अब 'आप' से नजदीकियां बढ़ाने में लगे तौकीर
चले तो खेल बनाने थे। अपना भी और सरकार का भी लेकिन बन नहीं सका। लिहाजा अब बिगाड़ने की कसम खाकर ताल ठोंक रहे हैं। सपा से रिश्ते तोड़ने के बाद मौलाना तौकीर रजा खां सूबे की सत्ताधारी पार्टी को मात देने की व्यूहरचना में लग गए हैं। इसके लिए दिल्ली से मुंबई तक संभावनाएं तलाश रहे हैं। फिलहाल आम आदमी पार्टी
बरेली, [वसीम अख्तर]। चले तो खेल बनाने थे। अपना भी और सरकार का भी लेकिन बन नहीं सका। लिहाजा अब बिगाड़ने की कसम खाकर ताल ठोंक रहे हैं। सपा से रिश्ते तोड़ने के बाद मौलाना तौकीर रजा खां सूबे की सत्ताधारी पार्टी को मात देने की व्यूहरचना में लग गए हैं। इसके लिए दिल्ली से मुंबई तक संभावनाएं तलाश रहे हैं। फिलहाल आम आदमी पार्टी के साथ नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश में लगे हैं। वैसे संपर्क में बसपा नेताओं के भी हैं। सपा से मौलाना की पार्टी ऑल इंडिया इत्तेहाद-ए-मिल्लत का गठजोड़ लोकसभा चुनाव के लिए हुआ था। बतौर पेशगी उन्हें हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग में सलाहकार की लालबत्ती मिली। आगे के लिए भी बहुत कुछ मांगों और वायदों का तानाबाना बुना गया था। वे पूरे नहीं हुए तो मुस्लिमों से जुड़ी दंगा आयोग समेत तीन मांगों का मामला गर्मा गया और मौलाना ने सपा से रिश्ते तोड़ लिए। अब उनका पहला टारगेट सपा को नुकसान पहुंचाना है। अभी उनकी अगुवाई वाली आइएमसी का किसी दूसरी पार्टी से चुनावी गठबंधन नहीं हुआ है।
मौलाना इस मुद्दे पर इंतजार की बात कह रहे हैं। हां, सूबे की सत्ताधारी पार्टी के विरोधी दलों से उनकी नजदीकियां होने की खबरें आ रही हैं। सूत्रों के मुताबिक बसपा नेताओं से बरेली में ही बात हो चुकी है। आम आदमी पार्टी नेताओं से बात करने पिछले दिनों दिल्ली गए थे। फिलहाल मौलाना दिल्ली से मुंबई चले गए हैं। दो दिन बाद लौटेंगे। तभी साफ होगा चुनावी खिचड़ी किस दल के साथ पकी है। बहरहाल, सूबे की और सीटों पर मौलाना का कितना असर होगा, यह चुनावी नतीजे बताएंगे। हां, बरेली और आंवला के लोकसभा चुनाव में समीकरण बिगाड़ने का प्रयास वे जरूर करेंगे। विधानसभा चुनाव में आइएमसी उम्मीदवारों को मिले वोट भी कुछ ऐसे ही संकेत दे रहे हैं। बरेली में छह विधानसभा सीटों से लड़े। एक सीट भोजीपुरा जीती और पांच पर उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को 15 से 30 हजार के बीच वोट मिले थे।
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मौलाना की महत्वाकांक्षा
मौलाना आला हजरत खानदान के ऐसे अकेले चश्म-ओ-चिराग हैं, जिन्होंने धार्मिक संगठन बनाने के बजाए सियासी रास्ता चुना। 1991 में विधान सभा चुनाव लड़े लेकिन बुरी तरह हारे। फिर 2001 में ऑल इंडिया इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल बनाई। चुनावी आगाज नगर निगम चुनाव से किया। एक दर्जन पार्षद जिता लिए। विधानसभा चुनाव अपने बूते लेकिन लोकसभा में पिछली बार कांग्रेस के साथ थे। इस बार सपा से तालमेल किया, जो टूट चुका है।
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