तमिलनाडु की राजनीति में पन्नीरसेल्वम ने बरकरार रखी 'कठपुतली मुख्यमंत्री' की छवि
रविवार को पन्नीरसेल्वम ने राज्यपाल विद्यासागर राव का अपना इस्तीफा भेजते हुए व्यक्तिगत कारणों का हवाला दिया है।
चेन्नई, जेएनएन। तमिलनाडु की राजनीति में चायवाले से राजनेता बने ओ. पन्नीरसेल्वम ने शशिकला के लिए तीसरी बाद मुख्यमंत्री पद की कुर्सी छोड़कर एक 'कठपुतली मुख्यमंत्री' की अपनी छवि बरकरार रखी। रविवार को पन्नीरसेल्वम ने राज्यपाल विद्यासागर राव को अपना इस्तीफा भेजते हुए व्यक्तिगत कारणों का हवाला दिया।
हालांकि, मानवता और वफादारी के लिए जाने जानेवाले पैसठ वर्षीय राजनेता पन्नीरसेल्वम से इस बार ऐसी उम्मीद नहीं की गई थी। पन्नीरसेल्वम साल 2001 में पहली बार उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री बने जब सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता को इस पद पर बने रहने पर रोक लगा दी थी।
लेकिन, छह महीने बाद ही जब जया वापस मुख्यमंत्री का पदभार लेने आयी तो वे बिना किसी अड़चन के हट गए। उसके बाद पन्नीरसेल्वम फिर से साल 2014 में सात महीने के लिए मुख्यमंत्री बने जब आय से अधिक संपत्ति के मामले में जयललिता को दोषी ठहराया गया।
इस बार, पन्नीरसेल्वम केवल एक महीने के लिए ही मुख्यमंत्री बने। लेकिन, यह कहा जा सकता है कि लोगों ने यह झलक देखी कि कैसे पन्नीरसेल्वम अकेले बतौर मुख्यमंत्री किस तरह का काम कर सकते हैं। एक समय था जब बतौर मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम किसी भी फाइल पर दस्तखत करने से पहले जयललिता की इजाजत लिया करते थे। लेकिन, जयललिता के निधन के बाद यह काम उन्हें अकेले करना था जो उन्होंने अपने सलाहकार शीला बालाकृष्णन की मदद से किया।
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मंत्रियों का यह दबाव कि शशिकला को मुख्यमंत्री बनाया जाए इसके बावजूद पन्नीरसेल्वम खुद मुख्यमंत्री बने। जिसके बाद कई लोगों ने ऐसा कहा कि जिस तरह वे मुख्यमंत्री बने इसके बाद यह बात साफ हो गई है कि उनकी मुख्यमंत्री पद पर नजर थी और वे सत्ता के केन्द्र बन गए। पिछले तीन महीने में, पन्नीरसेल्वम ने जिस तरह बतौर मुख्यमंत्री काम किया उसको लेकर विपक्षी भी उनके कायल हो गए। विधानसभा का पूरा सत्र बिना किसी डीएमके सदस्य के वॉकआउट या हंगामे के चला।
ऐसा कहा जा रहा है कि पन्नीरसेल्वम को भाजपा का भी समर्थन था। इसके साथ ही, पार्टी का एक बड़ा वर्ग उनके साथ खड़ा था और यहां तक की लोगों की राय भी उनके पक्ष में थी। उसके बावजूद उन्होंने शशिकला के लिए मुख्यमंत्री पद का त्याग कर दिया।
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