म्यांमार ऑपरेशन भी बन सकता है चुनावी मुद्दा
म्यांमार में ऐतिहासिक सैन्य ऑपरेशन और राजनीति दो बिल्कुल विपरीत विषय भले ही हों, इसका असर राजनीति और चुनाव पर पड़ना तय है।
नई दिल्ली । म्यांमार में ऐतिहासिक सैन्य ऑपरेशन और राजनीति दो बिल्कुल विपरीत विषय भले ही हों, इसका असर राजनीति और चुनाव पर पड़ना तय है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है आगामी बिहार और उसके बाद पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे चुनावों में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से यह चर्चा का बड़ा मुद्दा बने।
जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन और उसके बाद मसर्रत आलम की रिहाई जैसे कुछ मुद्दों पर उठे विवाद का छींटा भाजपा पर भी पड़ा था। राष्ट्रवादी और मजबूत सरकार की छवि पर कुछ छींटे लगे थे। लेकिन म्यांमार ऑपरेशन ने सारे दाग धो दिए। बिहार जैसे राजनीतिक रूप से परिपक्व प्रदेश में इसका मुद्दा बनना तय है। इसी क्रम में उल्फा के खिलाफ ऑपरेशन, नक्सलियों का दमन, सीमा पर पाकिस्तान के खिलाफ दबाव बनाना जैसे कई उदाहरण पेश किए जा सकते हैं।
पाकिस्तान से संदिग्ध नौका लेकर आ रहे कथित आतंकी को बीच समुद्र में ध्वस्त करने का भी उदाहरण दिया जा सकता है। यह भी बताने की कोशिश हो सकती है कि सरकार के एक-डेढ़ साल के कार्यकाल में कोई बड़ी आतंकी घटना नहीं हुई। इसी क्रम में परोक्ष रूप से इसकी भी याद दिलाई जा सकती है कि बिहार में वर्तमान सरकार के काल में ही यासीन भटकल और इशरतजहां के लिए नरमी बरती गई थी।
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