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राजीव के हत्यारों की रिहाई पर गरमाई राजनीति

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के फैसले ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव अजय माकन ने फैसले पर नाराजगी व दुख जताया, लेकिन तमिलनाडु से आने वाले वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का अब भी दुख है।

By Edited By: Published: Wed, 19 Feb 2014 08:35 AM (IST)Updated: Wed, 19 Feb 2014 09:36 PM (IST)
राजीव के हत्यारों की रिहाई पर गरमाई राजनीति

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के फैसले ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव अजय माकन ने फैसले पर नाराजगी व दुख जताया, लेकिन तमिलनाडु से आने वाले वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का अब भी दुख है। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से कानूनी पेंच फंसाकर हत्यारों की रिहाई रोकने की कोशिश शुरू हो गई है।

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जयललिता ने इस घोषणा के जरिये तमिलनाडु में बड़ी राजनीतिक लकीर खींच दी है। तमिल सियासत का ही तकाजा था कि अन्नाद्रमुक के धुर-विरोधी द्रमुक को इस लकीर का सम्मान करते हुए केंद्र से दोषियों की रिहाई का रास्ता साफ करने की मांग करनी पड़ी। अकेली कांग्रेस फैसले को लोकलुभावन बताकर विरोध कर रही है। कानून मंत्री कपिल सिब्बल को जयललिता के बजाय भाजपा पर निशाना साधना राजनीतिक रूप से ज्यादा मुफीद लगा।

उन्होंने अफजल गुरू की फांसी की मांग करने वाली भाजपा की इस मुद्दे को लेकर चुप्पी पर सवाल उठाया। सिब्बल की टिप्पणी के बाद भाजपा ने अधिकारिक रूप से जयललिता के फैसले की निंदा की। कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने कहा कि इससे अन्य राज्यों में भी कानून से बाहर जाकर फैसला लेने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा। गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने कहा कि ऐसे फैसलों से आम आदमी की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो सकते हैं।

गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार का पत्र मिलने के बाद कानून मंत्रालय की राय ली जाएगी। यह प्रक्रिया तीन दिन में पूरी होना संभव नहीं है। गृह मंत्रालय राज्य सरकार को कानूनी राय मिलने तक रिहाई नहीं करने का निर्देश दे सकता है।

पढ़ें: राजीव गांधी के हत्यारे भी फांसी से बचे, सजा उम्र कैद में तब्दील

गृह मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि सीआरपीसी की धारा-435 के तहत टाडा जैसे केंद्रीय कानून के आरोपियों की रिहाई केंद्र की सहमति के बिना नहीं हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी भी इससे सहमत हैं। यही नहीं, सीआरपीसी की धारा-432 भले ही राज्य सरकार को दोषियों की सजा माफ करने का अधिकार देती है, लेकिन इसके पहले सजा सुनाने वाली स्थानीय अदालत के जज की राय लेना अनिवार्य है।

तस्वीरों में देखें: राजीव गांधी हत्याकांड: दोषियों को उम्रकैद

राजीव गांधी हत्याकांड: कब क्या हुआ

राजीव गांधी हत्याकांड में फांसी की सजा पाए तीन दोषियों मुरुगन, संथम और पेरीवलन की सजा को उम्रकैद में तबदील कर दिया गया। कोर्ट ने माना की इस मामले में दोषियों की दया याचिका के निस्तारण में जरूरत से ज्यादा समय लगा है, जिसकी वजह से उन्हें मानसिक वेदना से जूझना पड़ा है। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र की दलीलों को दरकिनार करते हुए दोषियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। इस बहुचर्चित मामले में कई मोड़ आए। आइए जानते हैं इस मामले में कब, क्या हुआ।

21 मई 1991: तमिलनाडू के श्री पैरंबदूर में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मानव बम से हत्या कर दी गई।

मई 22 1991: पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया। इस मामले की जांच सीबीआई के अधिकारी डीआर कार्थिकेयन को सौंपी गई। साथ ही घटना स्थल से वहां लगे कैमरे समेत अन्य सबूत भी जुटाए गए।

