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पोखरण परमाणु परीक्षण: सफलता की कहानी

वर्ष उन्नीस सौ अट्ठानबे में भारत ने पोखरण में 11 मई से 13 मई तक सफलतापूर्वक पांच परमाणु परीक्षण किए थे। इस सफलता के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 'जय जवान, जय किसान' और 'जय विज्ञान' का नारा दिया था। यह दिन हमारी प्रौद्योगिकी ताकत को दर्शाता है। इस दिन भारत अपनी उन्नत स्वदेशी प्रौद्योगिकी का परिचय देते ह

By Edited By: Published: Sat, 11 May 2013 08:51 AM (IST)Updated: Sat, 11 May 2013 08:52 AM (IST)

नई दिल्ली। वर्ष उन्नीस सौ अट्ठानबे में भारत ने पोखरण में 11 मई से 13 मई तक सफलतापूर्वक पांच परमाणु परीक्षण किए थे। इस सफलता के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 'जय जवान, जय किसान' और 'जय विज्ञान' का नारा दिया था। यह दिन हमारी प्रौद्योगिकी ताकत को दर्शाता है। इस दिन भारत अपनी उन्नत स्वदेशी प्रौद्योगिकी का परिचय देते हुए दुनिया के ताकतवर देशों के समूह में शामिल हो गया है।

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राजस्थान के जैसलमेर जिले में थार रेगिस्तान में स्थित पोखरण एक प्राचीन विरासत का शहर रहा है। इसके चारों ओर पांच बड़ी लवणीय चट्टानें हैं। पोखरण का शाब्दिक अर्थ है पांच मृगमरीचिकाओं का स्थान। यह स्थल पहली बार सुर्खियों में तब आया, जब भारत ने यहां श्रृंखलाबद्ध परमाणु परीक्षण किए। 18 मई, 1974 को, पोखरण में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसका कूट था ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा।

पोखरण परमाणु विस्फोट से पहले दुनियाभर के जासूसों का ध्यान बांटने और उन्हें छकाने के लिए भरपूर मिसाइलें, रॉकेट और बम का इस्तेमाल किया गया था। तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के नेतृत्व में 1998 में पोखरण में एक के बाद एक पांच परमाणु परीक्षण किए गए। भारत की परमाणु शक्ति का यह प्रदर्शन तब दुनिया को चौंकाने के लिए काफी था और उसके बाद दुनिया भर से इसको लेकर तीखी प्रतिक्रिया आई थी। जवाब में पाकिस्तान ने भी कुछ ही दिनों के अंतराल में परमाणु विस्फोट किया। दक्षिण पूर्व एशिया के दो परस्पर प्रतिद्वंद्वी देशों में परमाणु शक्ति की होड़ को देख संयुक्त राष्ट्र तक को हस्तक्षेप करना पड़ा और सुरक्षा परिषद में इसके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया गया। हालांकि भारत ने स्पष्ट कहा कि उसका उद्देश्य परमाणु परीक्षण शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है और वह इसके जरिए नाभिकीय हथियार बनाने का इरादा नहीं रखता है।

भारत के परमाणु शक्ति संपन्न होने की दिशा में काम तो वर्ष 1945 में ही शुरू हो गया था, जब होमी जहांगीर भाभा ने इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की नींव रखी। लेकिन सही मायनों में इस दिशा में भारत की सक्रियता 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बढ़ी। इस युद्ध में भारत को शर्मनाक तरीके से अपने कई इलाके चीन के हाथों गंवाने पड़े थे। इसके बाद 1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण कर महाद्वीप में अपनी धौंसपंट्टी और तेज कर दी। दुश्मन पड़ोसी की ये हरकतें भारत को चिंतित व विचलित कर देने वाली थीं। लिहाजा सरकार के निर्देश पर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने प्लूटोनियम व अन्य बम उपकरण विकसित करने की दिशा में सोचना शुरू किया।

भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज किया और 1972 में इसमें दक्षता प्राप्त कर ली। 1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के पहले परमाणु परीक्षण के लिए हरी झंडी दे दी। इसके लिए स्थान चुना गया राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित छोटे से शहर पोखरण के निकट का रेगिस्तान और इस अभियान का नाम दिया गया मुस्कुराते बुद्ध। इस नाम को चुने जाने के पीछे यह स्पष्ट दृष्टि थी कि यह कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए है।

18 मई 1974 को यह परीक्षण हुआ। परीक्षण से पूरी दुनिया चौंक उठी, क्योंकि सुरक्षा परिषद में बैठी दुनिया की पांच महाशक्तियों से इतर भारत परमाणु शक्ति बनने वाला पहला देश बन चुका था।

पहले परमाणु परीक्षण के बाद 24 साल तक अंतरराष्ट्रीय दबाव व राजनीतिक नेतृत्व में इच्छाशक्ति के अभाव में भारत के परमाणु कार्यक्रम की दिशा में कोई बड़ी हलचल नहीं हुई। 1998 में केंद्रीय सत्ता में राजनीतिक परिवर्तन हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। वाजपेयी ने अपने चुनाव अभियान में भारत को बड़ी परमाणु शक्ति बनाने का नारा दिया था। सत्ता में आने के दो महीने के अंदर ही उन्होंने अपने इस वादे को मूर्त रूप देने के लिए परमाणु वैज्ञानिकों को यथाशीघ्र दूसरे परमाणु परीक्षण की तैयारी के निर्देश दिए।

चूंकि इससे पूर्व 1995 में भारत की परमाणु तैयारियों की भनक अमेरिका को लग चुकी थी। इसलिए इस बार अभियान की तैयारियों को पूरी तरह गोपनीय रखा गया। केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई सदस्यों तक को इसके बारे में पता नहीं था। पूरे अभियान की रणनीति में कुछ वरिष्ठ वैज्ञानिक, सैन्य अधिकारी व राजनेता ही शामिल थे।

एपीजे अब्दुल कलाम, राजगोपाल चिदंबरम अभियान के समन्वयक बनाए गए। उनके साथ डॉ. अनिल काकोदकर समेत आठ वैज्ञानिकों की टीम सहयोग कर रही थी। अभियान की जमीनी तैयारियों में 58 इंजीनियर्स रेजीमेंट ने सहयोग किया।

चूंकि अब भारत की परमाणु दक्षता उच्च स्तरीय हो चुकी थी और दुनिया को यह दिखाने का समय आ चुका था कि वह भारत की ताकत को कमतर करके न आंके, इसलिए इस अभियान का नाम शक्ति रखा गया। बाद में 11 मई व इसके बाद भारत ने पोखरण में दूसरे परमाणु परीक्षण किए। कुल पांच डिवाइस का परीक्षण किया गया। इस परीक्षण की सफलता के लिए प्रधानमंत्री ने पूरी टीम को बधाई दी।

इस परीक्षण की सफलता पर भारतीय जनता ने भरपूर प्रसन्नता जताई। लेकिन दुनिया के दूसरे मुल्कों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। एकमात्र इजरायल ही ऐसा देश था, जिसने भारत के इस परीक्षण का समर्थन किया। इन परीक्षणों के ठीक 17 दिन बाद पाकिस्तान ने 28 व 30 मई को चगाई-1 व चगाई- 2 के नाम से अपने परमाणु परीक्षण किए। जापान व अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लागू कर दिए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव पारित कर भारत व पाकिस्तान की निंदा की।

भारत आज अपने दम पर मिसाइल रक्षा कवच विकसित करने में भी सफल हो गया है। भारत को विश्वशक्ति बनने के लिए दूसरों से श्रेष्ठ हथियार प्रौद्योगिकी विकसित करनी होगी। अगर सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ हम लगातार अपनी प्रौद्योगिकी जरूरतों को पूरा करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाएं तो हम शीघ्र ही आत्मनिर्भर हो सकते हैं। अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी।

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