हौसले की कहानी: न दर्द की परवाह की, न हाथ से बहते खून की
सिर्फ बाएं हाथ से वह रायफल साध नहीं पाती थीं। असहनीय दर्द होता। हाथ से खून तक बहने लगता था। लेकिन मन में कुछ कर दिखाने का जज्बा था।
आगरा (जागरण संवाददाता)। उसने हौसले की उड़ान में दिव्यांगता को कभी आड़े नहीं आने दिया। न तो कभी दर्द की परवाह की और न ही अपने हाथ से बहते खून की। यह कहानी है आगरा की रहने वाली दिव्यांग शूटर सोनिया शर्मा की, जिन्होंने हालही पैरा वल्र्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। हाथ नहीं हौसला चाहिए: सोनिया ने शूटिंग की शुरुआत रायफल से की थी। वजनी रायफल चलाने के लिए दूसरे हाथ की सख्त जरूरत पड़ती है। सोनिया को इसमें काफी दिक्कत होती थी।
सिर्फ बाएं हाथ से वह रायफल साध नहीं पाती थीं। असहनीय दर्द होता। हाथ से खून तक बहने लगता था। लेकिन मन में कुछ कर दिखाने का जज्बा था। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। डटी रहीं। शूटिंग रेंज में निरंतर कड़ा अभ्यास किया। मंजिल हालांकि पिस्टल से मिली, लेकिन रायफल से किया जाने वाला कठिन अभ्यास इसकी बुनियाद बना। मेहनत और प्रण के बूते आखिरकार उन्होंने वह कर दिखाया, जो वह चाहती थीं। शुक्रवार को थाईलैंड में संपन्न विश्व चैंपियनशिप के टीम इवेंट में सोनिया ने पिस्टल से सुनहरा निशाना साधा। वह टॉप-8 में जगह पाने में भी सफल रहीं।
अब ओलंपिक है लक्ष्य: सोनिया ने अपनी उपलब्धि पर कहा, स्वर्ण पदक जीतकर अच्छा लग रहा है। वल्र्ड चैंपियनशिप में अच्छा प्रदर्शन कर पैरा ओलंपिक का कोटा हासिल करना मेरा लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि चुनौतियों पर जीत हासिल करने को निरंतर अभ्यास और कड़ी मेहनत जरूरी है। ऐसा करेंगे तो सफलता अपने आप मिलेगी।
प्रण की जीत: सोनिया की मां जनक शर्मा बताती हैं कि यह सोनिया के प्रण की जीत है। बेटी की सफलता पर वह कहती हैं कि सोनिया ने पूरे परिवार का नाम रोशन कर दिखाया। उसकी सफलता की खबर सुन ऐसा लग रहा है, जैसे मैं हवा में उड़ रही हूं। जनक कहती हैं कि सोनिया ने अभ्यास नहीं तपस्या की है। हर दर्द को सहा है। लेकिन जो ठाना वह कर दिखाया। आज हम सभी को उस पर गर्व है। सोनिया नेसेंट एंड्रूज स्कूल की शूटिंग रेंज में कोच आलोक वैष्णव की देखरेख में रायफल शूटिंग को चुना था। इसमें उन्होंने शुरुआती कुछ साल अभ्यास किया। बाद में एकलव्य स्पोट्र्स स्टेडियम में शूटिंग रेंज बन जाने के बाद वह वहां अभ्यास करने लगीं।
शुरुआत उन्होंने रायफल से की थी। लेकिन एक हाथ से रायफल से अभ्यास करना बहुत कठिन तो था ही, निशाना साधने में भी दिक्कत आती थी। स्टेडियम में प्रशिक्षण शुरू करने के बाद सोनिया ने नए कोच की सलाह पर रायफल को छोड़ पिस्टल से अभ्यास करना शुरू कर दिया। स्टेडियम के शूटिंग कोच विक्रांत तोमर बताते हैं कि यह बदलाव काम कर गया। रायफल से निशाना साधने की अभ्यस्त सोनिया के लिए पिस्टल थामना उतना कठिन नहीं था। लेकिन इसमें भी अनुशासित और कड़े अभ्यास के बूते ही यह मुकाम हासिल किया है।
-एक हाथ के बावजूद रायफल से निशानेबाजी को चुना
-अभ्यास से मिली सफलता पिस्टल से जीता सोना
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