Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आइटी राजधानी में आप फैक्टर नहीं

    By Edited By:
    Updated: Wed, 16 Apr 2014 05:50 PM (IST)

    बेंगलूर, राजकिशोर। नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के साइबर अभियान का केंद्र रहे बेंगलूर की जमीनी लड़ाई सोशल मीडिया की दुनिया से बिल्कुल अलग है। दिल्ली ...और पढ़ें

    Hero Image

    बेंगलूर, राजकिशोर। नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के साइबर अभियान का केंद्र रहे बेंगलूर की जमीनी लड़ाई सोशल मीडिया की दुनिया से बिल्कुल अलग है। दिल्ली के बाद देश के जिन बड़े शहरों में आम आदमी पार्टी को झाड़ू चलने की उम्मीद थी, उसमें बेंगलूर की तीन शहरी सीटें भी शामिल थीं। मगर कर्नाटक में मोदी की अडिग नेता की छवि के सामने मात्र 49 दिनों में दिल्ली की सत्ता छोड़ने वाले केजरीवाल की भगोड़ा छवि टिक नहीं पा रही है। शहरी क्षेत्रों में जहां आप प्रभावी नहीं है, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की जनता दल (एस) भी इस दफा गांवों में उतनी प्रभावी नहीं है। राज्य की 28 सीटों में से ज्यादातर में कांग्रेस-भाजपा के बीच ही मुकाबला है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गुरुवार यानी 17 अप्रैल को कर्नाटक की सभी सीटों के लिए होने वाले मतदान का प्रचार अब थम गया है। नतीजे तो 16 मई को आएंगे, लेकिन कर्नाटक में तस्वीर लगभग साफ होती जा रही है। बेंगलूर से मोदी और केजरीवाल दोनों का ही अहम रिश्ता है। मोदी का वन इंडिया अभियान हो या फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ केजरीवाल को साइबर दुनिया में नायक के रूप में स्थापित करने का अभियान। दोनों का ही केंद्र बेंगलूर ही रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी की राजधानी के रूप में तब्दील हो चुके बेंगलूर ने कर्नाटक में सबसे पहले भाजपा को सिर चढ़ाया। इसके बाद अन्ना हजारे के आंदोलन के समय से ही अरविंद केजरीवाल को भारी समर्थन मिला। इसे देखते हुए बेंगलूर की तीन शहरी सीटों दक्षिण, उत्तर और सेंट्रल में दिल्ली जैसी सफलता दोहराने की उम्मीद थी। फिर आप को सबसे ज्यादा चंदा देने वाले शहरों में बेंगलूर अभी भी अग्रणी है। इसके बावजूद यहां चुनाव में केजरीवाल कोई फैक्टर नहीं बन सके हैं।

    साइबर दुनिया में भले ही बेंगलूर ने मोदी और केजरीवाल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाने में मदद की हो, लेकिन सियासत की जमीन पर लड़ाई बिल्कुल अलग है। विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से आई कांग्रेस से भाजपा यहां मोदी के सहारे कुछ हद तक अपनी जमीन वापस पाती साफ दिख रही है। सबसे ज्यादा दिलचस्पी थी कि बेंगलूर के आइटी हब में आप क्या गुल खिलाती है? अभी जिस तरह के हालात हैं उसमें केजरीवाल अपनी लोकप्रियता खोते दिख रहे हैं। दिल्ली की सत्ता छोड़ भागने का मुलम्मा इस कदर चढ़ा है कि नौकरीपेशा मध्यमवर्ग आप पर भरोसा करने को तैयार नहीं है। वहीं, फिलहाल आप के एजेंडे में सबसे ऊपर मुस्लिम वोटर कर्नाटक में निर्विवाद रूप से कांग्रेस में जा रहे हैं।

    ऐसे में अकेले सेंट्रल बेंगलूर की सीट है, जहां इंफोसिस के संस्थापक सदस्य व आप प्रत्याशी बालाकृष्णन कुछ मुकाबले में दिख रहे हैं। अन्य जगहों पर पहले-दूसरे नंबर की लड़ाई में आप प्रत्याशी कहीं हैं ही नहीं। मोदी के सख्त प्रशासक और हिंदू हृदय सम्राट के साथ-साथ विकासपुरुष की छवि के सामने केजरीवाल दरअसल बेंगलूर के मध्यवर्ग के बीच अपनी विश्वसनीयता कायम नहीं कर सके। इंजीनियर, डॉक्टर, शिक्षक या व्यवसायी किसी भी तबके से बात करो तो उसकी पसंद या नापसंद भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सिमटी हुई है। केजरीवाल के दिल्ली में सरकार में रहते हुए लिए गए फैसले और फिर जिस तरह से उन्होंने सरकार छोड़ी और अब वोटबैंक की सियासत में पड़े, उससे मध्य वर्ग में खासी नाराजगी है। लोगों को लग रहा है कि केजरीवाल सिर्फ अवसरवाद के लिए मुद्दे उठाते हैं और उन्हें बीच में ही छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। संभवत: बेंगलूर में दिल्ली सरकार छोड़ने के बाद गिरे आप के ग्राफ के बाद ही केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा देने की गलती याद आई।

    पढ़ें: महामना मामले में केजरी के खिलाफ मुकदमा