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    मनमोहन-सोनिया ने बांटा पीड़ितों का दुख दर्द बांटा

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    Updated: Mon, 16 Sep 2013 10:41 PM (IST)

    उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी सोमवार को दंगा प्रभावित जिले मुजफ्फरनगर के दौरे पर पहुंचे। उन्होंने वहां पर चल रहे राहत शिविरों में रह रहे लोगों से बात की और उन्हें पूरी सुरक्षा देने का भरोसा दिलाया। इसके अलावा उन्होंने राज्य सरकार से अपील की कि वह दोषियों पर सख्त कार्रवाई करेगी।

    लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी सोमवार को दंगा प्रभावित जिले मुजफ्फरनगर के दौरे पर पहुंचे। उन्होंने वहां पर चल रहे राहत शिविरों में रह रहे लोगों से बात की और उन्हें पूरी सुरक्षा देने का भरोसा दिलाया। इसके अलावा उन्होंने राज्य सरकार से अपील की कि वह दोषियों पर सख्त कार्रवाई करेगी। इस मौके पर प्रधानमंत्री के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी भी साथ हैं।

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    प्रधानमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार राज्य सरकार को हर संभव मदद देने के लिए तैयार है। मनमोहन ने कहा कि वह यहां पर लोगों का दुख दर्द बांटने के लिए आए हैं। उन्होंने राज्य सरकार से सभी लोगों की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाने की भी बात कही है। इस दौरे में उनके साथ गई सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इन दंगों पर अफसोस जताया और इनकी पुनरावृति न हो इसके लिए सभी लोगों से काम करने की अपील की।

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    प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व राहुल गांधी के साथ पहुंचीं यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी पीड़ितों का दर्द सुन भावुक हो गईं। वह सुरक्षा घेरा तोड़ बसीकलां के मदरसा परिसर में चल रहे राहत शिविर में पीड़ित महिलाओं के पास चली गई। सोनिया ने दंगे के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

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    कुछ देर तक महिलाओं से बात करने के बाद सोनिया गांधी वापस लौटीं। इस दौरान सुरक्षाकर्मियों के होश उड़े रहे। इसके बाद पीएम का काफिला तितावी के लिए रवाना हो गया। सोनिया व राहुल ने मीडिया से बात करने से परहेज किया। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी व राहुल गांधी दंगे में मारे गए पत्रकार राजेश वर्मा के घर पहुंचे।

    यहां सभी ने राजेश वर्मा की पत्नी व अन्य परिजनों को सांत्वना देते हुए घटना पर दुख जताया। मदद का आश्वासन भी दिया। यहां से पीएम का काफिला हेलीपैड जाएगा और वहां से दिल्ली के लिए उड़ान भरेगा। पीएम के दौरे के मद्देनजर आज राज्य सरकार ने कड़ी सुरक्षा के इंतजाम किए थे। गौरतलब है कि रविवार को सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी दंगा ग्रस्त इलाकों का दौरा कर वहां पीडि़तों से बात की थी। हालांकि उन्हें हर जगह लोगों का भारी विरोध भी झेलना पड़ा। कुछ जगहों पर उन्हें काले झंडे भी दिखाए गए।

    तोड़ा सुरक्षा घेरा

    मुजफ्फरनगर, जागरण संवाददाता। राहुल गांधी अमूमन अपना सुरक्षा घेरा तोड़ने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों से मिलने के दौरान उनकी मां सोनिया गांधी भी एक कदम आगे निकलीं। वह सुरक्षा घेरे को छोड़ शिविर में पीड़ित महिलाओं के बीच पहुंच गई। सोनिया ने लगभग 20 मिनट तक उनकी पीड़ा सुनी।

    बसीकलां में राहत शिविर में घुसते ही नेताओं ने पुरुष वर्ग की ओर रुख किया। कुछ देर तक उनकी समस्या सुनीं और फिर महिलाओं की ओर पहुंच गई। एक तो क्षेत्रीय भाषा समझने का संकट और दूसरा बल्लियों से बढ़ी दूरी। बार-बार कान लगाने के बावजूद सोनिया असहज महसूस करने लगीं तो अचानक ही सुरक्षाकर्मियों को छोड़कर बल्लियों के उस पार महिलाओं के बीच पहुंच गई। सोनिया ने इत्मिनान से महिलाओं की बातें सुनीं और उनका दर्द बांटने का प्रयास किया। बसीकलां में मां तो तावली में पुत्र राहुल गांधी ने यही रास्ता अपनाया। भीड़ से घिरे रहे राहुल लौटने वक्त सुरक्षा बल्लियों को फांदकर लोगों तक पहुंच गए और उनसे बातचीत की। राहुल के इतना करने भर की देरी थी कि पास खड़े कुछ लोगों ने राहुल गांधी जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए। कुछ देर बाद राहुल फिर एसपीजी की सुरक्षा में लौट आए।

    चौधरी हुए नजरअंदाज!

    लखनऊ, जागरण ब्यूरो। मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर पहले से ही सियासी मुश्किलों से दोचार राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजित सिंह की मुश्किलें प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के सोमवार दौरे ने और भी बढ़ा दीं। केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और यूपीए के घटक दल होने के बावजूद प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के कारवां में चौधरी की गैरमौजूदगी से न केवल उनकी सियासी हैसियत घटती नजर आई बल्कि कांग्रेस के साथ उनके भावी रिश्ते भी सवालिया निशानों की जद में आ गए। मुजफ्फरनगर के दंगे को लेकर रालोद मुखिया जैसी सियासी मुश्किल में हैं वह सभी को भली भांति विदित है और तीन दिन पहले वह अपने सांसद पुत्र जयंत चौधरी के साथ दंगा प्रभावित क्षेत्र में जाना चाहते थे लेकिन सूबाई प्रशासन ने उन्हें इजाजत नहीं दी। ऐसे में प्रधानमंत्री और यूपीए अध्यक्ष उन्हें अपने साथ ले जाकर उनकी बिगड़ी सियासी पोजीशन को कुछ हद तक दुरूस्त कर सकते थे लेकिन ऐसे हुआ नहीं या फिर किया नहीं गया।

    प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष के हाथों मिली इस ताजा उपेक्षा के बाद रालोद प्रमुख और कांग्रेस के बीच आने वाले दिनों में सियासी रिश्तों को लेकर फिर चर्चायें शुरू हो गई हैं। चौधरी अजित सिंह को मुजफ्फरनगर की साम्प्रदायिक हिंसा के चलते दोहरा नुकसान हुआ है और तब जब लोकसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, कांग्रेस बतौर चुनावी साझीदार रालोद की उपयोगिता और सार्थकता पर नए सिरे से गौर कर सकती है। खुद रालोद मुखिया भी कांग्रेस को लेकर इसी तरह की सोच के साथ अपना अगला कदम तय कर सकते हैं। एक दशक पर निगाह डालें तो चुनावी गठबंधन के मामले में चौधरी का रिकार्ड दिलचस्प रहा है। वर्ष 2002 के विधान सभा चुनाव में उनका गठबंधन भाजपा के साथ लेकिन 2004 का लोकसभा चुनाव उन्होंने सपा के साथ मिलकर लड़ा। इसके बाद 2007 के विधान सभा चुनाव में वह अकेले लड़े लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में फिर उनका गठबंधन भाजपा से हुआ लेकिन 2012 के विधान सभा चुनाव में वह कांग्रेस के जोड़ीदार थे।

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