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उत्तर प्रदेश चुनाव 2017: सपा और कांग्रेस का गठबंधन...एक मजबूरी!

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सपा और कांग्रेस गठबंधन करने जा रहे हैं। इस गठबंधन से किसको कितना फायादा होगा और ये गठबंधन दो पार्टियों की मजबूरी क्यों है, जानिए।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Sun, 15 Jan 2017 03:53 PM (IST)Updated: Mon, 16 Jan 2017 02:45 PM (IST)
उत्तर प्रदेश चुनाव 2017: सपा और कांग्रेस का गठबंधन...एक मजबूरी!

नई दिल्ली, [अभिषेक प्रताप सिंह]। समय-समय की बात है, आजादी के बाद कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और देश में हर जगह चुनाव जीते लेकिन आज के समय में कांग्रेस पार्टी अपना वजूद तलाशती नजर आ रही है। देश के ज्यादातर राज्य में अपनी साख खो चुकी कांग्रेस की नजर साल 2017 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों पर तो है ही साथ ही पार्टी साल 2019 के लोकसभा चुनाव की चादर बिछाने में लग गई है।

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बात करते हैं उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों की। उत्तर प्रदेश में फिलहाल सपा सबसे बड़ी पार्टी है और सत्ता में भी है लेकिन सपा को ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि वो कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को राजी हो गई। अगर खबरों की माने तो उत्तर प्रदेश के चुनाव में सपा और कांग्रेस दोनों मिलकर चुनाव लड़ेंगे। यूपी में सपा सबसे मजबूत पार्टी...कांग्रेस देश की सबसे कमजोर पार्टी (आंकड़ों के हिसाब से) तो सपा...कांग्रेस जैसी कमजोर पार्टी के साथ गठबंधन करने को राजी क्यों हो गई?

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ये डर सता रहा है दोनों पार्टियों को

इनके डर की सबसे बड़ी वजह भाजपा है जो केंद्र में सत्ता में है ही धीरे-धीरे वो देश के सभी राज्यों में अपने पैर पसार रही है। ये डर यूं नहीं बना...साल 2014 में एक ऐसी आंधी चली जिसमें देश की स्थापित पार्टियां इस आंधी में उड़ गईं और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। अब आते हैं सपा और कांग्रेस के गठबंधन पर...ये गठबंधन दोनों ही पार्टियों के लिए वक्त की जरूरत है। विचार करें तो महागठबंधन की बात चलना दिखाता है कि प्रदेश के इन दलों को इस बार विधानसभा चुनाव में अपनी हैसियत का अंदाजा लग गया है। नहीं तो जिस सपा को पिछले चुनाव में जनता ने पूर्ण बहुमत दिया था, वो अबकी आधी सीटें दो अन्य दलों में बांटने के लिए चर्चा क्यों करती? इसका सिर्फ एक ही अर्थ है कि पार्टी को जमीन का खिसकना महसूस होने लगा है। ऊपर से बाप-बेटे की रार से पार्टी का जो हाल हुआ है वो जनता ने देखा ही है।

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कांग्रेस की दुर्दशा
बहरहाल, सबसे अधिक दुर्दशा तो कांग्रेस की है। एक ऐसी पार्टी जिसने देश पर दशकों तक शासन किया और प्रदेश में भी लम्बे समय तक उसी का शासन रहा, उस कांग्रेस की आज यह हालत हो गई है कि प्रदेश की समाजवादी पार्टी जैसी एक क्षेत्रीय पार्टी से ऐसा गठबंधन करने को मजबूर हो रही, जिसमें कि उसे सौ सीटें देने को भी कोई तैयार नहीं है। लेकिन फिर भी कांग्रेस मान-मनौव्वल में लगी है कि महागठबंधन हो जाए। स्पष्ट है कि कांग्रेस आज अपने बेहद बुरे दौर में पहुंच चुकी है। खैर, कांग्रेस को उम्मीद होगी कि ये महागठबंधन भी बिहार जैसा असर करेगा, लेकिन लगता नहीं कि ये उम्मीद पूरी होगी। क्योंकि, एक तो यहां भाजपा की रैलियों में उमड़ने वाला जनसमर्थन अपने पूरे शबाब पर है, वहीं बसपा जैसा एक और खिलाड़ी मैदान में है, इसलिए महागठबंधन के लिए लड़ाई सिर्फ भाजपा से ही नहीं होगी।

मुस्लिम मतदाताओं पर नजर

अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन कर उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि उनका गठबंधन बड़ा है इसलिए वे ही भाजपा को टक्कर दे सकते हैं। उन्हें डर है कि लोकसभा चुनाव की तरह अगर इस बार मुस्लिम मतदाताओं का वोट समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में बंटा तो भाजपा बीच से निकलकर जीत सकती है।

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कांग्रेस का फायदा

कांग्रेस को भी इस गठबंधन में फायदा दिख रहा है। 27 साल से लखनऊ की सत्ता से बाहर रही कांग्रेस इस बार पूरी ताकत लगा रही है। उसने प्रशांत किशोर जैसे चुनाव प्रबंधक को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी है। उनके सुझाव पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पूरे प्रदेश में किसान यात्रा शुरू की, शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया गया और राज बब्बर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन इतनी तैयारी के बाद भी कांग्रेस का आंतरिक सर्वे बहुत ही निराशाजनक तस्वीर पेश कर रहा है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के एक नेता बताते हैं कि पार्टी के अपने सर्वे का नतीजा कहता है कि अगर यूपी में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी तो चौथे नंबर पर रहेगी और उसे पच्चीस से भी कम सीटें मिलेंगी। इसके बाद प्रशांत किशोर ने ही यह आइडिया प्रियंका गांधी और राहुल गांधी को दिया कि बिहार की तरह ही उत्तर प्रदेश में बड़ा गठबंधन तैयार किया जाए।

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जातिगत समीकरण
और आखिर में, महागठबंधन की ताकत जातिगत समीकरण हैं, जो कि एक तुक्के की तरह है और तुक्का हर बार नहीं लगता। वैसे, भी सपा-बसपा के शासन तो उत्तर प्रदेश की जनता ने बहुत देख लिया, इसलिए पूरी संभावना है कि वो नये विकल्प का रुख करेगी और वो विकल्प भाजपा के अलावा दिखता नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास के नाम पर वोट मांग रहे हैं तो अखिलेश भी विकास को ही मुद्दा बनाकर सामने आ रहे हैं। तो अब ऐसे में देखने वाली बात यही होगी कि इस बार उत्तर प्रदेश की जनता गठबंधन की सरकार में दिलचस्पी दिखाएगी या फिर पूर्ण बहुमत की सरकार में विश्वास करेगी इसके पीछे एक कारण ये भी है कि बिहार में चुनाव के दौरान महागठबंधन हुआ...जीत भी उसी गठबंधन की हुई लेकिन दो अलग-अलग विचारधाराओं वाली पार्टियां एक साथ चल नहीं पा रही हैं। इनके बीच की अनबन समय-समय पर सामने आती रही है।

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