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    एंबुलेंस के मानक तय न होने पर सुप्रीमकोर्ट ने जताई चिंता

    By Gunateet OjhaEdited By:
    Updated: Wed, 29 Jun 2016 10:09 PM (IST)

    कोर्ट ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि एंबुलेंस के लिए कोई मानक तय नहीं है किसी भी वाहन पर पंखा लगा कर उसे एंबुलेंस पंजीकृत करा लिया जाता है।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश में एंबुलेंस के लिए कोई मानक तय न होने पर बुधवार को सुप्रीमकोर्ट ने चिंता जताई। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि एंबुलेंस के लिए कोई मानक तय नहीं है किसी भी वाहन पर पंखा लगा कर उसे एंबुलेंस पंजीकृत करा लिया जाता है। जबकि एंबुलेंस में डाक्टर और नर्स के अलावा जरूरी जीवन रक्षक उपकरण होने चाहिए। एम्स ने इस बारे में सरकार को रिपोर्ट दी थी। उस रिपोर्ट क्या हुआ। कोर्ट ने एंबुलेंस के मानकों के बारे में एम्स की रिपोर्ट पर सरकार से जवाब मांगा है।

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    ये टिप्पणियां मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ तीन सदस्यीय पीठ ने दिल्ली सरकार की 110 एंबुलेंस के पंजीकरण की मंजूरी मांगने वाली अर्जी पर सुनवाई के दौरान कीं। हालांकि कोर्ट ने दिल्ली सरकार को ट्रामा सेंटर के लिए 2000 सीसी से ज्यादा क्षमता वाली 110 डीजल चालित एंबुलेंस पंजीकृत कराने की अनुमति दे दी। इतना ही नहीं इन एंबुलेंस के पंजीकरण में पर्यावरण शुल्क भी नहीं लगेगा। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार एंबुलेंस पंजीकरण के लिए तो आ जाती है लेकिन आज तक उसने एंबुलेंस के लिए मानक तय नहीं किये हैं। आखिरकार एंबुलेंस के मानक तो तय होने ही चाहिये।

    उसमें डाक्टर और नर्स के अलावा जीवन रक्षक उपकरण होने चाहिये। एम्स ने इस बारे में दुनियाभर से विचार विमर्श करके एंबुलेंस के मानक तय किये थे। एम्स ने इस बारे में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। सरकार ने उस रिपोर्ट पर क्या किया। रिपोर्ट कहीं किसी के पास पड़ी धूल खा रही होगी। सरकार ने अभी तक उसे अधिसूचित नहीं किया है। कोर्ट के रुख पर केंद्र सरकार की वकील ने कहा कि वे इस बारे में निर्देश लेकर कोर्ट को सूचित करेंगी। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह चार सप्ताह के भीतर बताए कि उसने एम्स की रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई की।

    इसके अलावा कोर्ट ने 2000 सीसी से अधिक क्षमता वाले वाहनों के पंजीकरण पर रोक हटाने की मांग कर रही कंपनियों से कहा कि वे प्रदूषण कम करने के बारे में कोर्ट को सुझाव दें। वे एक रोडमैप दाखिल करें जिसमें बताएं कि डीजल वाहनों पर कितना सेस लगाया जा सकता है और वाहनों को कैसे श्रेणी में बांटा जाए। इसके अलावा वाहनों का प्रदूषण जांचने का क्या तरीका हो यह भी बताएं। कोर्ट ने सवाल किया कि अगर यूरोप की तरह भारत में भी कंपनियां प्रदूषण मानक में फेल हो गईं तो क्या होगा। इस मामले में चार जुलाई को फिर सुनवाई होगी।

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