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    सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र की मूल भावना को किया नजरअंदाज: जेटली

    By Sanjeev TiwariEdited By:
    Updated: Mon, 19 Oct 2015 12:38 AM (IST)

    आपातकाल और न्यायिक स्वतंत्रता की बात कर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को ठुकरा चुके सुप्रीम कोर्ट पर केंद्रीय वित्तमंत्री व प्रख्यात अधिवक्ता अरुण जेटली ने पलटवार किया है।

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    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आपातकाल और न्यायिक स्वतंत्रता की बात कर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को ठुकरा चुके सुप्रीम कोर्ट पर केंद्रीय वित्तमंत्री व प्रख्यात अधिवक्ता अरुण जेटली ने पलटवार किया है। संविधान के दायरे में ही कोर्ट के फैसले को कठघरे में खड़ा करते हुए जेटली ने सीधा आरोप लगाया है कि अपनी स्वतंत्रता कायम रखने के लिए कोर्ट ने संविधान के मूलभूत सूत्रवाक्य: 'संसदीय लोकतंत्र' को नजरअंदाज कर दिया है। उन्होंने आगाह किया कि भारतीय लोकतंत्र में अन इलेक्टेड(गैर चुने हुए) की निरंकुशता नहीं चल सकती है। अगर चुने हुए प्रतिनिधियों को नजरअंदाज किया गया तो लोकतंत्र खतरे में होगा।

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    ऐतिहासिक तथ्यों और तर्को के सहारे जेटली ने एक ऐसा आधार बनाया है जहां कोर्ट को नए तर्क देने पड़ सकते हैं। गौरतलब है कि कोर्ट ने एनजेएसी में प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष जैसे राजनीतिज्ञों की मौजूदगी का हवाला देते हुए कहा था कि ऐसे में नियुक्त जजों के मन में राजनेताओं के प्रति आभार का भाव आ सकता है। इसका गलत प्रभाव पड़ेगा। लिहाजा राजनीतिज्ञों से जजों की नियुक्ति को अलग रखना आवश्यक है। इसी क्रम में कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी का हवाला देते हुए यह भी कहा था कि आपातकाल की आशंका खारिज नहीं की जा सकती है। लिहाजा कोर्ट को स्वतंत्र होना चाहिए।

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    जेटली ने अपने लंबे लेख में हर बिंदु को तर्को के आधार पर खारिज कर दिया। जेटली ने कहा - 'भारतीय संविधान का मूल और सबसे महत्वपूर्ण ढांचा है संसदीय लोकतंत्र। दूसरा अहम भाग है कि चुनी हुई सरकार। प्रधानमंत्री संसदीय लोकतंत्र के सबसे अहम अंग होते हैं। नेता विपक्ष का पद लोकतंत्र को मजबूत करता है। कानून मंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं। यह सभी मिलकर संसदीय संप्रभुता का हिस्सा हैं। लेकिन कोर्ट ने सिर्फ अपनी स्वतंत्रता का लिहाज किया। वह संविधान और लोकतंत्र के दूसरे पहलू को नजरअंदाज कर गया।' उन्होंने कहा- 'कोर्ट ने चूक किया है.संविधान में कहीं भी ऐसा नहीं कहा गया है कि लोकतंत्र और उसके संस्थानों को चुने हुए प्रतिनिधियों से बचाना चाहिए।' उन्होंने सवाल पूछा कि क्या चुनी हुई सरकार द्वारा नियुक्त चुनाव आयोग या सीएजी मजबूत संस्थान नहीं हैं?

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    आपातकाल के विरुद्ध जेल में रहे जेटली ने इतिहास का भी हवाला दिया और कहा कि कोर्ट पहले भी चूक करती रही है। उन्होंने कहा - 'जब आपातकाल लगा था तो मेरे जैसे लोगो ने इसका विरोध किया था और जेल गए थे। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट चुप था। लिहाजा यह सोचना गलत है कि केवल सुप्रीम कोर्ट ही आपात स्थिति से बचा सकती है।' समलैंगिकों से साथ भेदभाव वाले मुद्दे पर भी जेटली ने पुराने मामले की याद दिलाई। उन्होंने कहा- 'जब हाई कोर्ट ने समलैंगिक संबंध को इजाजत दी थी तो मैंने भी राजनीतिक रूप से फैसले का समर्थन किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए उसे फिर से गैरकानूनी करार दिया। लिहाजा यह कहना भी उचित नहीं होगा कि उन वर्गो की रक्षा केवल सुप्रीम कोर्ट कर सकता है।' सुप्रीम कोर्ट का फैसला होता है लेकिन ऐसा नहीं कि वह गलत न हो।

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    जेटली ने गिनाई फैसले की गल्तियां

    1- संविधान के मुताबिक न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में मुख्य न्यायाधीश सिर्फ परामर्शदाता है और राष्ट्रपति एप्वाइंटिंग अथारिटी जबकि सुप्रीमकोर्ट कोर्ट ने संविधान की व्याख्या करते हुए इसे एकदम उलट दिया। कोर्ट व्याख्या के जरिये प्रावधान का विस्तार कर सकता है उसका मतलब नहीं उलट सकता

    2- सुप्रीमकोर्ट ने सैकेन्ड जज केस में संविधान की व्याख्या तक राष्ट्रपति को परामर्शदाता और मुख्य न्यायाधीश को नियुक्तिकर्ता बना दिया।

    3- थर्ड जज केस में कोर्ट ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश का मतलब है न्यायाधीशों का कोलीजियम। इस फैसले में कोर्ट ने नियुक्ति में राष्ट्रपति की सर्वोच्चता को मुख्य न्यायाधीश या कोलीजियम में बदल दिया।

    4- मौजूदा फैसले में तो अनुच्छेद 124 और 217 की व्याख्या करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने नियुक्तियों के मामले में मुख्य न्यायाधीश को विशेष अधिकार दे दिया और राष्ट्रपति को पूरी तरह अलग कर दिया। दुनिया में कहीं भी कानून की व्याख्या के सिद्धांत में न्यायपालिका को संवैधानिक प्रावधानों की विपरीत व्याख्या का अधिकार नहीं है। कोर्ट सिर्फ कानून की व्याख्या कर सकता है उसका पुनर्लेखन नहीं कर सकता।

    5. सुप्रीमकोर्ट ने संविधान का 99वां संशोधन निरस्त कर दिया है। उसे ऐसा करने का अधिकार है लेकिन कोर्ट ने ऐसा करते समय पहले से निरस्त किये जा चुके प्रावधानों का पुनर्लेखन कर दिया। कोर्ट ऐसा नहीं कर सकता यह काम विधायिका का है

    6.- सुप्रीमकोर्ट ने कोलीजियम व्यवस्था में खामी मानी है लेकिन उसमें सुधार के लिए सुनवाई तय कर दी। कोर्ट ऐसा नहीं कर सकता अगर नियुक्ति प्रक्रिया में खामी है तो उसे विधायिका के जरिये ठीक किया जा सकता है इससे इतर नहीं

    7. न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संसद की संप्रभुता एक साथ कायम रहनी चाहिए। न्यायपालिका की स्वतंत्रता को संसद की संप्रभुता कमजोर करके मजबूत नहीं किया जा सकता।

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