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    आस्था की पटरी पर चलेगी विकास की रेलगाड़ी

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    Updated: Sun, 06 Jul 2014 08:27 AM (IST)

    कटरा-ऊधमपुर रेल लाइन के उद्घाटन के साथ 'श्री शक्ति एक्सप्रेस' नाम से दिल्ली से कटरा के बीच ट्रेन सेवा का एलान कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रमुख धर्म स्थलों के लिए रेल सेवाएं और सुविधाएं बढ़ाए जाने का संकेत दे दिया है। इनका विस्तृत ब्योरा रेल बजट में सामने आएगा।

    नई दिल्ली, [जय सिंह]। कटरा-ऊधमपुर रेल लाइन के उद्घाटन के साथ 'श्री शक्ति एक्सप्रेस' नाम से दिल्ली से कटरा के बीच ट्रेन सेवा का एलान कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रमुख धर्म स्थलों के लिए रेल सेवाएं और सुविधाएं बढ़ाए जाने का संकेत दे दिया है। इनका विस्तृत ब्योरा रेल बजट में सामने आएगा।

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    मोदी सरकार आस्था को विकास के साथ संबद्ध कर देश के आर्थिक उत्थान का नया मॉडल विकसित करना चाहती है। देश में धार्मिक स्थलों की कोई कमी नहीं है। हर साल विभिन्न धर्मो से जुड़े लाखों-करोड़ों लोग इन पवित्र स्थानों की यात्रा करते हैं। परंतु न तो यहां बेहतर आधारभूत सुविधाएं हैं और न ही पहुंचने के लिए बेहतर सुविधाओं और साधनों का समुचित इंतजाम है। ज्यादातर लोग यहां पहुंचने के लिए ट्रेनों का इस्तेमाल करते हैं। परंतु न केवल ये अपर्याप्त हैं, बल्कि इनका स्तर व रखरखाव भी ठीक नहीं है। आरक्षण की मांग भी रेलवे पूरा नहीं कर पाता। जबकि सेवाएं व सुविधाएं बढ़ाकर रेलवे अपनी आमदनी कई गुना बढ़ा सकता है।

    देश के जिन प्रमुख धार्मिक स्थलों के लिए रेल सेवाओं की सर्वाधिक मांग है उनमें शिरडी, तिरुपति, सोमनाथ, पुरी, द्वारका, नासिक, इलाहाबाद, वाराणसी, हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा, वृंदावन, रामेश्वरम, अमृतसर, अजमेर, अयोध्या, नाथद्वारा, दिलवाड़ा, पटना साहिब, देवघर, बोधगया, नांदेड़ आदि का नाम शामिल है। इनमें से कुछ स्थानों के लिए तो जरूरत से ज्यादा ट्रेनें उपलब्ध हैं, जबकि कुछ केंद्रों के लिए ट्रेनों का अभाव है। इसके अलावा अनेक ऐसे धर्मस्थल भी हैं जहां के लिए ट्रेनें तो खूब हैं, परंतु रेलवे स्टेशनों की हालत खस्ता है। उदाहरण के लिए दिल्ली से शिरडी जाने वालों का तांता लगा रहता है। परंतु महज दो-चार ट्रेनों के कारण आरक्षण नहीं मिलता। मनमाड और कोपरगांव के स्टेशन भी छोटे हैं। दिल्ली से तिरुपति के लिए तो कोई सीधी ट्रेन ही नहीं है। जबकि पुरी, नासिक, द्वारका और सोमनाथ के लिए एक-एक ट्रेन है। दिल्ली से सीधे वाराणसी जाने के लिए भी ट्रेनों की कमी है। ज्यादातर ट्रेनें मुगलसराय उतारती हैं। रामेश्वरम के लिए निजामुद्दीन से चेन्नई जाकर दूसरी ट्रेन लेनी पड़ती है। नाथद्वारा के लिए चित्तौड़गढ़ से आगे 82 किमी का सफर सड़क मार्ग से करना पड़ता है। हरिद्वार और ऋषिकेश के लिए वर्ष के खास महीनों में ट्रेनों का टोटा हो जाता है। इन जगहों पर स्टेशनों का आकार-प्रकार व सुविधाएं स्तरीय नहीं हैं।

    ऋषिकेश से कर्णप्रयाग-रुद्रप्रयाग नई लाइन का काम दो साल से अटका हुआ है। इसके बनने से बद्रीनाथ-केदारनाथ जाने वालों को सड़क का विकल्प मिलेगा। धार्मिक स्थलों में रेल ढांचे का विकास व विस्तार कर सरकार देशी ही नहीं, बल्कि अनिवासी भारतीयों और विदेशी पर्यटकों को भी देश की सांस्कृतिक विरासत को सजाने-संवारने का अवसर देना चाहती है। छोटे शहरों को हवाई सेवाओं से जोड़ने और नई राजमार्ग परियोजना लाने की सरकार की मंशा के पीछे भी यही उद्देश्य निहित है।

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