पाक हमला: मुंहतोड़ जवाब की दरकार
हमारे पांच जवानों को शहीद करने वाली पाकिस्तान की नापाक हरकत विशेषज्ञों की राय में सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। कश्मीर में दम तोड़ते आतंकवाद को एक बार ...और पढ़ें

हमारे पांच जवानों को शहीद करने वाली पाकिस्तान की नापाक हरकत विशेषज्ञों की राय में सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। कश्मीर में दम तोड़ते आतंकवाद को एक बार फिर जिंदा करने की कवायद है। वैसे भी वह 2014 में अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी की बेसब्री से राह देख रहा है। वह कश्मीर के हालात पिछली सदी के अंतिम दशक की तरह करने का ख्वाहिशमंद है तभी लगातार नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रहा है। ऐसे में भारत को भी ठोस कदम उठाते हुए मुंहतोड़ जवाब देने की जरूरत है। इसके लिए हमको अपनी रणनीति बदलनी होगी:
जरूरत
* भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान के शांति उल्लंघन को पूरी दुनिया के समक्ष सप्रमाण पेश कर उसको बेनकाब करे।
* उसकी तरफ से दोस्ती के लिए बढ़े हाथ में केवल नवाज शरीफ की ही मंशा को नहीं देखना चाहिए। पाकिस्तानी के सबसे शक्तिशाली खिलाड़ियों सेना और आइएसआइ की मंशा को भी भांपने और आजमाने की जरूरत है।
* द्विपक्षीय बातचीत की प्रक्रिया को बढ़ावा देने की जरूरत है लेकिन उसका स्तर और संभावनाएं तभी तलाशनी चाहिए जब उनकी तरफ से अमल की पुख्ता गारंटी दी जाये। एलओसी पर शांति के लिए उस पर सार्थक दबाव बनाने की जरूरत है।
* सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए सियासी दलों को भी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस मसले पर राजनीति से परहेज करना चाहिए।
दुश्मन की रणनीति
* पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के काले कारनामों पर पैनी नजर रखने वाले रक्षा विशेषज्ञों की राय में जम्मू सेक्टर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्ष विराम का लगातार उल्लंघन आइएसआइ की कम से कम अगले पांच-दस वर्षो की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है।
* 2014 में दक्षिण एशिया के परिदृश्य में बड़े बदलाव होने वाले हैं। एक बार अमेरिका का दबाव अफगानिस्तान पर कम होने से पाकिस्तान उसका लाभ उठाने की फिराक में है। वह अफगानिस्तान युद्ध खत्म होने के बाद वहां लड़ रहे तमाम तालिबान लड़ाकों और बड़ी मात्रा में गोला-बारूद का कश्मीर में इस्तेमाल करना चाहता है। इसलिए ताजा हरकतों के पीछे उसकी कोशिश कश्मीर में आतंक की पौध को सींचते रहने की लगती है।
* आइएसआइ ने पाकिस्तानी बॉर्डर के दोनों पूर्वी और पश्चिमी मोर्चे पर हरकत शुरू भी कर दी है। शनिवार को पूर्वी अफगानिस्तान के जलालाबाद में भारतीय कांसुलेट पर भी हमला इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। यद्यपि उस हमले में कोई घायल नहीं हुआ।
* अगले साल देश में आम चुनाव भी होने वाले हैं। देश में चुनावी माहौल बन रहा है। सरकार भी अनिर्णय की स्थिति में है। विश्लेषकों की राय में सीमापार के लोग इस तरह की स्थिति का लाभ उठाने की फिराक में हैं।
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