यहां हर तीन दिन में दो बुजुर्गों का होता है ये हाल...
बेंगलुरू में एक समय ऐसा था कि इस जगह को पेशनभोगियों के लिए स्वर्ग माना जाता था और अब यह बुजुर्गों के खिलाफ हो रहे क्राइम में टॉप पर है।
बेंगलुरू। उम्र के 80वें पायदान पर पहुंचे बुजुर्ग जो घर में अकेले रहते हैं, उनपर मंडराते खतरे की वजह से कर्नाटक विशेषकर बेंगलूर ने अपनी ओर ध्यान खींचा है।
80 लाख रुपये के साथ बुजुर्ग जोड़े का शव उनके घर में मिला। टाइम्स ऑफ इंडिया ने तीन पहलूओं पर जाेेर दिया, ये पहलू हैं- हमारे सीनियर सीटिजन कितने सुरक्षित हैं, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कैसी है और अपने जीवन के पतझड़ में वो किस तरह हालातों से समझौता कर रहे हैं।
कर्नाटक में हर तीन दिन पर दो सीनियर सीटिजन मर्डर, डकैती और लूटपाट जैसे क्राइम के शिकार हो रहे हैं। कभी बुजुर्गों के लिए बेहतर माना जाने वाले इस राज्य की छवि मैली हो रही है।
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बेंगलुरू में एक समय ऐसा था कि इस जगह को पेशनभोगियों के लिए स्वर्ग माना जाता था और अब यह बुजुर्गों के खिलाफ हो रहे क्राइम में टॉप पर है।
पुलिस के अनुसार, पूरे राज्य के शहरी समुदाय में हो रहे इजाफे, कर्नाटक अपने बुजुर्गों की सुरक्षा के मुद्दे से जूझ रहा है। और बढ़ते सामाजिक-आर्थिक कारणों की वजह से वे एकाकीपन में जीने को विवश हैं और इससे वे अधिक कमजोर होते जा रहे हैं। 2014 के दौरान राज्य में करीब 8 फीसद सीनियर सीटिजन की हत्याएं हुईं (1,636 में से 124)।
2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक की 61 मिलियन जनसंख्या का 8.4 फीसद हिस्सा बुजुर्गों का था। पिछले माह की बात करें तो बेंगलुरू में तीन विभिन्न घटनाओं कुल चार बुजुर्गों की हत्या की गयी।
फ्रेजर टाउन में रहने वाले बुजुर्ग दंपत्ति का बेटा दूर अमेरिका में रहता था और कर्ज की मांग कर रहे एक इलेक्ट्रीशियन और उसके दोस्त ने मिलकर इनकी हत्या कर दी। दूसरे मामले में बेंगलुरू में योगा क्लासेज लेने आयी बुजुर्ग महिला की हत्या उनके घर में की गयी। हत्यारों की पहचान अभी नहीं हुई है। तीसरे मामले में, बेटे से अलग रह रही एक बुजुर्ग विधवा को अपने फायदे के लिए उनके रिश्तेदारों ने ही मार डाला।
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सीनियर पुलिस ऑफिसर ने कहा, ‘अधिकांश मामलों में अपराधी वही हैं जो इन बुजुर्गों को अच्छे से जानते हैं। ऐसी हत्याओं को रोकना काफी मुश्किल है।‘ उन्होंने आगे कहा कि ये क्रिमिनल्स बुजुर्गों पर निगाह रखते हैं और मौका मिलते ही हमला कर देते हैं। पुलिस ऑफिसर ने आगे बताया, ‘कभी ऐसा भी होता है कि उनके संतान देश के बाहर होते हैं या फिर ऑफिस के नजदीक रहने के विचार से अलग घर ले लेते हैं और बुजुर्गों को अकेले रहने के लिए विवश होना पड़ता है। हमारी कोशिश है कि लोग पड़ोस में रहने वाले बुजुर्गों के पास हमेशा आना-जाना करते रहें।‘