जजों के चयन के तय हों मानक
न्याय का सबसे बड़ा सिद्धांत है भरोसा। भरोसा कायम रखने के लिए जरूरी है कि न्याय की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति पूर्णत: निष्ठावान हो। जजों के चयन की मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था गोपनीय कार्यप्रणाली के कारण सवालों में है। व्यवस्था में पारदर्शिता की दरकार है। चयन प्रक्रिया में महती भूमिका निभाने
माला दीक्षित, नई दिल्ली। न्याय का सबसे बड़ा सिद्धांत है भरोसा। भरोसा कायम रखने के लिए जरूरी है कि न्याय की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति पूर्णत: निष्ठावान हो। जजों के चयन की मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था गोपनीय कार्यप्रणाली के कारण सवालों में है। व्यवस्था में पारदर्शिता की दरकार है। चयन प्रक्रिया में महती भूमिका निभाने वाले कोलेजियम के मुखिया रह चुके स्वयं सलेक्शन व रिजेक्शन के मानक तय करने की बात कर रहे हैैं। सुप्रीम कोर्ट भी व्यवस्था में और सुधार की जरूरत महसूस कर रहा है और इसीलिए इस पर सुनवाई की तिथि तय की गई है।
न्यायाधीशों के चयन के मानक तय करने पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग कहते हैैं कि एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया अपने हाथ में ले ली। व्यवस्था में बदलाव लाने वाला एनजेएसी कानून भी एक जनहित याचिका पर खारिज हो गया। कुल मिला कर सारी व्यवस्था पांच न्यायाधीशों के कोलेजियम में सिमट गई है। जजों की नियुक्ति के मानक तय नहीं हैैं। मौजूदा चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है। लोगों को यह जानने का हक है कि उनके जीवन-मरण का फैसला करने वाले की काबिलियत किन मानकों पर परखी गई है।
जस्टिस जे. चेलमेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया बदलने के लिए लाए जा रहे एनजेएसी कानून को सही ठहराते हुए अपने फैसले में कहा है कि सिर्फ स्वतंत्र और सक्षम न्यायिक व्यवस्था ही समाज में भरोसा कायम रख सकती है। संवैधानिक अदालतों में मुकदमों की लगातार बढ़ती संख्या को इसकी दक्षता का प्रमाणपत्र तो कतई नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की विभिन्न पीठों से आने वाले विरोधाभासी फैसले व्यवस्था में समग्र सुधार की जरूरत का संकेत देते हैं।
जस्टिस चेलमेश्वर का कहना है कि संवैधानिक अदालतों के जजों की चयन प्रक्रिया इन सुधारों का एक पहलू भर है। लेकिन दुर्भाग्य से इस प्रयास को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी नहीं मिल पायी। कोर्ट ने लीगल सिस्टम में दक्षता लाने की पूरी जिम्मेदारी स्वयं पर ले ली है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली कोलेजियम के मुखिया रहे पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा भी मानते हैैं कि सिस्टम में बेहतरी की गुंजाइश है। वे कहते हैैं कि नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता व निष्पक्षता लाना जरूरी है। लेकिन ये काम अकेला एक व्यक्ति नहीं कर सकता। इसके लिए संस्थागत तंत्र विकसित होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का कोलेजियम व्यवस्था में सुधार पर सुझाव मांगना एक अच्छी पहल है। सरकार व अन्य पक्षों को खुले मन से कोर्ट में सुझाव देने चाहिए, ताकि सिस्टम में पारदर्शिता आए। उनका मानना है कि सेलेक्शन व रिजेक्शन के मानक तय होने चाहिए।
जस्टिस लोढ़ा कहते हैं कि अभी बहुत गोपनीयता से काम होता है। वैसे तो चयन के समय सभी पहलुओं पर विचार किया जाता है। हाईकोर्ट कोलेजियम की राय आती है। अधीनस्थ अदालतों के फैसले देखे जाते हैैं, लेकिन सब कुछ बड़ा अनआर्गनाइज्ड और एडहाक सा है। सलेक्शन और रिजेक्शन के मानक तय होने से किसी काबिल व्यक्ति के गलत तरीके से बाहर रह जाने की गुंजाइश नहीं रहेगी। उनके समय में जजों के चयन में परामर्श का दायरा बढ़ाया गया था और हाईकोर्ट के जज चुनते समय बार के दो वकीलों की भी राय ली जाती थी।
एक समय (1977 से 1979 तक) न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया का हिस्सा रहे पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण कहते हैैं कोलेजियम व्यवस्था में ही अच्छे, ईमानदार, जानकार और सक्षम न्यायाधीश चुने जा सकते हैैं। भूषण इसके लिए कुछ सुझाव भी देते हैैं।
शांति भूषण के सुझाव
-पद के लिए व्यक्ति की उपयुक्तता पर अंतिम फैसला मुख्य न्यायाधीश लें
-जज के पूर्व आचरण व योग्यता की जानकारी के लिए बार से परामर्श बढ़े
-पारदर्शिता लाने के लिए चयन के कारण बताए जाने चाहिए
-संसदीय उपसमिति की राय लिखित में ली जाए। समिति में सभी राजनीतिक दलों का एक सांसद जरूर हो। समिति की रिपोर्ट जनता को भी उपलब्ध हो ताकि चुने हुए प्रतिनिधि पब्लिक स्क्रूटनी के भय से अपनी राय देते समय सजग रहें।
- जजों के सेलेक्शन और रिजेक्शन के मानक तय होने चाहिए। सिस्टम में बेहतरी की गुंजाइश है
-आरएम लोढ़ा, पूर्व मुख्य न्यायाधीश
- लोगों को जानने का हक है कि उनके जीवन-मरण का फैसला करने वाले की काबिलियत किन मानकों पर परखी गई
-डीके गर्ग, वकील
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