अन्ना के साथ नहीं दिखना चाहते किसान संगठन
भूमि अधिग्रहण कानून पर जारी अध्यादेश को संसद में पारित कराने की सरकार की कोशिशों को लेकर किसान संगठनों में भारी आक्रोश है। उन्होंने सरकार के खिलाफ हमलावर तेवर अपनाते हुए अगले महीने आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भूमि अधिग्रहण कानून पर जारी अध्यादेश को संसद में पारित कराने की सरकार की कोशिशों को लेकर किसान संगठनों में भारी आक्रोश है। उन्होंने सरकार के खिलाफ हमलावर तेवर अपनाते हुए अगले महीने आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है। उन्हें अध्यादेश वापस लेने से कम की मांग मंजूर नहीं। लेकिन वे किसी भी तरह दिल्ली के जंतर-मंतर पर सोमवार से शुरू अन्ना आंदोलन के साथ खड़े होने के लिए राजी नहीं हैं।
किसान संगठनों की ओर से अध्यादेश के विरोध में अलग से 18 मार्च को राजधानी के जंतर-मंतर पर धरना व प्रदर्शन किया जाएगा। इसमें देश के सभी राज्यों से किसान पहुंचेंगे। यह आंदोलन काले अध्यादेश के हटाये जाने तक जारी रहेगा।
देश के लगभग दो दर्जन से अधिक किसान संगठनों की सोमवार को यहां हुई संयुक्त बैठक में भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन को लेकर जारी अध्यादेश का विरोध करने का फैसला किया गया। उनका कहना है कि अंग्रेजों के जमाने में बने1894 के कानून को हटाकर संप्रग सरकार ने जो कानून बनाया वह बहुत हद तक संतोषजनक है। लेकिन मौजूदा सरकार ने किसानों के हित में किए गए फैसले को अध्यादेश के मार्फत वापस ले लिया। अध्यादेश को किसान विरोधी करार देते हुए नेताओं ने कहा कि वे चुप बैठने वाले नहीं है।
उधर, भूमि अधिग्रहण कानून समेत जमीन संबंधी अन्य कई कानूनों की विसंगतियों को दुरुस्त करने को लेकर एकता परिषद ने राजधानी दिल्ली में सोमवार से शुरू आंदोलन में शामिल होने का ऐलान किया है। इसमें सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे शिरकत कर रहे हैं। इस आंदोलन को समर्थन देने के बारे में पूछने पर किसान नेताओं ने स्पष्ट कोई जवाब नहीं दिया। हालांकि यह साफ है कि वे इस आंदोलन में उनके साथ खड़े नहीं होंगे। इससे आंदोलन की धार कमजोर हो सकती है।
किसान नेता युद्धवीर सिंह ने कहा कि 2013 में बने कानून से जो उम्मीदें बंधी थीं, इस सरकार के अध्यादेश से उस पर पानी फिर गया है। किसान संगठनों की बैठक में अध्यादेश को संसद में पेश न करने का दबाव बनाने का फैसला किया गया है। इसके लिए उनका प्रतिनिधिमंडल सरकार के प्रमुख मंत्रियों से मुलाकात करेगा। स्थानीय सांसदों पर यह दबाव भी बनाएगा कि वे संसद में किसानों के पक्ष को प्रमुखता से रखें।