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    कोलेजियम की सिफारिश रोकने से नाराज हुआ सुप्रीम कोर्ट

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Sat, 13 Aug 2016 10:50 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने कोलेजियम व्‍यवस्‍था के तहत जजों की नियुक्ति और उनके ट्रांसफर पर अमल न होने पर सरकार से नाराजगी का इजहार किया है। ...और पढ़ें

    नई दिल्ली (पीटीआई)। न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और सरकार के बीच टकराव बढ़ता नजर आ रहा है। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट का रुख भी सरकार के प्रति सख्त नजर आया। न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में सरकार की ढिलाई पर कोर्ट ने कड़ा ऐतराज जताया। कोर्ट ने पूछा कि कोलेजियम की सिफारिश के बावजूद न्यायाधीशों की नियुक्ति और ट्रांसफर क्यों नहीं हो रहा। क्यों और किस अथारिटी ने इसे रोक रखा है।

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    कोर्ट ने कोलेजियम की सिफारिश पर अमल को लेकर अटार्नी जनरल से चार सप्ताह में ब्योरा मांगा है। सरकार के ढुलमुल रवैये पर मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो अलग अलग जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणियां कीं। सेवानिवृत लेफ्टीनेंट कर्नल अनिल कबोत्रा ने जनहित याचिका दाखिल कर अदालत में लंबित मामलों और उनके निपटारे का मुद्दा उठाया है। याचिका पर सुनवाई शुरू होने पर पीठ ने अटार्नी जनरल को बुलाया।

    पीठ ने उनसे कहा कि न्याय प्रदान प्रणाली ध्वस्त हो रही है। ये ढुलमुल रवैया नहीं चलेगा। वे इसमें दखल देंगे और जवाबदेही तय करेंगे। कोलेजियम ने 75 लोगों की सिफारिश की थी। आठ महीने हो गए अभी तक कुछ नहीं हुआ। यह एक तरह से पूरी प्रक्रिया को रोकना है। हाई कोर्ट में 43 फीसद पद रिक्त पड़े हैं। लंबित मुकदमों की संख्या आसमान छू रही है। अगर सरकार को किसी नाम पर आपत्ति है तो वह उसे जरूरी दस्तावेजों के साथ कोलेजियम को वापस भेज सकती है।

    कोर्ट के सख्त रुख को देख कर अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि वे इस मसले को सर्वोच्च स्तर तक लेकर जाएंगे और निर्देश लेकर कोर्ट को सूचित करेंगे। उन्होंने कोर्ट से चार सप्ताह का समय मांगा। पीठ ने रोहतगी से कहा कि आपको यह मामला गंभीर नहीं लगता, लेकिन लोगों के लिए गंभीर मुद्दा है। यह याचिका पंचकुला में रहने वाले रिटायर सैन्य अधिकारी ने दाखिल की है जो दर्शाता है कि लोग इसे लेकर चिंतित हैं।कोर्ट ने कहा कि जजों की नियुक्ति प्रक्रिया (एमओपी) तय होने तक न्यायाधीशों की नियुक्तियां नहीं रोकी जा सकती।

    शीर्ष कोर्ट ने आंध्र प्रदेश और इलाहाबाद हाई कोर्ट में जजों की कमी का भी उदाहरण दिया। पीठ ने कहा कि जो मुख्य न्यायाधीश हाल में स्थानांतरित किये गए हैं वे भी अभी अधिसूचित नहीं हुए हैं।सरकार पर जुर्मानासड़क दुर्घटना से संबंधित जनहित याचिका पर तीन साल से जवाब दाखिल न करने पर भी कोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई। सरकार पर 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने कहा कि हजारों लोग दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं और सरकार गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाए हुए है।

    कोर्ट ने कहा कि आप (सरकार) सवाल उठाते हैं कि हम (न्यायपालिका) तेजी से काम नहीं करते। लेकिन आप क्या कर रहे हैं। इतना बड़ा सरकारी अमला है और तीन साल से जवाब दाखिल नहीं किया गया। राज्यसभा में सरकार ने दिया जवाबजब सरकार के ढीले रवैये पर अदालत नाराज हो रही थी, तब सरकार राज्यसभा को सूचित कर रही थी कि देश के 24 हाई कोर्टो में जजों के 478 पद खाली हैं और इनमें करीब 39 लाख मुकदमें लंबित हैं। कानून मंत्रालय की ओर से यह भी जानकारी दी गई कि हाई कोर्टो में न्यायाधीशों के 906 स्वीकृत पदों को बढ़ा कर 1079 कर दिया गया है।

    फिलहाल हाई कोर्टो में 601 न्यायाधीश काम कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी तीन पद रिक्त हैं। हालांकि कानून मंत्रालय नहीं मानता कि जजों की नियुक्ति का काम रुका है। पिछले दिनों कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया था कि जनवरी से लेकर अभी तक हाई कोर्ट के 110 अतिरिक्त जजों को स्थाई किया गया है। 52 नए जज नियुक्त हुए हैं। चार न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हुए।

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