रिसर्च के प्रसारण पर रोक नहीं लगाई जा सकती
निर्भया कांड के दोषी के इंटरव्यू के प्रसारण पर सरकार बीबीसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की बात जरूर कर रही है लेकिन यह इतना आसान नहीं है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। निर्भया कांड के दोषी के इंटरव्यू के प्रसारण पर सरकार बीबीसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की बात जरूर कर रही है लेकिन यह इतना आसान नहीं है। क्योंकि चूक तो तभी हो गई थी जब पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने 2013 में बीबीसी को इंटरव्यू की इजाजत दी थी। कानूनविदों का कहना है कि इंटरव्यू की इजाजत देने के बाद अब सरकार के पास कार्रवाई का कोई खास विकल्प नहीं बचा है। किसी रिसर्च को प्रकाशित या प्रसारित करने से नहीं रोका जा सकता। हालांकि इजाजत पत्र की शर्तों को कार्रवाई का आधार बनाया जा सकता है।
दिल्ली हाईकोर्ट और भारत सरकार ने इंटरव्यू के प्रसारण पर रोक लगा दी थी लेकिन फिर भी बीबीसी ने इंग्लैंड में डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण कर दिया अब सरकार कार्रवाई के विकल्प तलाश रही है। दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसएन धींगरा का कहना है कि इंटरव्यू की इजाजत देने के बाद उसके प्रसारण पर रोक नहीं लगाई जा सकती। अगर रिसर्च के लिए भी इजाजत दी गई थी तो भी उसके प्रसारण पर रोक नहीं लगाई जा सकती। रिसर्च तो प्रकाशित ही होता है। वैसे भी अपराधी की मानसिकता पर पहले भी कई किताबें और रिसर्च प्रकाशित हो चुके हैं। बीबीसी ने बिना अपनी पहचान छुपाए इजाजत मांगी थी और सरकार ने दी तो अब कोई अपराध नहीं बनता।
वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्विस वे कहते हैं कि अगर जेल सुपरिंटेंडेंट ने इंटरव्यू की इजाजत दी थी। तो बाद में वह इंटरव्यू में शर्त नहीं लगा सकता। वह सेंसर बोर्ड नहीं है। बीबीसी अभियुक्त का इंटरव्यू प्रसारित कर सकता है चाहे वो किसी को पसंद आये या न आए। हालांकि इंटरव्यू के लिए कैदी की सहमति होना जरूरी है। गोंसाल्विस तो यहां तक कहते हैं कि प्रसारण पर रोक लगाने वाला दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश ठीक नहीं है।
वकील कमलेश जैन का कहना है कि इंटरव्यू को कैसे दिखाया जाए इस बारे में अभी स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश आरएस सूरी भी मानते हैं कि सीधे तौर पर कानूनी कार्रवाई का आधार नहीं दिखता। इसके लिए इजाजत पत्र की शर्तो को देखना होगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह भी कहते हैं कि अगर इजाजत देते समय इंटरव्यू के प्रसारण पर साफ तौर पर रोक नहीं लगाई गई थी तो फिर कार्रवाई की गुंजाइश नहीं रह जाती।
वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेन्द्र शरण भी ऐसा ही मानते हैं लेकिन साथ ही कहते हैं कि पूरे प्रकरण को सकारात्मक रूप में लिया जाना चाहिए। इससे भारत की छवि सुधरी है। पता चलता है कि पुलिस ने त्वरित कार्रवाई कर अपराधियों को पकड़ा। अदालत ने दोषियों को मौत की सजा दी। इतना ही नहीं डॉक्यूमेंट्री से यह भी पता चलता है कि भारत एक जिन्दा मुल्क है यहां ऐसे अपराध बर्दाश्त नहीं किए जाते। जनता रोष प्रकट करती है। लेकिन वकील डीके गर्ग की राय कुछ अलग है उनका कहना है कि इस डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण से दुनिया में भारत की साख को धक्का लगा है और इसके लिए भारत सरकार बीबीसी के खिलाफ न सिर्फ देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय अदालत में भी अपील कर सकती है।
पढ़ें :