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    रार न ग्लैमर, अबकी इम्तिहान में आजम के तेवर

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    Updated: Mon, 24 Mar 2014 12:06 PM (IST)

    रामपुर के लिए कहा जाता है कि उसके हिस्से में सुर्खियां तो आती हैं लेकिन और कुछ नहीं। महान क्रांतिकारी मौलाना अबुल आजाद के पहली बार यहां से चुनाव लड़ने पर यह क्षेत्र जो चर्चा में आया तो इसका सिलसिला अब तक बरकरार है। कभी भाजपा के नकवी की जीत तो कभी जयाप्रदा और कभी आजम से उनकी रार ने इस क्षेत्र को हमेशा च

    रामपुर के लिए कहा जाता है कि उसके हिस्से में सुर्खियां तो आती हैं लेकिन और कुछ नहीं। महान क्रांतिकारी मौलाना अबुल आजाद के पहली बार यहां से चुनाव लड़ने पर यह क्षेत्र जो चर्चा में आया तो इसका सिलसिला अब तक बरकरार है। कभी भाजपा के नकवी की जीत तो कभी जयाप्रदा और कभी आजम से उनकी रार ने इस क्षेत्र को हमेशा चर्चा में रखा। सबसे अधिक मुस्लिम मतों वाली इस सीट पर इस बार प्रदेश सरकार के शक्तिशाली मंत्री आजम खां के कद की परीक्षा होनी है। रामपुर से मुस्लेमीन की रिपोर्ट:-

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    संसदीय चुनाव में लोगों की निगाहें रामपुर पर जरूर टिकती रही हैं। शुरुआती चुनाव में मौलाना अबुल कलाम आजाद का क्षेत्र होने के कारण तो बाद में नवाब खानदान की सक्रिय भागीदारी के कारण। यहां के सियासी अतीत को देखें तो नवाब खानदान का वर्चस्व नजर आता है। हालांकि बाहर से आए कई लोगों को भी यहां लोगों ने सहर्ष गले लगाया। सबसे अधिक मुस्लिम वोटर वाली इस सीट का दर्द यही है कि हमेशा सुर्खियों में रहने के बावजूद मूलभूत समस्याएं जस की तस हैं।

    यह क्षेत्र कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। महान क्रांतिकारी अबुल कलाम आजाद यहां से पहली बार सांसद बने और देश के देश के पहले शिक्षा मंत्री भी। वह पूरे चुनाव में केवल दो बार रामपुर आए और कोई जनसभा भी नहीं की। इस सीट पर दस बार कांग्रेस के सांसद चुने गए हैं। मौलाना आजाद एक बार, राजा सैयद अहमद मेंहदी दो बार, जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां पांच बार और उनकी पत्नी बेगम नूरबानो दो बार कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुनी गई। दो बार सपा और दो बार भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीती। भाजपा बनने से पहले एक बार जनसंघ की भी जीत हुई। काबिलेगौर है कि देश में जम्मू कश्मीर के बाद सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता रामपुर लोकसभा क्षेत्र में हैं। यहां करीब 49 फीसदी वोटर मुस्लिम हैं। इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी के सबसे पहले मुस्लिम लोकसभा सदस्य इसी सीट से चुने गए।

    भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी 1998 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद से रामपुर आए और कांग्रेस की दिग्गज बेगम नूरबानो को हराकर सांसद बने। मुसलमानों के बीच पहली बार कमल खिला तो भाजपा ने भी इसे खूब तरजीह दी। नकवी को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया। 1999 में नकवी चुनाव हार गए तो पार्टी ने उन्हे राज्यसभा सदस्य बना दिया। तब से नकवी का भाजपा में कद बना हुआ है।

    रामपुर सीट कई रोचक मुकाबलों की भी गवाह रही है। सांसद बनने के लिए एक बार नवाब खानदान के लोग आपस में ही भिड़ गए। वर्ष 1984 के चुनाव में जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े तो उनके मुकाबले उनकी भाभी बेगम आफताब जमानी भी मैदान में कूद पड़ीं। तब वह मेनका गांधी की पार्टी संजय विचार मंच के टिकट पर चुनाव लड़ीं। बताते हैं कि उन्होने दिल खोलकर पैसा खर्च किया, जबकि उस दौर में चुनाव में इतना धन खर्च नहीं किया जाता था, लेकिन पानी की तरह पैसा बहाने के बावजूद चुनाव हार गई। उन्हे 96877 वोट ही मिल सके जबकि मिक्की मियां को 242209 वोट मिले। नवाब खानदान के अलावा छह बार बाहरी नेता विजयी रहे हैं। नकवी इलाहाबाद के तो राजेंद्र शर्मा गाजियाबाद के निवासी रहे। मौलाना अबुल कलाम आजाद और जयाप्रदा भी बाहर से आकर रामपुर की सांसद बनीं। मौजूदा चुनाव की बात करें तो इस सीट पर सभी प्रमुख दलों मे प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। बसपा ने पूर्व मंत्री हाजी अकबर हुसैन को प्रत्याशी बनाया है। वह मुरादाबाद जनपद के रहने वाले हैं। कांग्रेस ने नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां को और भाजपा ने पूर्व मंत्री डा. नैपाल सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है। सपा ने नसीर अहमद खां को प्रत्याशी बनाया है। वह नगर विकास मंत्री आजम खां के करीबी हैं।

    कुल मतदाता- 14 लाख

    विजेता- जयाप्रदा [सपा] 230724 [मत]

    बेगम नूरबानो [कांग्रेस] 199793 [मत]

    जब बागी हो गए आजम

    फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा नाहटा 2004 में रामपुर आई और सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ीं। तब नगर विकास मंत्री आजम खां ने उन्हें पूरे दमखम से चुनाव लड़ाया और वह जीत गई। चुनाव के कुछ महीने बाद ही जयाप्रदा और आजम खां के बीच दूरियां बढ़ने लगीं। ऐसे समय में सपा के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव रहे अमर सिंह ने जयाप्रदा का साथ दिया तो आजम और अमर सिंह के बीच भी छत्तीस का आंकड़ा हो गया। इन दोनों दिग्गजों के बीच खाई इतनी गहरी हो गई कि 2009 के लोकसभा चुनाव में आजम खां ने सपा प्रत्याशी रहीं जयाप्रदा का खुलकर विरोध शुरू कर दिया। आजम सपा के किसी जलसे में भी नहीं गए। जयाप्रदा पर हमला और उनके काफिले पर पथराव भी हुआ। इसके बावजूद जयाप्रदा चुनाव जीत गई।

    कब किसने मारा मैदान

    1952- मौलाना अबुल कलाम आजाद-कांग्रेस

    1957 व 62 - राजा सैयद मेंहदी-कांग्रेस

    1967 व 71 - नवाब जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां-कांग्रेस

    1977 - जनसंघ के राजेंद्र शर्मा

    1980, 84 व 89 - मिक्की मियां-कांग्रेस

    1991 - राजेंद्र शर्मा-भाजपा

    1996 - बेगम नूरबनो-कांग्रेस

    1998 - मुख्तार अब्बास नकवी-भाजपा

    1999 - बेगम नूरबानो-कांग्रेस

    2004 व 2009 - जयाप्रदा-सपा

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