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    चाबहार समझौते से पाक बेचैन, अफगानिस्तान को लेकर ज्यादा चिंतित

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Sat, 28 May 2016 10:25 AM (IST)

    भारत-इरान-अफगानिस्तान चाबहार समझौते ने पाकिस्तान की नींद उड़ा कर रख दी है। जिसके बाद पाकिस्तान में इरानी राजदूत को कहना बड़ा कि चाबहार बंदरहाग ग्वादर बंदरगाह विरोध नहीं है।

    नई दिल्ली, [नीलू रंजन]। भारत-इरान-अफगानिस्तान के बीच चाबहार समझौते से पाकिस्तान के भीतर खलबली मच गई है। नौबत यहां तक आ गई कि पाकिस्तान में इरानी राजदूत को कहना पड़ गया कि चाबहार बंदरगाह, ग्वादर बंदरगाह का विरोधी नहीं है और भविष्य में इसमें पाकिस्तान और चीन के शामिल होने का रास्ता खुला हुआ है। मध्य एशिया में भारत के दबदबा बढऩे की आशंका के साथ ही पाकिस्तान के भीतर सबसे बड़ी बेचैनी अफगानिस्तान की उस पर निर्भरता खत्म होने को लेकर है।

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    दरअसल, पाकिस्तान में ब्लूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह आर्थिक विकास के बड़े मंसूबे पाल रखे थे। चीन न सिर्फ इस बंदरगाह का विकास कर रहा है, बल्कि यहां तक पहुंचने के लिए सड़क भी बना रहा है। पाकिस्तान में इसे विकास के गलियारे के रूप में देखा जा रहा था। पाकिस्तान में इससे विकास की असीम संभावनाओं के द्वार खुलने केे कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन चाबहार बंदरगाह के लेकर भारत के समझौते के बाद विकास का यह सपना टूटने लगा है। चाबहार बंदरगाह के रास्ते भारत न सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि मध्य एशिया के अन्य देशों के साथ सीधे व्यापार कर सकता है। एक बार चाबहार बंदरगाह पर पहुंचने के बाद भारतीय माल रेल और सड़क मार्ग से मध्य एशिया में कहीं भी पहुंच सकता है। जो पाकिस्तान के बीच में होने के कारण संभव नहीं हो पा रहा था।

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    भारत के लिए जो असीम संभावनाओं का दरवाजा है, वहीं पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फेरने साबित हो सकता है। ग्वादर बंदरगाह के सिर्फ चीनी इस्तेमाल तक सीमित होने की आशंका है। क्योंकि अफगानिस्तान की मदद के बिना यहां से मध्य एशिया तक पहुंचना मुश्किल होगा। जबकि चाहबार बंदरगाह अफगानिस्तान की पाकिस्तान पर निर्भरता पूरी तरह खत्म कर देगा। चारों तरफ जमीन से घिरे अफगानिस्तान को चाबहार बंदरगाह से समुद्री व्यापार से जुडऩे का रास्ता मिल जाएगा। जिसके लिए इस समय अफगानिस्तान को पाकिस्तान पर निर्भर रहना पड़ता था।

    इरान और अमेरिका के बीच कटु संबंधों को देखते हुए पाकिस्तान ने मान लिया था कि पिछले 13 सालों से लंबित चाबहार समझौता कभी सफल नहीं होगा। लेकिन भारत न सिर्फ यह समझौता करने में सफल रहा, बल्कि अमेरिका ने इसपर मुहर भी लगा दी है।