इंटरनेट की दुनिया में बस एक क्लिक में किताबें
हाइटेक मोबाइल, टेबलेट, लैपटॉप और नए-नए गैजेट्स ने लाइफ स्टाइल को और भी आसान बनाकर पूरा का पूरा मार्केट घरों तक पहुंचा दिया है। ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, लखनऊ। जमाना बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। इंटरनेट और डिजिटाइजेशन के इस दौर में इंसान का ईजाद किया हुआ हर सामान बस एक क्लिक पर हाजिर हो जाता है। बात हो रही है, किंडल के दौर में किताबों की। एक जमाना था जब बुक लवर्स अपने पसंदीदा लेखक की किताब को खरीदने के लिए मार्केट के चक्कर लगाते थे, लेकिन टेक्नोलॉजी के इस युग में फेवरिट पर्सनैलिटी की ऑटोबायोग्राफी हो या फिर कोई नावेल सब एक क्लिक पर मिल जाता है।
वहीं, हाइटेक मोबाइल, टेबलेट, लैपटॉप और नए-नए गैजेट्स ने लाइफ स्टाइल को और भी आसान बनाकर पूरा का पूरा मार्केट घरों तक पहुंचा दिया है। किंडल के अलावा ई-बुक्स के बहुत से एप्लीकेशन और वेबसाइट भी हैं जो पलक झपकते ही फेवरिट बुक के पन्ने खोल देते हैं। 23 अप्रैल को 'वर्ल्ड बुक डे' के मौके पर हम बात कर रहे हैं डिजिटाइजेशन के दौर में किताबों के अस्तित्व की। इस दिशा में हमने जानी लोगों ने राय...
कम हो रहे पुस्तक प्रेमी
पुस्तक प्रेमी आशा श्रीवास्तव कहती हैं, पुस्तकें अच्छी दोस्त हैं। इन्हें साथ रखें तो आप कभी अकेला महसूस नहीं करेंगे। बाजार में तमाम लेखकों की पुस्तकें उपलब्ध हैं, लेकिन अब ट्रेंड बदल रहा है। समाज में भिन्न विचारधारा के लोगों की पसंद भी अलग है। ऐसे में पाठकों को किसी खास विषय पर आधारित पुस्तक को पढऩे के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। लोग अपनी रुचि की किताब ही पढऩा पसंद करेंगे।
डिजिटल मैगजीन का बढ़ रहा क्रेज
आर्मी पब्लिक स्कूल में टीचर शहला असकरी कहती हैं, किताब प्रेमियों का प्रतिशत भले ही घट रहा है, पर डिजिटल मैगजीन पढऩे वाले रीडर्स की संख्या भी बढ़ रही है। वह कहती हैं, आजकल किंडल मैगजीन बच्चे खूब पसंद कर रहे हैं। मेरे खुद के बच्चे भी किंडल पर ही अपनी फेवरिट बुक्स पढ़ते हैं। मुझे लगता है, किंडल की बदौलत ही बच्चों और युवाओं में रीडिंग कल्चर बचा हुआ है। अगली पीढ़ी तक किताबें सिर्फ शोपीस बनकर रह जाएंगी।
किताबें कभी पैरालाइज नहीं होती
स्टूडेंट स्वप्निल श्रीवास्तव कहती हैं, बेशक, युवाओं को टेक्नोलॉजी का फायदा मिल रहा है, लेकिन किताबों को पढऩे वाले आज भी हैं। किताबें लंबे समय तक चलती हैं और ये कभी पैरालाइज नहीं होती। वह कहती हैं, मैं चिनहट में रहती हूं, अगर मुझे अचानक किसी बुक की जरूरत पड़ जाती है, तो उसे खरीदने के लिए बुक मार्केट तक जाने के बजाए ऑनलाइन पर्चेजिंग मेरे लिए एक अच्छा विकल्प होगा, पर किताबें कभी खत्म नहीं होंगी।
किताबों पर करती हूं विश्वास
स्टूडेंट अरीशा सलमान कहती हैं, मैं और मेरे फ्रेंड्स अक्सर कोर्स का स्टडी मैटीरियल ढूंढने के लिए गूगल पर सर्च करते हैं। हालांकि, विकीपीडिया से लिए गए कंटेंट की ऑथेंटिसिटी पर संदेह जरूर रहता है। वह कहती हैं, हम जो किताबें मार्केट से खरीदते हैं, वे लेखक के पर्सनल एक्पीरिएंस पर बेस्ड होती हैं इसलिए हम लोगों को किताबों पर ज्यादा विश्वास है। हां, जब कभी कोर्स का कोई मैटर मार्केट में नहीं मिलता, उस वक्त हम लोग उसे ऑनलाइन सर्च कर लेते हैं।
ई-बुक्स ज्यादा पढ़ती हूं
साइकोलॉजी की स्टूडेंट सुन्दुस कहती हैं, अक्सर साइकोलॉजी के नोट्स तैयार करने के लिए मैं ऑनलाइन बुक्स का ही इस्तेमाल करती हूं क्योंकि पर्सनली मुझे उस पर पूरा विश्वास है। भले ही मार्केट में किताबें आसानी से मिल जाती हैं, पर उनके लेखकों की प्रमाणिकता पर मुझे संदेह रहता है। वह कहती हैं, मेरा निजी अनुभव ई-बुक्स पर ज्यादा है। मेरे ज्यादातर फ्रेंड्स और क्लासमेट भी ऑनलाइन किताबें पढऩा पसंद करते हैं क्योंकि ये आसानी से मिल जाती हैं।
छोटी सी लाइब्रेरी है मेरी
निफ्ट की तैयारी कर रहीं, अनुष्का कहती हैं, मुझे किताबों को पढऩे और कलेक्शन करने का बेहद शौक है। जिसके चलते घर में मेरी एक छोटी सी लाइब्रेरी तैयार हो गई है। वह कहती हैं, ऑनलाइन मार्केट में आज भले ही किताबों को लोग कभी भी, कहीं भी पढ़ लेते हैं, लेकिन किताबों का दौर कभी खत्म नहीं होगा। इंटरनेट के चलते बच्चे किताबों से दूर हो रहे हैं जो सही नहीं है। जिन्हें बुक कलेक्शन का शौक है, वे किताबों को खरीदकर ही पढऩा पसंद करेंगे।
किताब वाली बात कहीं नहीं
एमबीए पासआउट नेहा पांडेय कहती हैं, मैं भी किंडल यूजर हूं क्योंकि पढऩे का बहुत शौक है। जॉब के चलते लोकेशन बदलती रहती है। फ्लाइट में टाइम पास करने के लिए मैं किंडल पर अपनी फेवरिट बुक्स पढ़ती हूं। कहती हैं, किंडल में सहूलियत जरूर है, पर किताब वाली बात नहीं है। कहा भी जाता है, 'ओल्ड इज गोल्डÓ, इसलिए मुझे नहीं लगता कि किताबों का अस्तित्व कभी खत्म होगा। हां, युवाओं में धीरे-धीरे किंडल की डिमांड जरूर बढ़ रही है।
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