात्रा भले न मिल सके, किंतु उसके नाम पर दूधियों से वसूली करने में विभाग जुट जाता है। मेरठ स्थित संभागीय प्रयोगशाला में पश्चिम उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़ एवं सहारनपुर के खाद्य सैंपल टेस्ट करने के लिए भेजे जाते हैं। कई सैंपलों की रिपोर्ट सालभर बाद भी जारी नहीं हुई, जबकि पीएफए एक्ट में साफ कहा गया है कि जांच रिपोर्ट 40 दिनों के अंदर जारी हो जानी चाहिए।

    सैकड़ों नमूने की जांच लंबित

    स्वास्थ्य विभाग की टीम ने दूध के नमूने लेकर जांच के लिए लैब में भेजे दिए। अभी भी एडीएम सिटी एस के दुबे अनुसार लैब में अकेले मेरठ के 500 से अधिक नमूना रिपोर्ट लंबित हैं।

    हर माह आते 150 सैंपल

    प्रभारी जनविश्लेषक प्रयोगशाला आकांक्षा यादव ने बताया कि तीन जिलों से हर माह करीब 150 सैंपल लैब में आते हैं, जिनमें दूध के सैंपल सर्वाधिक होते हैं। जांच किए गए सैंपलों की संख्या याद नहीं।

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