पाकिस्तान पर पलटवार कर रहा तालिबान
पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर तालिबान का बर्बर हमला उच्चतम स्तर की त्रासदी है। अभी एक माह पहले ही तालिबान के आत्मघाती हमलावर ने अफगानिस्तान में वॉलीबॉल मैच देख रहे 60 से अधिक लोगों को मार डाला। आखिर इन बर्बर हमलों का कारण क्या है?
पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर तालिबान का बर्बर हमला उच्चतम स्तर की त्रासदी है। अभी एक माह पहले ही तालिबान के आत्मघाती हमलावर ने अफगानिस्तान में वॉलीबॉल मैच देख रहे 60 से अधिक लोगों को मार डाला। आखिर इन बर्बर हमलों का कारण क्या है? पाकिस्तान और अफगानिस्तान की हालिया घटनाओं से कुछ ऐसे अहम संकेत मिलते हैं, जिनसे हमले के कारणों को समझने में हमें मदद मिल सकती है।
आने वाले दिनों में अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी होनी है। इससे तालिबान का हौसला बढ़ गया है और उसने आत्मघाती हमले तेज कर दिए हैं। वह महत्वपूर्ण लोगों व निर्दोष नागरिकों की जान ले रहा है। उसका मकसद साफ है। वह भय पैदा करने के साथ ही आम लोगों को यह जताना चाहता है कि सरकार उन्हें नहीं बचा सकती। दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में तालिबान लोगों को मौत का डर दिखाकर उनसे वसूली भी कर रहा है। इससे जाहिर होता है कि इन हमलों से लोगों में खौफ पैदा होने के अलावा तालिबान को नियमित आमदनी का अवसर भी मिल जाता है।
समस्या का एक दूसरा पहलू भी है। हथियारबंद आतंकी गुटों के सहारे अफगानिस्तान व भारत को अस्थिर करने की पाकिस्तानी सेना की रणनीति अब उलटी पड़ने लगी है। आतंकियों ने पाकिस्तान पर पलटवार करना शुरू कर दिया है। 'अच्छे' तालिबान और 'बुरे' तालिबान में फर्क की उसकी नीति अब एक हकीकत बनती जा रही है। 'अच्छा' तालिबान वह है, जो अफगानिस्तान की सरकार और जनता के खिलाफ अभियान चला रहा है और 'बुरा' तालिबान उसे माना जा रहा है, जो पाकिस्तान में कार्रवाई कर रहा है।
उत्तरी वजीरिस्तान में पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई में अल कायदा के कुछ बड़े पदाधिकारी मारे गए और कुछ गिरफ्तार कर लिए गए। हालांकि, सेना ने अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास और वाणिज्य दूतावास सहित कई ठिकानों पर हमले में शामिल हक्कानी समूह के किसी सदस्य को छुआ तक नहीं। इससे भी बुरी बात ये हुई कि सेना की गोलीबारी और हवाई बमबारी में निर्दोष लोग मारे गए। पांच लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित ठिकानों की तलाश में अपना घरबार छोड़कर जाना पड़ा। इसके चलते इन इलाकों के लोग पाकिस्तानी सेना के और भी ज्यादा खिलाफ हो गए।
यह बात अब सबकी समझ में आ जानी चाहिए कि आतंकवाद व आतंकी समूह किसी सरकार या समाज के मित्र नहीं होते। उन्हें अपनी 'रणनीतिक ताकत' मान लेना एक खतरनाक नीति है और इसकी कीमत हमेशा निर्दोष जनता को चुकानी पड़ती है।
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