नजीब जंग का इन्कार, केजरीवाल का पलटवार
दिल्ली जन लोकपाल बिल के मामले में उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के अधिकारों को खुलकर चुनौती दे रहे मुख्यमंत्री केजरीवाल सोमवार को विधानसभा सत्र के आयोजन के मामले में उपराज्यपाल नजीब जंग की सलाह पर बिफर पड़े। उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री को सोमवार को भेजे जवाबी पत्र में कहा था कि बिल पारित कराने के लिए इ
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली जन लोकपाल बिल के मामले में उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के अधिकारों को खुलकर चुनौती दे रहे मुख्यमंत्री केजरीवाल सोमवार को विधानसभा सत्र के आयोजन के मामले में उपराज्यपाल नजीब जंग की सलाह पर बिफर पड़े। उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री को सोमवार को भेजे जवाबी पत्र में कहा था कि बिल पारित कराने के लिए इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में विधानसभा सत्र आयोजित करने के मामले में सुरक्षा व कानून तथा व्यवस्था को लेकर पुलिस की राय पर गौर करना जरूरी है। उन्होंने लिखा कि पुलिस ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि सत्र में भाग लेने पहुंचे ऐसे लोगों की पहचान करना मुश्किल होगा, जिनका इरादा गड़बड़ी करना और सत्र की कार्यवाही को बाधित करना होगा। उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री को उनके जनता दरबार की याद भी दिलाई, जिसमें भारी हंगामा हो गया था। उपराज्यपाल जंग की यह सलाह मुख्यमंत्री को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने जंग को जवाबी पत्र भेजने में जरा भी देर नहीं लगाई और पत्र में लिखा कि यदि पुलिस मंत्रियों व विधायकों को सुरक्षा नहीं दे सकती तो वह पूरे शहर की सुरक्षा कैसे करेगी? उन्होंने यह भी कहा कि यदि पुलिस आम जनता की सुरक्षा करने में अक्षम साबित हो रही है तो पुलिस आयुक्त को अपने पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है। केजरीवाल ने उपराज्यपाल को यह भी लिखा कि राज्य मंत्रिमंडल ने यह फैसला किया है कि 16 फरवरी को विधानसभा सत्र खुले में आयोजित किया जाए। यदि पुलिस इस सत्र को सुरक्षा देने में खुद को अक्षम पा रही है तो केंद्र से पर्याप्त संख्या में अर्धसैनिक बलों व अन्य सुरक्षा बलों की मांग की जानी चाहिए। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि लोकतंत्र को चारदीवारी से बाहर निकालने की जरूरत है ताकि जनता से जुड़े मुद्दों पर जनता के सामने ही बहस होनी चाहिए। दिल्ली पुलिस जनता की सुरक्षा करने में यदि अक्षम साबित हो रही है तो पुलिस आयुक्त को अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।
विवादों का पिटारा साबित हो रहे दिल्ली जन लोकपाल बिल के बहाने उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच अधिकारों की जंग तेज हो गई है। दिल्ली सरकार द्वारा इस बिल के मामले में उपराज्यपाल और केंद्र सरकार की अनुमति लेने से इन्कार करने के मद्देनजर उपराज्यपाल ने अब केंद्रीय विधि व न्याय मंत्रालय से राय मांगी है।
उपराज्यपाल ने मंत्रालय से इस मामले में संवैधानिक स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह करते हुए पूछा है कि राज्य सरकार द्वारा इस बिल को विधानसभा में पेश करने से पूर्व केंद्र सरकार की अनुमति लेना जरूरी है अथवा नहीं? सनद रहे कि वे इस मामले में उपराज्यपाल सॉलिसिटर जनरल की राय ले चुके हैं जिन्होंने कहा था कि बगैर केंद्र की अनुमति के इस बिल को विधानसभा में पेश करना असंवैधनिक होगा।
केजरीवाल को भेजा जवाबी पत्र
उपराज्यपाल ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री द्वारा लिखे पत्र के जवाब में लिखे पत्र में कहा है कि इस बिल को विधानसभा में पेश किए जाने को लेकर कानूनी हकीकत यही है कि बगैर उपराज्यपाल की मंजूरी के इसे विधानसभा में पारित नहीं किया जाएगा। इतना ही नहीं, यह भी ध्यान रखना होगा कि दिल्ली जन लोकपाल बिल के कई प्रावधान केंद्र सरकार द्वारा पहले ही लागू किए जा चुके लोकपाल व लोकायुक्त कानून, 2013 से मिलते-जुलते हैं। ऐसी सूरत में यह बेहद जरूरी है कि इस बिल को विधानसभा में पेश किए जाने से पहले इसे उपराज्यपाल को भेजा जाए ताकि राष्ट्रपति की इजाजत ली जा सके। पत्र में यह भी कहा है कि ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स 1993 के नियम 34 के तहत इस बिल को उपराज्यपाल की मंजूरी के बगैर दिल्ली मंत्रिमंडल के समक्ष भी नहीं पेश किया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया और मंत्रिमंडल ने इसे मंजूरी दे दी।
मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में उपराज्यपाल जंग ने उन्हें याद दिलाया है कि सरकार के वित्त, कानून तथा प्रशासनिक सुधार विभाग ने भी जन लोकपाल बिल पर अपनी राय में यह कहा था कि चूंकि इसके पारित होने पर सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा, लिहाजा उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी है। लेकिन दिल्ली मंत्रिमंडल ने इन विभागों की राय को स्वीकार करना भी जरूरी नहीं समझा। अंत में कहा है कि इस बिल को लेकर मजबूत राय तो यही है कि इसे उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए भेजा जाना चाहिए। लेकिन मुख्यमंत्री अन्य लोगों की राय का हवाला दे रहे हैं। लिहाजा, इस मामले में किसी भी विवाद से बचने तथा स्पष्टता के लिए इस पूरे मामले को केंद्रीय विधि व न्याय विभाग को भेज दिया है ताकि संवैधानिक स्थिति को लेकर अंतिम राय हासिल की जा सके।
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