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'अश्विनी और बंसल की बलि दो तो बिल होने देंगे पास'

भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे से बाहर आने के लिए खाद्य सुरक्षा विधेयक को ढाल बना रही कांग्रेस सरकार को भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि कानून मंत्री अश्विनी कुमार और रेल मंत्री पवन बंसल के इस्तीफे से पहले कोई विधेयक पारित नहीं हो सकता है। दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने संयुक्त बयान जारी कर बिंदुवार दोनों मंत्रियों के भ्रष्टाचार गिनाए। सुषमा ने यह संकेत दिया कि सरकार चुनावी लिहाज से अहम मान रही खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराना चाहती है

By Edited By: Published: Mon, 06 May 2013 04:27 PM (IST)Updated: Tue, 07 May 2013 08:50 AM (IST)
'अश्विनी और बंसल की बलि दो तो बिल होने देंगे पास'

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे से बाहर आने के लिए खाद्य सुरक्षा विधेयक को ढाल बना रही कांग्रेस सरकार को भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि कानून मंत्री अश्विनी कुमार और रेल मंत्री पवन बंसल के इस्तीफे से पहले कोई विधेयक पारित नहीं हो सकता है। दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने संयुक्त बयान जारी कर बिंदुवार दोनों मंत्रियों के भ्रष्टाचार गिनाए। सुषमा ने यह संकेत दिया कि सरकार चुनावी लिहाज से अहम मान रही खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराना चाहती है तो दोनों मंत्रियों की बलि देनी होगी।

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अब तक अश्विनी और बंसल के इस्तीफे से इन्कार करती रही सरकार को अब यह फैसला लेना होगा कि उन्हें दो मंत्री चाहिए या फिर वे दो विधेयक जो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर उपाध्यक्ष राहुल गांधी के किए गए वादों से जुड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट में सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाले सीबीआइ के शपथ पत्र के बाद संसद में विपक्षी एकता ने यह संकेत दे दिया है कि दोनों हासिल करना कम से कम इस सत्र में तो बहुत मुश्किल है। यही कारण है कि लोकसभा में खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित कराने की कोशिशों को नाकाम करने के बाद भाजपा ने चेतावनी के स्वर में आगाह कर दिया कि पहले मंत्रियों को बर्खास्त करें। फिर भाजपा भी दोनों विधेयकों के पक्ष में है।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल सीबीआइ के शपथ पत्र में यह साबित हो गया कि कानून मंत्री व पीएमओ के संयुक्त सचिव ने रिपोर्ट में बदलाव कराए थे। इसके बाद सुषमा और जेटली ने संयुक्त बयान जारी कर कहा कि सरकार के अटार्नी जनरल और एडिशनल सालिसिटर जनरल ने कोर्ट में झूठ कहा था, तो कानून मंत्री ने भी गलतबयानी की थी। शपथ पत्र में स्पष्ट है कि कानून मंत्री और संयुक्त सचिव ने भी अहम बदलाव कराए थे जिसका पूरे केस पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता।

दूसरी ओर, पवन बंसल का मामला सीधे भ्रष्टाचार का है। जेटली और सुषमा ने कानूनी पहलू को बिंदुवार सजाते हुए कहा कि महेश कुमार को पदोन्नत करने का फैसला रेल मंत्री बंसल का था। जबकि मध्यस्थ कोई अनजान नहीं था। वह रेल मंत्री का करीबी था। सबसे अहम वह टेलीफोन वार्ता है, जिसमें बंसल के भांजे विजय सिंगला ने वादा किया था कि बंसल के जरिये काम हो जाएगा। यह भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मान्य साक्ष्य है।

शोरशराबे में खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित कराने की कोशिश पर आपत्ति जताते हुए सुषमा ने आरोप लगाया कि सरकार भ्रष्टाचारी और अत्याचारी दोनों हो गई है। यह पहले ही फैसला हो गया था कि कोई भी विधेयक शोर शराबे में पारित नहीं कराया जाएगा। कांग्रेस नेतृत्व का व्यवहार विपक्ष को मर्यादा तोड़ने के लिए मजबूर कर रहा है। उन्होंने शर्त रखी कि कांग्रेस दोनों आरोपी मंत्रियों का इस्तीफा ले तो सदन भी चलेगा और विधेयक भी पारित होंगे। दरअसल दोनों विधेयकों का विरोध जहां भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से मुश्किल है, वहीं अगर दोनों मंत्रियों का इस्तीफा हो जाता है तो पार्टी को एक बड़ी राजनीतिक जीत जरूर मिल सकती है।

'सीबीआइ के हलफनामे के बाद अब सरकार को बताना होगा कि पीएमओ के अधिकारी किसके निर्देश पर बैठक में गए थे और उन्हें कौन सा बदलाव करने के लिए कहा गया था।'- रविशंकर प्रसाद, भाजपा नेता

प्रधानमंत्री पर भी नरम नहीं होगी भाजपा

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद तक होते रहे घटनाक्रम से सतर्क हुई भाजपा ने भी अपनी रणनीति तैयार कर ली है। देर शाम भाजपा कोरग्रुप की बैठक में सभी वरिष्ठ सदस्यों ने मौजूदा हालात पर चर्चा की। बताते हैं कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केवल दोनों आरोपी मंत्रियों तक नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे के लिए भी दबाव बनाया जाएगा। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत अश्विनी कुमार और पवन बंसल को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना चाहिए।

खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित कराना सरकार के लिए जहां अहम है वहीं भाजपा की मजबूरी है कि इस बिल का विरोध करते नहीं दिखना चाहती है, लेकिन अपनी मांग पूरी हुए बिना पार्टी इसे पारित भी नहीं होने देना चाहती। लिहाजा कोर ग्रुप की बैठक हुई तो इसकी रणनीति भी बनी।

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