श्रीलंका युद्ध अपराध मामले पर गरमाई तमिल सियासत
उत्तरी श्रीलंका में 2009 में हुए कथित युद्ध अपराधों और मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के मुद्दे पर तमिलनाडु की सियासत गरमा गई है। तमिलनाडु विधानसभा ने आज इस मामले में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर आंतरिक जांच का विरोध किया।
चेन्नई। उत्तरी श्रीलंका में 2009 में हुए कथित युद्ध अपराधों और मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के मुद्दे पर तमिलनाडु की सियासत गरमा गई है। तमिलनाडु विधानसभा ने आज इस मामले में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर आंतरिक जांच का विरोध किया।
विधानसभा में प्रस्ताव रखते हुए मुख्यमंत्री जयललिता ने पूर्व की संप्रग सरकार पर इस मुद्दे की अनदेखी करने का आरोप लगाया।उन्होंने कहा कि 2009 में श्रीलंका सरकार ने तमिलों पर योजनाबद्ध तरीके से हमला किया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित आयोग ने भी अल्पसंख्यकों पर अमानवीय अत्याचार की बात स्वीकार की थी।
पढ़ेंः श्रीलंका युद्ध अपराधओं की अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग
मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस अमेरिका ने इससे पहले संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में अंतरराष्ट्रीय जांच का प्रस्ताव पेश किया था, अब वह आंतरिक जांच के लिए राजी है। इस तरह की खबरें हैं कि वह इस मामले में नया प्रस्ताव ला सकता है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। तमिलनाडु विधानसभा ने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि यदि श्रीलंका के समर्थन में अमेरिका कोई प्रस्ताव लाता है, तो वह इसे बदलवाने के लिए कूटनीतिक प्रयास करे। राज्य विधानसभा ने भारत सरकार से इस मामले की अंतरराष्ट्रीय जांच कराने के लिए मानवाधिकार परिषद में कड़ा प्रस्ताव लाने का भी अनुरोध किया है।
अंतरराष्ट्रीय न्यायाधीश के पक्ष में संयुक्त राष्ट्र
जेनेवा। युद्ध अपराध के आरोपों की आंतरिक जांच चाह रहे श्रीलंका सरकार को झटका देते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने इस मामले में अंतरराष्ट्रीय जजों को शामिल करने का सुझाव दिया है। मानवाधिकार उच्चायुक्त जेद राद अल हुसैन ने अपनी रिपोर्ट में लिट्टे पर भी तमिलों, मुसलमानों और सिंहलियों को मरवाने का आरोप लगाया है। रिपोर्ट पेश करते हुए जेद ने कहा कि पूरी तरह से आंतरिक न्याय व्यवस्था दशकों से लोगों के मन में बसे संदेहों को दूर नहीं कर पाएगी। साथ ही सरकारी अधिकारियों के प्रति समाज के एक तबके में जो अविश्वास है, उसे भी कम करके नहीं आंका जा सकता।