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    कलियुग में पनाह खोजता शिव परिवार

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    Updated: Thu, 27 Feb 2014 01:22 PM (IST)

    करोड़ों लोगों की श्रद्धा और आस्था के केंद्र भगवान शिव और उनका परिवार सिर पर छत का इंतजार कर रहा है। शिव पुराण में उल्लिखित दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंग के संरक्षण से सबने हाथ खींच लिए हैं। शिवलिंग के साथ ही यहां पर पार्वती, गणोश, कार्तिकेय और नंदी की भी प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियां हैं। लेकिन, केंद

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    नई दिल्ली, [राजकिशोर]। करोड़ों लोगों की श्रद्धा और आस्था के केंद्र भगवान शिव और उनका परिवार सिर पर छत का इंतजार कर रहा है। शिव पुराण में उल्लिखित दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंग के संरक्षण से सबने हाथ खींच लिए हैं। शिवलिंग के साथ ही यहां पर पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदी की भी प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियां हैं। लेकिन, केंद्र सरकार, सामाजिक-धार्मिक संगठन और हिंदू हित के पैरोकार विश्व हिंदू परिषद [विहिप] जैसे तमाम संगठन कोई भी इस शिव परिवार के विराट रूप को संजोने के लिए छोटा-सा प्रयास भी करने को तैयार नहीं है।

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    अरुणाचल प्रदेश के सुबंसरी जिले के जीरो में स्थित दुनिया में सबसे बड़े माने गए इस 25 फीट ऊंचे और 22 फीट चौड़े शिवलिंग की खोज जुलाई, 2004 में लकड़ी काटने वाले प्रेम सुब्बा ने की थी। सबसे ऊंचे शिवलिंग के अलावा ठीक उसी जगह पर देवी पार्वती और कार्तिकेय के प्रतीक लिंग भी हैं। इनके बायीं और भगवान गणोश और सामने की चट्टान पर नंदी की आकृति भी है। खास बात है कि शिवलिंग के निचले हिस्से में जल का अनवरत प्रवाह बना रहता है। शिवलिंग के ऊपरी हिस्से में स्फटिक की माला भी साफ दिखाई देती है। ये सभी पूरी तरह से प्राकृतिक रूप में मौजूद हैं और इनके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। इसके चारों ओर हमेशा हरा-भरा रहने वाला जंगल है।

    पढ़ें: महाशिवरात्रि पर कैसे करें पूजन और क्या है शुभ मुहूर्त

    विडंबना देखिए कि बाबा अमरनाथ और केदारनाथ पर सियासत करने वाले दल भी इन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं। चीन की सीमा से सटे अरुणाचल को पूरे देश से सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से जोड़ने की क्षमता इस शिव परिवार में है। लेकिन, भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण [एएसआइ], राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन की लापरवाही और देखभाल व संरक्षण के अभाव में सीधी धूप और बरसात की वजह से पत्थर के शिवलिंग का क्षरण हो रहा है। इटानगर के शोध निदेशक की ताजा रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि होती है।

    स्थानीय मंदिर प्रशासन ने इस स्थान का नाम 'सिद्धेस्वरनाथ मंदिर' रखा है। अब इस जगह पर हजारों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। महाशिवरात्रि के मौके पर तो स्थानीय लोग ही नहीं, दुनियाभर से श्रद्धालु वहां पहुंच कर शिव परिवार को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। मुख्यमंत्री नेबाम तुकी ने भी परसुराम कुंड और सिद्धेस्वरनाथ मंदिर के विकास के लिए केंद्रीय संस्कृति मंत्रलय से मदद की मांग की थी, लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई।

    इस जगह की बदहाली से परेशान स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय की मुख्य चिकित्सा अधिकारी [सीएमओ] जगदीश कौर ने स्थानीय मंदिर समिति, जिला प्रशासन, राज्य सरकार, राज्यपाल से तो इस बारे में ध्यान देने का अनुरोध किया ही। केंद्रीय संस्कृति मंत्रलय के संयुक्त सचिव संजीव मित्तल से भी मुलाकात की, लेकिन सभी जगह से उन्हें निराशा ही हाथ लगी।