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    कांग्रेस में तेज हुए प्रियंका लाओ के सुर

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    Updated: Sun, 18 May 2014 03:09 AM (IST)

    सबसे बड़ी पराजय के बाद कांग्रेसियों का मोह राहुल गांधी से तो भंग होता दिख रहा है, लेकिन इस संकट से उबरने की कोशिश कर रही कांग्रेस अब भी गांधी परिवार से आगे नहीं देख पा रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान उठे प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ के मद्धिम सुर नतीजों के बाद बुलंद हो रहे हैं। संगठन की कमान प्रियंका

    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सबसे बड़ी पराजय के बाद कांग्रेसियों का मोह राहुल गांधी से तो भंग होता दिख रहा है, लेकिन इस संकट से उबरने की कोशिश कर रही कांग्रेस अब भी गांधी परिवार से आगे नहीं देख पा रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान उठे प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ के मद्धिम सुर नतीजों के बाद बुलंद हो रहे हैं। संगठन की कमान प्रियंका गांधी को देने के लिए अगले कुछ दिन में पूरे देश से आवाज बुलंद होने के स्पष्ट संकेत मिलने लगे हैं।

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    सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी की कार्यशैली से खफा पार्टी के बुजुर्ग नेता इन नतीजों के बाद अब अपना अभियान तेज करेंगे। वैसे तो चुनाव के बीच ही कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर भ्रम खड़ा हो गया था। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के संगठन व सरकार से अलग अपने ही अंदाज में काम करने और पुराने नेताओं को भाव न देने पर पहले ही सवाल खड़े हो रहे थे। उसी समय संगठन के बीच समन्वय को लेकर संकट पैदा हो गया था। राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विश्वस्त रहे पुराने नेताओं को पूरी तरह किनारे करने की कोशिश की। यही नहीं, राहुल के करीबियों का मानना था कि उनकी नीतियों से कांग्रेस को नुकसान हो रहा है। कांग्रेस के पुराने दिग्गज मान रहे थे कि अपने पुराने अंदाज और सिद्धांत से हटने का पार्टी को नुकसान हो रहा है। नई और पुरानी टीम के बीच मतभेद इतने बढ़े कि पार्टी के बीच संवादहीनता जैसा संकट पैदा होता जा रहा था। उस समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी हस्तक्षेप करना पड़ा। आखिर राहुल और पार्टी के पुराने नेताओं से संवाद स्थापित करने के लिए प्रियंका गांधी पहली बार अमेठी व रायबरेली के बाहर सीधे कांग्रेस की रणनीतिक टीम का हिस्सा बनीं। राहुल व पार्टी के बीच संवाद और वार रूम का प्रबंधन प्रत्यक्ष रूप से प्रियंका ने संभाला।

    इस बार भी वह रायबरेली और अमेठी में ही रहीं, लेकिन राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी तक से लोहा लिया। उसी समय प्रियंका लाने के नारे तेज हो गए थे, लेकिन चुनाव के चलते उसे शांत कर दिया गया। अब जब चुनावी नतीजे आ गए हैं तो पार्टी में यह मुद्दा जोर पकड़ गया है। 19 मई को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से पहले भी इस तरह के कुछ सुर देश के कुछ हिस्सों से उठेंगे। संकेत हैं कि अगर शीर्षस्तर पर प्रियंका की बड़ी भूमिका तय नहीं हुई, तो बड़े नेता इस मामले में मुखर होकर बोलेंगे। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी तो चुनाव के बीच ही ऐसे संकेत दे चुके हैं।

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