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    दहेज विरोधी कानून में तुरंत गिरफ्तारी नहीं

    By Edited By:
    Updated: Wed, 02 Jul 2014 11:53 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने असंतुष्ट पत्नियों द्वारा पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग करने पर चिंता जताई है। कोर्ट ने बुधवार को यह व्यवस्था दी कि ऐसे मामलों में पुलिस अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर सकती। उसे गिफ्तारी के लिए हर हाल में कारण बताने होंगे जिनकी अदालत से जांच होगी।

    नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने असंतुष्ट पत्नियों द्वारा पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग करने पर चिंता जताई है। कोर्ट ने बुधवार को यह व्यवस्था दी कि ऐसे मामलों में पुलिस अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर सकती। उसे गिफ्तारी के लिए हर हाल में कारण बताने होंगे जिनकी अदालत से जांच होगी।

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    शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस का पहले गिरफ्तार करो, उसके बाद आगे बढ़ो का रवैया निंदनीय है। इस पर हर हाल में रोक लगनी चाहिए। कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि दहेज उत्पीड़न सहित सभी अपराधों [जिनमें सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान है] में पहले गिरफ्तारी का सहारा नहीं ले।

    न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, हम सभी राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि अपने पुलिस अधिकारियों को यह सिखाए कि जब भारतीय दंड संहिता [आइपीसी] की धारा 498अ [दहेज उत्पीड़न] के तहत मामला दर्ज हो तो तत्काल गिरफ्तारी न करें। उसकी जगह आपराधिक प्रक्रिया संहिता [सीआरपीसी] की धारा 41 के तहत गिरफ्तारी के लिए जो मानदंड निर्धारित हैं उसके तहत गिरफ्तारी की जरूरत से खुद को संतुष्ट कर लें। पुलिस अधिकारी जिस वजह से गिरफ्तारी जरूरी है उसके लिए कारण और तथ्य मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर सकते हैं। संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष उपर्युक्त कारणों को दर्ज कराए बगैर हिरासत में रखने का अधिकार देने वाला संबंधित हाई कोर्ट से विभागीय कार्रवाई का भागी होगा।

    आइपीसी की धारा 498अ महिला को उसके पति या उसके रिश्तेदारों के हाथों उत्पीड़न से बचाने के लिए है। वास्तव में यह धारा संज्ञेय और गैर जमानती है। इस धारा के प्रावधानों का इस्तेमाल उत्पीड़न से बचाव की जगह असंतुष्ट महिलाएं हथियार की तरह करने लगी हैं।

    परेशान करने का सबसे आसान तरीका यह है कि पति और उसके रिश्तेदारों को इस कानून के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार करा दिया जाए। अदालत ने कहा कि बहुत सारे मामलों में पति के बूढ़े दादा-दादी, दशकों से विदेश में रहने वाली बहनें भी गिरफ्तार की गई हैं।

    कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी स्वतंत्रता को कम करती है, इससे व्यक्ति अपमानित होता है और इससे हमेशा के लिए कलंक लग़ जाता है। सिर्फ इस वजह से किसी की गिरफ्तारी नहीं करनी चाहिए कि यह अपराध गैर जमानती और संज्ञेय है। गिरफ्तार करने का अधिकार होना एक बात है और इस अधिकार का उचित होना अलग बात है। सुप्रीम कोर्ट ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा वर्ष 2012 में धारा 498 अ के तहत एक लाख 97 हजार 762 लोग गिरफ्तार किए गए। इस प्रावधान के तहत जो गिरफ्तारी हुई उनमें से करीब एक चौथाई मामलों में पतियों की मां और बहनों की भी गिरफ्तारी की गई। यह आइपीसी के तहत सभी आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी का छह फीसद है। यह चोरी और चोट पहुंचाने के मामलों के अलावा अन्य किसी भी अपराध में गिरफ्तारी से अधिक है। ऐसे 93 फीसद मामले में अरोप पत्र का दायर हुए जबकि मात्र 15 फीसद में दोष साबित हुआ।

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