रक्षा सौदों के जरिए भारत-US आएंगे एक दूसरे के करीब , ट्रंप काल बनेगा गवाह
भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौते पर ओबामा प्रशासन के दौरान अहम प्रगति हुई। लेकिन अब ट्रंप प्रशासन के दौरान अमली जामा पहनाने की तैयारी शुरू हो चुकी है।
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन] । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश ने भारत के साथ ऐतिहासिक परमाणु करार किया तो राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल में भारत को अमेरिका का एक अहम रणनीतिक साझेदार बनाने की नींव रखी। लेकिन इन दोनों राष्ट्रपतियों के इन फैसलों को अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में ही जमीन पर उतारा जा सकेगा। ट्रंप 20 जनवरी, 2017 को अमेरिकी राष्ट्रपति की शपथ लेंगे और भारत के साथ अहम रक्षा सौदों पर दोनों देशों की बैठक फरवरी में बुलाई गई है। जबकि इसके कुछ ही हफ्तों बाद दोनों देशों के बीच परमाणु ऊर्जा पर अभी तक हो रही बातचीत को अमली जामा पहनाने के लिए अहम समझौते होने की तैयारी है।
भारत-अमेरिका संबंधों की नई कहानी
अमेरिकी सीनेट ने शुक्रवार को भारत को अहम रणनीतिक साझेदार बनाने संबंधी नेशनल डिफेंस अथॉराइजेशन एक्ट को मंजूरी दे दी है। इससे साथ ही अमेरिका के रक्षा सचिव व विदेश मंत्री को यह अधिकार दे दिया गया है कि वे भारत को अमेरिका के अहम रणनीतिक साझेदार बनाने के लिए उचित कदम उठा सकते हैं ताकि द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को मजबूत बनाया जा सके। इससे भारत को अमेरिका अब वैसी रक्षा तकनीकी व सहयोग दे सकेगा जो अभी तक वह सिर्फ बेहद करीबी सहयोगी देशों मसलन, जापान, ब्रिटेन आदि को देता रहा है। इस पर जल्द ही राष्ट्रपति बराक ओबामा की मुहर लगनी बाकी है। अमेरिकी सीनेट ने इस कानून को उस समय पारित किया है जब वहां के रक्षा सचिव एश्टन कार्टर दिल्ली में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर और पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात कर रहे थे और भविष्य में होने वाले रक्षा सौदों पर अहम बातचीत कर रहे थे।
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ट्रंप प्रशासन के साथ सामंजस्य बनाने की तैयारी
राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप को मिली अप्रत्याशित जीत के बाद से ही भारतीय विदेश मंत्रालय वहां के भावी प्रशासन की टोह लेने में जुटा हुआ है। विदेश सचिव एस जयशंकर इस बारे में पिछले दिनों वाशिंगटन की यात्रा भी कर आये हैं। इससे जुड़े लोगों का कहना है कि इसमें कोई दोराय नहीं है कि ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में भारत-अमेरिका के रिश्ते और गहरे होंगे। वजह यह है कि पिछले दोनों राष्ट्रपतियों ने डेढ़ दशक के दौरान द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर जो फैसले किये हैं उन्हें अमली जामा ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में ही पहनाया जाएगा। इसकी शुरुआत रक्षा सौदों को लेकर होगी। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के महीने भर के भीतर भारत व अमेरिका के बीच गठित डिफेंस टेक्नोलॉजी एंड ट्रेड इनिसिएटिव (डीटीटीआइ) की अहम बैठक रखी गई है। इस बैठक में अमेरिका के सहयोग से भारत में बनाये जाने वाले रक्षा उपकरणों को लेकर कुछ अहम फैसले होंगे।
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असैन्य परमाणु समझौते पर खास जोर
इसी तरह से भारत और अमेरिका के बीच हुए आण्विक समझौते के मुताबिक दोनो देशों की कंपनियों के सहयोग से भारत में नए आण्विक ऊर्जा संयंत्रों को लगाने का काम भी ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में रफ्तार पकड़ेगा। इस बारे में भारत व अमेरिका के बीच अंतिम द्विपक्षीय वार्ता अप्रैल, 2016 में हुई थी। उसके बाद जून, 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच वेस्टिंग हाउस और भारतीय कंपनी एनपीसीआइएल के बीच आंध्र प्रदेश में छह परमाणु रिएक्टर लगाने संबंधी करार को अंतिम रूप दिया गया था। लेकिन अभी कई ऐसे मुद्दे हैं जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच परमाणु करार के मुताबिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने की राह में अड़चन आ रही है।
दोनों देशों के बीच में सहमति बनी है कि इन मुद्दों पर ट्रंप प्रशासन के काम शुरु करने के साथ ही प्राथमिकता के तौर पर लिया जाएगा। भारत ने परमाणु ऊर्जा से वर्ष 2032 तक 63 हजार मेगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरुरी है कि अमेरिकी कंपनियों के सहयोग से लगने वाले संयंत्रों पर जल्द से काम शुरु किया जाए।
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