सुप्रीम कोर्ट के फैसले से फीका हो सकता है दिवाली का मजा
इस दीवाली पर सुप्रीम कोर्ट आतिशबाजी छोड़ने के समय को कम कर आपकी खुशियों को फीका कर सकता है। दरअसल आतिशबाजी के समय को कम से कम निर्धारित करने के लिए याचिकाकर्ता एएम सिंघवी ने तीन स्कूली बच्चों की ओर से एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है। इसकी
नई दिल्ली। इस दीवाली पर सुप्रीम कोर्ट आतिशबाजी छोड़ने के समय को कम कर आपकी खुशियों को फीका कर सकता है। दरअसल आतिशबाजी के समय को कम से कम निर्धारित करने के लिए याचिकाकर्ता एएम सिंघवी ने तीन स्कूली बच्चों की ओर से एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है। इसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता के सुझावों को गंभीरता से लेते हुए इस बाबत सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह अपने सुझाव एक सप्ताह के अंदर देने के निर्देश दिए हैं। इस मामले में अगली सुनवाई अब 27 अक्टूबर को होनी है।
सिंघवी ने अपनी याचिका में बढ़ते प्रदूषण और उम्रदराज लोगों की हालत खराब होने का हवाला दिया है। याचिका में कहा गया है कि प्रदूषण के साथ आतिशबाजी की आवाज से भी ऐसे लोगों को नुकसान होता है। ऐसे में आतिशबाजी छोड़ने की समयाविधी तय की जानी चाहिए। कोर्ट के समक्ष इस संबंध में पहले महज दो घंटे शाम 7 बजे से रात 9 बजे तक का समय विचार के लिए आया था। लेकिन कोर्ट ने माना कि यह समय नाकाफी है, लिहाजा इस बारे में शाम 5 बजे से रात 10 बजे पर विचार किया जा रहा है। इसी संबंध में कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल को सुझाव देने के लिए कहा है। यदि कोर्ट इस बारे में यही फैसला लेती है तो आतिशबाजी छोड़ने वालों के लिए एक बुरी खबर होगी।
इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनावाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकार को भी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा पटाखों से होने वाले बुरे प्रभाव को लेकर जागरूक करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि देश में विभिन्न संस्थानों और स्कूलों के शिक्षक भी बच्चों को पटाखों न छोड़ने के बारे में जागरूक करें।
कोर्ट ने इस संबंध में कम से कम लाइसेंस देने की भी बात कही है। इस पर आतिशबाजी बनाने के लिए मशहूर शिवाकासी मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी ने कहा है कि इस फैसले से उनके उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस एचएल दत्तू और अमिताव रॉय की बैच ने की है। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में आतिशबाजी को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने की भी बात कही है। उनका कहना था कि इससे ध्वनि प्रदूषण के अलावा वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी रोगों को भी बढ़ावा मिलता हैं।