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नौसेना में कलवरी श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी 'खांदेरी' शामिल, भारत की ताकत बढ़ी

समुद्र में भारत की ताकत को मजबूत करने के लिए आज नौसेना में अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस खांदेरी पनडुब्बी को शामिल किया गया।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Thu, 12 Jan 2017 08:34 AM (IST)Updated: Thu, 12 Jan 2017 03:40 PM (IST)
नौसेना में कलवरी श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी 'खांदेरी' शामिल, भारत की ताकत बढ़ी

मुंबई (जेएनएन)। कलवरी श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी आईएनएस खांदेरी का आज मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) में जलावतरण किया किया गया। केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे जलावतरण समारोह की अध्यक्षता की। जलावतरण में पनडुब्बी उस पंटून से अलग होगी, जिस पर इसे तैयार किया जा रहा है। इसके बाद इसकी अंतिम सेटिंग तैरने लगेगी। ये पनडुब्बी एंटी मिसाइल से लेकर परमाणु झमता से लैस है।

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गौरतलब है कि कलवरी को पहले ही लॉन्च किया जा चुका है और अभी इसका ट्रायल चल रहा है, जिसके खत्म होने पर इसे नौसेना में शामिल कर लिया जाएगा। इस सीरीज की पहली पनडुब्बी कलवरी को पिछले साल अप्रैल में लॉन्च किया गया था। इसे दिसंबर तक शामिल करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन यह नहीं हो पाया।

तस्वीरें : नौसेना को मिली सबमरीन 'खांदेरी', कई गुना बढ़ेगी भारत की ताकत

भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है जो परंपरागत पनडुब्बियों का निर्माण करते हैं। भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट 75 के तहत एमडीएल में फ्रांस के मैसर्स डीसीएनएस के साथ मिलकर छह पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है।

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कलवरी की विशेषताएं

कलवरी और खंडेरी पनडुब्बियां आधुनिक फीचर्स से लैस है। यह दुश्मन की नजरों से बचकर सटीक निशाना लगा सकती हैं। इसके साथ ही टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइलों से हमले भी कर सकती हैं।

50 साल पहले शुरु की गई थी पनडुब्बी शाखा

भारतीय नौसेना की पनडुब्बी शाखा इस साल आठ दिसंबर को 50 साल पूरे करेगी। आठ दिसंबर 1967 को नौसेना में पहली पनडुब्बी आइएनएस कलवरी शामिल होने के उपलक्ष्य में हर साल इस दिन को पनडुब्बी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। सात फरवरी 1992 को पहली स्वदेश निर्मित पनडुब्बी आइएनएस शाल्की के शामिल होने के साथ ही भारत पनडुब्बी बनाने वाले देशों के समूह में शामिल हो गया था। इसके बाद आइएनएस शांकुल को 28 मई 1994 को लॉन्च किया गया।

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इसलिए सबमरीन का नाम पड़ा 'खांदेरी'

खांदेरी नाम मराठा बलों के द्वीपीय किले के नाम पर दिया गया है। इसकी 17वीं सदी के अंत में समुद्र में मराठा बलों का सर्वोच्च अधिकार सुनिश्चित करने में बड़ी भूमिका थी। इस सबमरीन से टारपीडो के जरिए भी दुश्मन पर अटैक किया जा सकेगा। सममरीन पानी में हो या सतह पर दोनो ही स्थितियों में इसकी ट्यूब प्रणाली एंटी सिप मिसाइल लॉन्च कर सकती है। सबमरीन को ऐसे डिजाइन किया गया है कि वो हर जगह चल सके।

इस सबमरीन के जरिए नेवल टास्क फोर्स भी दुश्मनों पर कभी भी कहीं से भी हमला करने में सक्षम होगी। इस पनडुब्बी को माड्यूलर कंस्ट्रेक्शन को ध्यान में रख कर बनाया गया है। इसके तहत सबमरीन को कई सेक्शन में डिवाइड किया जा सकता है।

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