समझें, भूमि अधिग्रहण बिल का क्यों विरोध कर रहे हैं अन्ना
समाजसेवी अन्ना हजारे ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ आंदोलन शुरू किया है। बजट सत्र में यह आंदोलन सरकार के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। आखिर अन्ना इसके विरोध में क्यों हैं? इसे यूं समझें--
नई दिल्ली । समाजसेवी अन्ना हजारे ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ आंदोलन शुरू किया है। बजट सत्र में यह आंदोलन सरकार के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। आखिर अन्ना इसके विरोध में क्यों हैं? इसे यूं समझें--
मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में ये प्रावधान थे
* किसी गांव में जमीन अधिग्रहित करना है तो निजी कंपनियों के लिए गांव के 80 फीसद किसानों की सहमति होना अनिवार्य। पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए यह 20 फीसद थी।
* सिंचित और बहुफसली जमीन का अधिग्रहण नहीं होगा।
* अधिग्रहित भूमि पर अगर पांच साल में उपयोग नहीं हुआ तो वह भूमि फिर से किसानों को वापस मिलेगी या नए सिरे से अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू करने का प्रावधान।
* भूमि अधिग्रहण से पहले सामाजिक प्रभाव का आकलन किया जाएगा। इसका कुप्रभाव दिखे तो अधिग्रहण नहीं होगा।
* मुआवजा राशि कोर्ट में जमा होने पर ही अधिग्रहण मान्य होगा।
* अधिग्रहित जमीन को तीसरे पक्ष को बेचने पर होने वाले लाभ का चालीस फीसदी हिस्सा जमीन के मूल मालिक प्रभावित किसानों को मिलेगा।
* पुराने भू-अधिग्रहण में भी नए नियमों के तहत मुआवजा देना होगा।
* अधिग्रहण को कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।
मोदी सरकार द्वारा 31 दिसंबर 2014 को लागू आध्यादेश में ये प्रावधान
* निजी कंपनियों द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए ग्राम सभा में 80 फीसद किसानों की सहमति का प्रावधान समाप्त किया गया। पीपीपी प्रोजेक्ट में भी यह समाप्त किया गया।
* सिंचित भूमि का भी अधिग्रहण किया जा सकेगा।
* अधिग्रहित भूमि का अगर पांच साल में उपयोग नहीं हुआ तो वह भूमि फिर से किसानों को वापस देने की अनिवार्यता समाप्त। नए सिरे से अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू करने की अनिवार्यता से भी मुक्ति।
* सामाजिक आकलन करने का बंधन समाप्त।
* कलेक्टर या सरकारी कोषालय में राशि जमा कराने पर भी अधिग्रहण मान्य होगा।
* पुराने भूमि अधिग्रहण में पुराने कानून के हिसाब से मुआवजा देय होगा।
* अधिग्रहण को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
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