जानकारी देने में देरी करने वाले अफसरों पर समान जुर्माना नहीं
केंद्रीय सूचना आयोग ने सूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी देने में देरी करने वालों को दंडित करने की अनिवार्यता ही किनारे लगा दी। सूचना आयुक्त शरत सभरवाल ने आरटीआइ अर्जी का तीस दिनों की तय मियाद में निस्तारण न करने वाले एक अफसर को जुर्माना लगाए बिना छोड़ दिया। आयोग का तर्क है कि सूचना देने में देरी करने वाले अफसरों पर एक समान जुर्माना नहीं लगाया जा सकता।
नई दिल्ली। केंद्रीय सूचना आयोग ने सूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी देने में देरी करने वालों को दंडित करने की अनिवार्यता ही किनारे लगा दी। सूचना आयुक्त शरत सभरवाल ने आरटीआइ अर्जी का तीस दिनों की तय मियाद में निस्तारण न करने वाले एक अफसर को जुर्माना लगाए बिना छोड़ दिया। आयोग का तर्क है कि सूचना देने में देरी करने वाले अफसरों पर एक समान जुर्माना नहीं लगाया जा सकता। खासबात यह है कि देश की कई उच्च न्यायालयों ने ऐसे अफसरों के लिए अनिवार्य रूप से दंड के प्रावधान की व्यवस्था की है।
केंद्रीय सूचना आयुक्त शरत सभरवाल ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण [यूआइडीएआइ] के एक सूचना अधिकारी के खिलाफ शिकायत पर यह व्यवस्था दी। सभरवाल ने आरटीआइ आवेदक के.अलेक्जेंडर की याचिका पर दिए फैसले में यह कहते हुए इतिश्री कर ली कि सूचना अधिकारी इसका ठोस कारण पेश नहीं कर सका कि जानकारी देने देने में विलंब क्यों हुआ। मुख्य सूचना आयुक्त सुषमा सिंह से इस बारे में बात करने पर उन्होंने सभरवाल के फैसले पर तो कुछ नहीं कहा। हां इतना जरूर कहा कि जुर्माना तय करने का मानक हर मामले में अलग-अलग होता है।
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वहीं, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा, सूचना आयुक्त यदि आश्वस्त हो जाए कि सूचना देने में देरी की ठोस वजह नहीं थी तो फिर उसे संबंधित अधिकारी पर अनिवार्य रूप से जुर्माना लगाना ही होगा। कानून कहता है कि आयोग अधिकारी पर जुर्माना लगा सकता है। उच्च न्यायालयों के फैसलों में भी ऐसी व्यवस्था दी गई है। पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा ने भी ऐसी ही राय जाहिर की है।
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