24 मई 1991 : सीबीआई ने मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया। इस मामले की सुनवाई के लिए एमएम सिद्दीकी को जज नियुक्त किया गया।

11 जून 1991: मामले में पहली गिरफ्तारी भाग्यनाथन और पद्मा के रूप में हुई।

14 जून 1991: इस मामले में पहले आरोपी के तौर पर नलीनी मुरुगन और उसके पति मुरुगन को गिरफ्तार किया गया।

29 अगस्त 1991:- इस मामले में अंतिम आरोपी रंगन की गिरफ्तारी हुई।

20 मई 1992: एसआईटी ने कोर्ट के समक्ष आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की।

24 नवंबर 1993: आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए।

19 जनवरी 1994 :- मामले की सुनवाई कैमरा ट्रायल के रूप में शुरू हई।

29 मई 1994: कोर्ट द्वारा लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण, लिट्टे के इंटेलिजेंस प्रमुख पुट्टू अम्मान और इसकी महिला विंग अकीला को भगोडा अपराधी घोषित किया गया।

3 जून 1994: भारत ने श्रीलंका को लिट़टे प्रमुख विरप्पन और प्रधानमंत्री की हत्या में शामिल अन्य आरोपियों को प्रत्यर्पित करने की मांग की।

30 दिसंबर 1996:- राजीव गांधी हत्याकांड की सुनवाई कर रहे जज सिद्दीकी की जगह वी नवीनथम को जज नियुक्त किया गया। सिद़दीक को मद्रास हाईकोर्ट में जज नियुक्त कर दिया गया।

21 जून 1997: गवाहों के आधार पर आरोपियों से जिरह शुरू हुई।

5 नवंबर 1997: लगभग सात वषरें तक चले मैराथन ट्रायल के बाद इस मामले में कोर्ट ने 28 जनवरी के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया।

28 जनवरी 1997: कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या मामले में सभी 26 आरोपियों को दोषी करार देते हुए लिट्टे प्रमुख विरप्पन को राजीव गांधी की हत्या का दोषी ठहराया।

11 सितंबर 2007: श्रीलंका की रक्षा वेबसाईट ने लिट्टे के आतंकवादी कुमारन पद्माथन [केपी] के थाईलैंड में पकड़े जाने की खबर प्रकाशित की। सीबीआई ने उसके प्रत्यर्पण की मांग की।

12 सितंबर 2007: थाईलैंड पुलिस ने केपी कुमारन पद्मनाथन की गिरफ्तारी की बात से इन्कार किया।

11 मई 1999: सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने राजीव गांधी की हत्या का दोषी ठहराते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया। इसमें नलीनी, संथम, मुरुगन, पेरीवलन कर फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए मामले के अन्य दोषी रोबर्ट पायस, जयकुमार, रविचंद्रन की सजा को उम्रकैद में तबदील कर दिया। निचली अदालत ने इन सभी को भी फांसी की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के अन्य 19 आरोपियों को आरोपमुक्त करते हुए बरी कर दिया।

वर्ष 2000 :- इस मामले में फांसी की सजा पाए दोषियों ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की।

28 जून 2006: लिट्टे ने पहली बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या करवाने की बात कबूल की।

अगस्त 2011: तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए ग्यारह वर्ष बाद सभी दोषियों की दया याचिका को खारिज कर दिया। दया याचिका को दायर करने वाले मुरुगन, संथम, पेरीवलन थे।

30 अगस्त 2011: मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में फांसी की सजा पाए मुरुगन उर्फ श्रीहरन, संथम और पेरीवलन उर्फ अरिवू की फांसी पर रोक लगाते हुए अलग आठ सप्ताह के लिए स्थगन आदेश जारी कर दिया।

18 फरवरी 2014: सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए और फांसी की सजा पाए मुरुगन, संथम और पेरीवलन की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। कोर्ट ने इसकी वजह दया याचिका के निस्तारण में हुई देरी को बताया।


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