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    जेहाद के नाम पर चंदा वसूली का प्रशिक्षण

    By Edited By:
    Updated: Mon, 26 Aug 2013 12:38 AM (IST)

    लश्कर-ए-तैयबा आतंकी वारदात के साथ जेहाद के नाम पर चंदा उगाही का भी प्रशिक्षण दिलाता है। चंदे की इस मुहिम में उसने अब्दुल करीम उर्फ टुंडा का जमकर इस्ते ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली, [प्रदीप कुमार सिंह]। लश्कर-ए-तैयबा आतंकी वारदात के साथ जेहाद के नाम पर चंदा उगाही का भी प्रशिक्षण दिलाता है। चंदे की इस मुहिम में उसने अब्दुल करीम उर्फ टुंडा का जमकर इस्तेमाल किया था। कट्टरपंथी तंजीमों की जनसभाओं में टुंडा को मंच पर खड़ा कर दिया जाता था। लश्कर चीफ हाफिज सईद मंच से टुंडा द्वारा भारत में किए गए बम धमाकों का ब्योरा पेश करता था। जेहाद के लिए टुंडा के हाथ की कुर्बानी का हवाला देकर भड़काऊ भाषणों के जरिये लोगों से चंदा मांगा जाता था।

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    टुंडा से पूछताछ में सामने आई कि इसके बाद वहां देखते ही देखते लाखों रुपये जमा हो जाते थे। खास बात यह कि चंदे में मिली धनराशि हाफिज सईद के निजी खाते में जमा कराई जाती थी। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, लश्कर पाकिस्तान में रह रहे कश्मीरी विस्थापितों के नाम पर भी चंदा उगाही करता है। इसके लिए वह बाकायदा अपने लोगों को 15 दिन की ट्रेनिंग देता है। 'दौरा-ए-सफरा' नामक इस ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कि कैसे लोगों की भावनाओं को भड़काकर चंदा उगाही की जाए। चंदा देने वालों को भारत में रह रहे मुसलमानों पर हो रही ज्यादती की दास्तां सुनाई जाती थी।

    प्रॉपर्टी का भी कारोबार

    पाकिस्तान में मदरसे का संचालन करने के अलावा टुंडा का प्रॉपर्टी का भी काम था। वह जमीन खरीद-फरोख्त के धंधे में शामिल रहा है। टुंडा ने बताया कि उसने 'महदूद तालीम उल इस्लामी दारुल फुनून' नाम से ट्रस्ट बना रखा है। इसी नाम से उसका मदरसा भी है। ट्रस्ट के जरिये वह जेहाद के नाम पर चंदा जुटाता था। बताया जा रहा है कि लश्कर के लिए मिली चंदे की रकम अपने ट्रस्ट में जमा करने को लेकर ही टुंडा व लश्कर कमांडर जकी उर रहमान लखवी के बीच कहासुनी हुई थी। टुंडा के मुताबिक बम धमाकों में नाम आने से पूर्व भारत में रहते हुए ही उसने चार बार विदेश यात्राएं की थीं। टुंडा ने 1988 में पासपोर्ट बनवा लिया था। वह पासपोर्ट लखनऊ से बना था या बरेली से, यह उसे याद नहीं है। इसी साल बिजनेस वीजा पर उसने थाइलैंड की यात्रा की।

    पिलखुवा से मिलता था विस्फोटक

    टुंडा द्वारा बांग्लादेश से तबाही मचाने भारत भेजे गए आतंकियों को विस्फोटकों की खेप पिलखुवा (उत्तर प्रदेश) से मिलती थी। टुंडा ने बताया कि उसके 1993 और 1996 के मॉड्यूल के खुलासे के बाद उसने 1997 में बांग्लादेश में नए लोगों की भर्ती की और प्रशिक्षण दिया। उन लोगों को विस्फोटक पिलखुवा से लेने को कहा गया था, लेकिन वे डर के कारण वापस लौट गए थे।

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