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गांधी परिवार को बचाने तक सीमित रही कार्यसमिति

हार के कारणों पर मंथन के लिए बुलाई गई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक महज गांधी परिवार को बचाने तक ही सीमित रही। एक लिखी-लिखाई पटकथा के तहत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों में अब तक की सबसे शर्मनाक हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत पूरी कांग्रेस ने एक सुर से इसे नकार दिया।

By Edited By: Published: Mon, 19 May 2014 05:22 AM (IST)Updated: Tue, 20 May 2014 04:33 AM (IST)
गांधी परिवार को बचाने तक सीमित रही कार्यसमिति

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। हार के कारणों पर मंथन के लिए बुलाई गई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक महज गांधी परिवार को बचाने तक ही सीमित रही। एक लिखी-लिखाई पटकथा के तहत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों में अब तक की सबसे शर्मनाक हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने इस्तीफे की पेशकश की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत पूरी कांग्रेस ने एक सुर से इसे नकार दिया। कांग्रेस कार्यसमिति ने एक प्रस्ताव पारित कर हार की सामूहिक जिम्मेदारी ली और नतीजों के मद्देनजर परिवर्तन की जरूरत बताई। इस बारे में हर फैसले के लिए सीडब्ल्यूसी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अधिकृत कर दिया। संकेत साफ हैं कि आने वाले दिनों में संगठन में बडे़ स्तर पर फेरबदल होंगे, जिसमें चुनावी अभियान संभालने वाली टीम राहुल निशाने पर होगी।

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पहले से तय था कि तत्काल प्रभाव से कांग्रेस कोई बड़ा फैसला नहीं लेगी। कारण साफ था कि किसी भी उत्तरदायित्व की पहली जिम्मेदारी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की होती। लिहाजा, शुरुआत में ही कांग्रेस अध्यक्ष ने नतीजों के लिए जिम्मेदारी ली और खुद के इस्तीफे की पेशकश कर दी। इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार के स्तर पर कमी की जिम्मेदारी ली। उन्होंने माना कि मूल्य वृद्धि और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जिस तरह की स्थितियां उत्पन्न हुईं, शायद हम उसका उचित उत्तर नहीं दे पाए। कांग्रेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों ने जितना श्रम किया व संगठन चलाने का बोझ उठाया, वह असाधारण है। उन्होंने कहा कि इस्तीफा समाधान नहीं है। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने जवाबदेही का सवाल उठाया। साथ ही कहा कि उन्हें लगता है कि पार्टी में कामकाज को लेकर कोई जवाबदेही नहीं है। उन्होंने इस चुनाव के दौरान नेतृत्व करने में खरे न उतरने का हवाला देते हुए खुद से उत्तरदायित्व की शुरुआत करने का एलान किया। उन्होनें इस क्रम में इस्तीफे की पहल की। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने बताया कि कांग्रेस कार्यसमिति ने एक राय से इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। सभी ने कहा कि इस्तीफा समस्या का हल नहीं है।

बकौल द्विवेदी कार्यसमिति के सदस्यों ने संगठन को मजबूत करने और बदलावों की जरूरत बताते हुए तमाम सुझाव दिए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि आने वाले समय में बड़े बदलाव होंगे, जिनके लिए सीडब्ल्यूसी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अधिकृत कर दिया है। माना जा रहा है कि फिलहाल संगठन व सरकार को नतीजों से बचाते हुए सोनिया ने भविष्य में बड़े स्तर पर फेरबदल के पुख्ता संकेत दे दिए हैं। हार के कारणों की जांच के लिए एक समिति भी गठित की जाएगी। एक बात तय है कि चुनाव के दौरान संपर्क या प्रचार अभियान संभालने वाली टीम राहुल के पर कतर दिए जाएंगे।

हार का ठीकरा मीडिया व ध्रुवीकरण पर

हार से सबक लेने के बजाय कांग्रेस अब खीझ उतारने में जुट गई है। जनादेश को स्वीकार करना कांग्रेस के लिए कितना मुश्किल हो रहा है, इसे पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के बयान से समझा जा सकता है। उन्होंने नतीजों को निराशाजनक तो बताया, लेकिन इसका ठीकरा नरेंद्र मोदी की ध्रुवीकरण की राजनीति और मीडिया की आक्रामकता पर फोड़ दिया। सोनिया ने कहा कि देश में जिस तरह का वातावरण बनाया गया और समाज में ध्रुवीकरण का प्रयास किया गया, वह चिंताजनक है। साथ ही उन्होंने भाजपा के आक्रामक प्रचार और मीडिया में ज्यादा कवरेज को लेकर कहा, 'हमारे विरोधियों ने असीमित साधनों का उपयोग किया।' हालांकि, उन्होंने माना कुछ कमी संगठन के स्तर पर भी रही।

'कुछ कमियां हमारी तरफ से भी रहीं। हमें सरकार और पार्टी की तरफ से जो कुछ करना चाहिए था, वह पूरी तरह से नहीं कर पाए। अगर समय से परिवर्तन होते तो इस हालत से नहीं गुजरते। इसकी जिम्मेदारी लेते हुए मैं पद छोड़ने का एलान करती हूं।'

-सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष

'मूल्य वृद्धि और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जिस तरह की स्थितियां उत्पन्न हुईं, शायद हम उसका उचित उत्तर नहीं दे पाए।'

-मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री

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