प्रकाशन उद्योग के लिए अब चुनौती नहीं है ई बुक्स
आज स्थिति यह है कि दिल्ली में प्रकाशकों की संख्या में किसी तरह की कमी नहीं है और ई बुक्स का प्रचार प्रसार भी कम नहीं हो रहा है।
नई दिल्ली, [अभिनव उपाध्याय]। इंटरनेट पर किताबों की उपलब्धता और मोबाइल पर ई बुक्स के आने से एक तरफ जहां यह माना जा रहा था कि प्रकाशन उद्योग खतरे में है और किताबों की बिक्री प्रभावित होगी। लेकिन एक दशक बीत जाने पर यह दोनों एक दूसरे के विरोध न होकर पूरक और सहभागी बनकर उभरे हैं।
आज स्थिति यह है कि दिल्ली में प्रकाशकों की संख्या में किसी तरह की कमी नहीं है और ई बुक्स का प्रचार प्रसार भी कम नहीं हो रहा है। दिलचस्प यह है कि किताब छापने वाले प्रकाशक अब समय के साथ बदले हैं और वह ई बुक्स भी निकाल रहे हैं। आज लगभग सभी बडे प्रकाशक ई बुक्स की दुनिया में अपनी किताबें लेकर आ चुके हैं।
प्रभात प्रकाशन के निदेशक प्रभात कुमार बताते हैं कि ई बुक्स के आने से हम उत्साहित हैं। इसे हम किसी तरह की चुनौती नहीं मानते हैं। इससे हमें किसी तरह की निराशा नहीं हुई। क्योंकि किताबों के पाठक ई बुक्स के बढ रहे हैं। हालांकि ई बुक्स की संख्या अब भी बाजार में कम है। हमें उम्मीद है कि इंटरनेट क्रांति के बाद भी लोग किताबों की तरफ अपना रुझान कायम रखेंगे। हम भी अधिकांश किताबों को ई प्रारूप में ला रहे हैं। इसे पसंद करने वाले इसे खरीद रहे हैं फिर भी सामान्य किताब की मांग कहीं से भी कम नहीं हुई है।
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जगरनॉट प्रकाशन के संपादक रियाज उल हक बताते हैं कि हमारा प्रकाशन हिंदी और अंग्रेजी दोनों में है। हम अधिकांश डिजिटल बुक्स लाए हैं लेकिन फिजिकल बुक की मांग भी कम नहीं है। जब भी कोई नई विधा आती है तो यह कहा जाता है कि वह पुरानी विधा को चुनौती देगी। जैसे फिल्में को नाटक के लिए, कैमरा को पेंटिंग के लिए और डिजिटल माध्यम को फिजिकल माध्यम के लिए लेकिन ऐसा नहीं है आज सब एक साथ सहभागिता कर रहे हैं और सबकी मांंग है। ई बुक्स के साथ भी ऐसा ही है। हम अब किताबों के लिए एप आधारित सर्विस दे रहे हैं। अब तक यह अंग्रेजी में थी लेकिन अब यह हिंदी में भी होगी। कई ऐसी किताबें जो फिजिकल उपलब्ध नहीं है उनके लिए ई बुक्स और मददगार हुई है।
वाणी प्रकाशन में कापीराइट और अनुवाद प्रभाग की निदेशक अदिति माहेश्वरी बताती हैं कि ई बुक्स भी प्रकाशन की एक प्रणाली है। पांच साल पहले यह एक चुनौती की तरह देखी जाती थी लेकिन अब यह सहभागी है। दोनों के अलग अलग पाठक हैं। इससे किताबों की बिक्री पर कोई असर नहीं पडा है। हम पिछले आठ महीने से ई बुक्स के क्षेत्र में आए हैं और इससे हमें मदद ही मिली है। ई बुक्स सस्ती पड़ती हैं और इसे लोग पढना पसंद भी करते हैं।
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