सामने नहीं आया नरसंहारों का सच : उमर
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री व नेशनल कांफ्रेंस के कार्यवाहक प्रधान उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर से पंडितों को निकाले जाने व गॉवकदल जैसे नरसंहारों का सच सामने न आने के लिए भारत व पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है।
जम्मू [राज्य ब्यूरो]। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री व नेशनल कांफ्रेंस के कार्यवाहक प्रधान उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर से पंडितों को निकाले जाने व गॉवकदल जैसे नरसंहारों का सच सामने न आने के लिए भारत व पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है।
गॉवकदल मामले को लेकर बुधवार को कश्मीर में हड़ताल के चलते उमर ने ट्विटर पर लिखा कि पंडितों को निकाला जाना व गॉवकदल जैसे नरसंहार भारत व पाकिस्तान को राज्य में ट्रुथ एंड रिकांसीलिएशन कमीशन न बनने के लिए जवाबदेह ठहराते हैं।
इस मुद्दे पर उमर ने विपक्षी पार्टी पीडीपी व उसके नेतृत्व को भी निशाना बनाया है। किसी का नाम लिए बिना उमर ने लिखा है कि गॉवकदल नरसंहार का जिम्मेदार इस समय अपनी ताजपोशी के प्रयासों में जुटा है। वह इस काले दिन को भुलाकर इस पर चुप्पी साधे हुए हैं।
उमर को अपने ट्वीट के जवाब में कई तीखे प्रश्न भी झेलने पड़े हैं। कुछ ने कश्मीर के हालात के लिए नेकां को जवाबदेह ठहराकर इन प्रश्नों के उत्तर फारूक अब्दुल्ला से पूछने का सुझाव दिया है। कुछ का कहना है कि सत्ता के छह सालों में उमर ने यह मुद्दे क्यों नहीं उठाए।
एक फॉलोवर ने देश के आंतरिक मामले में पाकिस्तान का नाम लेने के लिए उमर को घेरा है। उन्होंने पूछा है कि राज्य में कमीशन बनाने में पाकिस्तान की क्या भूमिका है। इस पर उमर ने जवाब में लिखा है कि सबको पता है कि राज्य का एक हिस्सा इस समय पाकिस्तान के कब्जे में है, वहां पर प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं और आदेश भी वहीं से आते हैं। मैं सिर्फ सच जानना चाहता हूं।
हिंसक प्रदर्शनों में पांच घायल
श्रीनगर। गॉवकदल गोलीकांड की 25वीं बरसी पर बुधवार को लालचौक व उसके साथ सटे इलाकों में रही हड़ताल के दौरान पुलिस और देश विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़पों में पांच लोग जख्मी हो गए। इस दौरान पीपुल्स पोलिटीकल पार्टी के चेयरमैन हिलाल अहमद वार पुलिस की नजरबंदी में रहे। वहीं, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन मुहम्मद यासीन मलिक के जुलूस को पुलिस ने नाकाम बना दिया।
गौरतलब है कि 21 जनवरी 1990 को मैसूमा को डाऊन-टाऊन से जोड़ने वाले गॉवकदल पुल पर एक देश विरोधी जुलूस के हिंसक होने पर सुरक्षाबलों को गोली चलानी पड़ी थी। इसमें 52 लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे। इस घटना के खिलाफ हर साल 21 जनवरी को कश्मीर में अलगाववादी बंद का आयोजन करते हैं।
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