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    आतंकी सुभान ने राहत शिविरों में भी की शिरकत!

    By Edited By:
    Updated: Thu, 09 Jan 2014 09:07 PM (IST)

    मुजफ्फरनगर, जागरण संवाददाता। लश्कर का मेवात मॉड्यूल आतंकी अब्दुल सुभान मुजफ्फरनगर और शामली के राहत शिविरों में रहकर भी दंगा पीड़ितों का हमदर्द बना रहा। दोनों इमाम की दिल्ली पुलिस की स्पेशल विंग द्वारा गिरफ्तारी के बाद सुभान फरार हो गया। पुलिस टीमों की नजर पश्चिमी यूपी समेत कई ठिकानों पर लगी है। केंद्रीय खुफिया एजेंसियों को पकड़

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    मुजफ्फरनगर, जागरण संवाददाता। लश्कर का मेवात मॉड्यूल आतंकी अब्दुल सुभान मुजफ्फरनगर और शामली के राहत शिविरों में रहकर भी दंगा पीड़ितों का हमदर्द बना रहा। दोनों इमाम की दिल्ली पुलिस की स्पेशल विंग द्वारा गिरफ्तारी के बाद सुभान फरार हो गया। पुलिस टीमों की नजर पश्चिमी यूपी समेत कई ठिकानों पर लगी है। केंद्रीय खुफिया एजेंसियों को पकड़े गए इमाम ने संकेत दिए थे कि सुभान देवबंद के बाद राहत शिविरों का जायजा लेने पहुंचा था।

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    पढ़ें: नया मॉड्यूल खड़ा करना चाहता है आतंकी सुभान

    भले ही यूपी पुलिस के आलाधिकारी नाकामी को छुपाने के लिए लश्कर ए तय्यवा और आइएम की मुजफ्फरनगर और शामली में न होने का राग अलाप रहे हों, लेकिन दिल्ली पुलिस द्वारा किए खुलासे के बाद यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग गया। दिल्ली में मेवात निवासी गिरफ्तार दोनों इमाम से केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने भी पूछताछ की थी। सूत्र बताते हैं कि लश्कर का मॉड्यूल भी मेवात निवासी आतंकी अब्दुल सुभान ही है। उसके संपर्क में दोनों इमाम थे और उसके हुक्म पर ही दोनों ने जमीरुल इस्लाम और वरिष्ठ शिक्षक लियाकत से बातचीत की। थानाभवन रेलवे स्टेशन से दोनों को लियाकत ने ही ट्रेन में बैठाया था। सुभान भी देवबंद के रास्ते मुजफ्फरनगर स्टेशन पहुंचा और वहां से होते हुए लोई राहत शिविर में दंगा पीड़ितों के जख्म पर मरहम लगाते हुए युवाओं को दीन-ईमान के नाम पर बरगलाने की कोशिश की। बताते हैं कि इसके बाद सुभान ने शामली के राहत शिविरों का रुख किया। चार दिनों की मशक्कत कर युवाओं में उसने बदला लेने की बात कूट-कूटकर भरी थी। हालांकि यूपी पुलिस के अफसर चाहे जो भी कहें, लेकिन दिल्ली पुलिस की तफ्तीश जारी है और कई बड़े खुलासे अभी हो सकते हैं।

    सहेंगे सारे सितम, नहीं जाएंगे

    घर

    मुजफ्फरनगर । शाहपुर कस्बे के ईदगाह के पास खाली प्लाट में रह रहे विस्थापितों ने घर से जाने से मना कर दिया है। काकड़ा, कुटबा-कुटबी के शरणार्थियों ने कहा कि वह सारे सितम सहने को तैयार हैं, लेकिन बिना मुआवजा और पुनर्वास योजना का लाभ लिए तंबू नहीं उखाड़ेंगे। प्रशासन मुआवजा देने में भेदभाव न करे। लोगों का आरोप है कि वह गांव में अपने-अपने परिवार के साथ अलग रह रहे थे। सभी के राशन कार्ड और सरकारी कागजात अलग हैं तो मुआवजा भी अलग मिलना चाहिए। मुआवजा और पुनर्वास नीति में सरकार ने अनदेखी की है, लेकिन जब तक मुआवजा नहीं मिलता तब तक वह तंबुओं में ही जम रहेंगे। सरकार और सर्दी का सितम सहने को तैयार हैं।

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