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झारखंड: भाजपा का उल्‍टा पड़ सकता है गैर आदिवासी सीएम का दांव

झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से उछाला गया आदिवासी बनाम गैर आदिवासी मुख्यमंत्री का जुमला मुद्दा बनता जा रहा है। भाजपा के शीर्ष नेता चुनाव में जहां इससे पल्ला झाड़ते नजर आते हैं, वहीं एक धड़े ने इसे तूल देकर पार्टी के लिए मुश्किल पैदा कर दी है।

By Sanjay BhardwajEdited By: Published: Tue, 09 Dec 2014 08:44 AM (IST)Updated: Tue, 09 Dec 2014 09:08 AM (IST)
झारखंड: भाजपा का उल्‍टा पड़ सकता है गैर आदिवासी सीएम का दांव

रांची [जागरण ब्यूरो]। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से उछाला गया आदिवासी बनाम गैर आदिवासी मुख्यमंत्री का जुमला मुद्दा बनता जा रहा है। भाजपा के शीर्ष नेता चुनाव में जहां इससे पल्ला झाड़ते नजर आते हैं, वहीं एक धड़े ने इसे तूल देकर पार्टी के लिए मुश्किल पैदा कर दी है। ऐसे में लंबी चुनाव प्रक्रिया में गैर आदिवासी सीएम का मुद्दा भाजपा को उल्टा भी पड़ सकता है।

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विधानसभा चुनाव में कमल दल के लिए चुनौती बने झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भाजपा की इस अंदरूनी चर्चा को अपने मंच से मुद्दा बनाकर उठाना शुरू कर दिया है। भाजपा के साथ फंसी सीटों पर यह मसला झामुमो का काम आसान कर सकता है। इन सीटों पर महज कुछ फीसद वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा के लिए अंतर बन जाएगा। समय से पूर्व गैर आदिवासी सीएम की चर्चा से भितरखाने भाजपा चिंतित दिखाई दे रही है, जिसे शांत करने में वरिष्ठ नेता मशक्कत कर रहे हैं।

गले की हड्डी बना एक्ट में बदलाव की चर्चा

गैर आदिवासी सीएम के साथ भाजपा के कुछ नेताओं ने सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन की बात भी कही है। ब्रिटिश काल का यह कानून आदिवासी जमीनों के संरक्षण के लिए बनाया गया था। इसमें प्रावधान है कि कोई गैर आदिवासी जनजातीय समुदाय के लोगों की जमीन नहीं खरीद सकता। यही नहीं, कोई आदिवासी भी अपने निवास स्थान के दायरे में आने वाले थाना क्षेत्र से इतर जमीन नहीं ले सकता।

केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ब्रिटिश जमाने के कानूनों की समीक्षा और समाप्त करने संबंधी बयान दिया तो झामुमो ने उसे लपकते हुए आदिवासी अस्मिता से जोड़ दिया। पिछले दिनों झामुमो उपाध्यक्ष हेमंत सोरेन ने कानून में छेड़छाड़ पर खून की नदी बहाने तक की धमकी दे डाली। हालांकि भाजपा ने स्पष्ट किया है कि उसका इरादा सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का कतई नहीं है।

बदली रणनीति

हरियाणा और महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कंधे पर सवार हो चुनावी नैया पार करने वाली भाजपा को झारखंड के क्षेत्रीय क्षत्रपों ने अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। भाजपा ने अब मोदी के अलावा पार्टी के क्षेत्रीय कद्दावर चेहरों को भी तरजीह देना शुरू कर दिया है। चुनाव का पहला चरण तो पूरी तरह मोदी और शाह के नाम पर लड़ा गया, लेकिन बाद में भाजपा ने स्थानीय क्षत्रपों को आगे करना शुरू किया।

कमल के पास बढ़त का मौका

झारखंड में विधानसभा चुनाव के पहले दो चरणों से बने माहौल को सही मायने में भुनाने का मौका अब भाजपा के पास आया है। तीसरे चरण में होने वाले 17 सीटों के मुकाबले में विप क्ष का बिखराव भाजपा को बढ़त बनाने का मौका दे सकता है।

मौजूदा स्थिति की बात करें तो इस चरण में भाजपा 17 में चार सीटों रांची, कांके, बरही और बरकट्ठा सीट पर काबिज है, जबकि उसकी सहयोगी आजसू के पास सिल्ली और रामगढ़ है। वहीं हटिया के आजसू विधायक नवीन जायसवाल इस बार झारखंड विकास पार्टी से किस्मत आजमा रहे हैं।

इस चरण में भाजपा-आजसू की जुगलबंदी गुल खिला सकती है। दोनों सहयोगी दलों की चुनौती इन सात सीटों को बरकरार रखने के साथ-साथ बढ़त बनाने की है। परिस्थतियां उसे ऐसा करने का मौका भी प्रदान कर रही है। कांग्रेस का बिखराव और उसके प्रमुख नेताओं का चुनाव में न रहना भाजपा के लिए मुफीद साबित हो सकता है।

कांग्रेस के खिजरी विधायक सावना लकड़ा और बड़कागांव विधायक योगेंद्र साव जेल में हैं। हजारीबाग से दो बार विधायक रह चुके सौरभ नारायण सिंह इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और गोमिया विधायक माधव लाल सिंह हाथ छोंड़ कमल थाम चुके हैं।

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