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    सबूत तो दूर की बात, टुंडा के खिलाफ एफआइआर भी लापता

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    Updated: Wed, 21 Aug 2013 10:15 AM (IST)

    लश्कर आतंकी अब्दुल करीम टुंडा को गिरफ्तार कर दिल्ली पुलिस ने भले ही बड़ी सफलता हासिल की हो, लेकिन उसे उसके अंजाम तक पहुंचाने की राह आसान नहीं है। टुंडा ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली [पवन कुमार]। 19 साल से फरार चल रहे लश्कर आतंकी अब्दुल करीम टुंडा को गिरफ्तार कर दिल्ली पुलिस ने भले ही बड़ी सफलता हासिल की हो, लेकिन उसे उसके अंजाम तक पहुंचाने की राह आसान नहीं है।

    पढ़ें: टुंडा को हिंदू सेना का कार्यकर्ता ने जड़ा थप्पड़

    टुंडा पर दर्ज विभिन्न मामलों में अहम सबूत समय की गर्त के साथ खत्म हो चुके हैं। यहां तक कि टुंडा के खिलाफ दर्ज दो दर्जन से अधिक मामलों की एफआइआर लापता हैं। अब इन्हें तलाशने का काम दिल्ली पुलिस ने युद्धस्तर पर शुरू कर दिया है। इस तथ्य का खुलासा खुद स्पेशल सेल ने पटियाला हाउस कोर्ट के समक्ष किया है।

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    पढ़ें: टुंडा पर लगा था लश्कर फंड के दुरुपयोग का आरोप

    सूत्रों के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने महानगर दंडाधिकारी जय थरेजा के समक्ष बताया कि वर्ष 1997 में उत्तर भारत में कुल 37 बम धमाके हुए थे। इन सभी धमाकों में टुंडा की संलिप्तता रही है। इनमें से 20 मामले दिल्ली के थे। दिल्ली में दर्ज कुछ मामलों की एफआइआर स्पेशल सेल को मिल गई है। लेकिन एक दशक से अधिक बीत जाने से कई मामलों की केस फाइल और एफआइआर उन्हें अब तक नहीं मिल पाई है। उन्हें रिकार्ड रूम में तलाश किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त उस समय टाडा एवं विस्फोटक अधिनियम के तहत भी टुंडा के खिलाफ अलग से मामले दर्ज किए गए थे। उन सभी मामलों की एफआइआर ढूंढी जा रही है। उन्हें खोजकर जल्द ही टुंडा के खिलाफ ठोस सबूत जुटाया जाएगा।

    टुंडा के खिलाफ नहीं हैं सबूत

    कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ ऑल बार एसोसिएशन दिल्ली के अध्यक्ष

    राजीव जय का कहना है कि 19 साल काफी लंबा वक्त होता है। ऐसे में टुंडा के खिलाफ पुराने मामलों में सबूत तलाश पाना आसान नहीं है। पुलिस केवल उन मामलों में उसे सजा करा सकती है, जिनमें ठोस सबूत बरामद हुए हों। जिनमें टुंडा की संलिप्तता की बात आई हो और इसका सबूत न हो, वैसे मामलों में अब उसके खिलाफ सबूत ढूंढ पाना काफी कठिन होगा। ज्यादातर मामलों में अधिक पुराना रिकार्ड या साक्ष्य नष्ट कर दिया जाता है या फिर वह पुलिस के मालखाना में पड़ा-पड़ा समय की गर्त में खुद ही नष्ट हो जाता है। पुलिस पांच-छह साल पुराने केस के सबूतों को नहीं संरक्षित कर पाती।

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