यूपी चुनावः इन धाकड़ नेताओं के आगे सब बेबस, अपने दम पर जीतते हैं चुनाव
इन नेताओं को किसी दल की आवश्यकता नहीं होती। ये अपने दम पर निर्दलीय चुनाव लड़ें तब भी जीत का ताज उनके ही सिर सजता है।
नई दिल्ली, [गुणातीत ओझा]। चुनाव में मजबूत दल का दामन थामने के लिए हर छोटा-बड़ा नेता बेताब रहता है। राजनैतिक दल भी नेताओं की मजबूती और जनता में उनकी लोकप्रियता का आंकलन करने के बाद ही उन्हें टिकट देते हैं। जब बात उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की आती है, तो यहां ऐसे धुरंधर नेता भी हैं जिनकी चुनावी जमीन सिर्फ उनका ही नाम जानती है। इन नेताओं को किसी दल की जरूरत नहीं होती। ये अपने दम पर बिना किसी दल के बैनर के चुनाव लड़ें तब भी जीत का सेहरा उनके सिर सजता है। शेर बहादुर सिहं, मुख्तार अंसारी, रघुराज प्रताप सिंह, अखिलेश कुमार सिंह, शिवेंद्र सिंह, राजा महेंद्र अरिदमन सिंह ये उत्तर प्रदेश की ऐसी शख्सियत हैं जिनका नाम ही चुनावी जीत को तय कर देता है।
रघुराज प्रताप सिंह
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने 1993 में हुए विधानसभा चुनाव से उत्तर प्रदेश की कुंडा सीट से राजनीति में कदम रखा था। तब से वह लगातार अजेय बने हुए हैं। राजा भैया 1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी समर्थित, तो 2002 और 2007, 2012 के चुनाव में एसपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए। राजा भैया को 1997 में भारतीय जनता पार्टी के कल्याण सिंह के मंत्रिमंडल में कबीना मंत्री, वर्ष 1999 व 2000 में राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह के कैबिनेट मे खेल कूद एवं युवा कल्याण मंत्री बनाया गया। साल 2004 में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव की सरकार में रघुराज प्रताप खाद्य एवं रसद विभाग के मंत्री बने। 15 मार्च, 2012 को राजा भैया पुनः उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। वर्तमान सरकार में रघुराज प्रताप सिंह खाद्य, रसद एवम् आपूर्ति विभाग के मंत्री हैं।
मुख्तार अंसारी
माफिया और गैंगेस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी गाजीपुर के हैं और मऊ सीट से चार बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। मुख्तार ने पहले दो चुनाव बसपा के टिकट से जीता और बाद में दो चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीते। मुख्तार 2007 में बसपा में शामिल हुए और 2009 का लोकसभा चुनाव वाराणसी सीट से लड़े, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। आपराधिक गतिविधियों के कारण बसपा प्रमुख मायावती ने मुख्तार को 2010 में पार्टी से निकाल दिया। बसपा से निकाले जाने के बाद मुख्तार ने अपने भाई अफजाल अंसारी के साथ मिल कौमी एकता दल नाम से नई पार्टी का गठन किया। विधायक मुख्तार अंसारी भाजपा के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के जुर्म में अभी जेल में हैं।
अखिलेश सिंह
गांधी परिवार ने अपने गढ़ में सियासी तौर पर सब हासिल किया, लेकिन एक मलाल रहा कि सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में वो कभी विधायक अखिलेश सिंह को नहीं हरा पाए। अखिलेश सिंह कभी कांग्रेस पार्टी के ही विधायक थे, लेकिन अखिलेश पर तमाम आपराधिक मामले दर्ज हुए और वो कांग्रेस से बाहर कर दिए गए। लेकिन तीन बार कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाले अखिलेश ने बाद में बतौर निर्दलीय और फिर पीस पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा का चुनाव रायबरेली की सदर सीट से जीता। अभी सिटिंग विधायक अखिलेश ने फैसला कर लिया कि, अब वो अपनी जगह अपनी बेटी को विधानसभा का चुनाव लड़ाएंगे। रायबरेली में नेताजी और विधायक जी के नाम से मशहूर अखिलेश सिंह के जलवे के आगे गांधी परिवार का जलवा हमेशा फीका रहा। खुद प्रियंका गांधी ने रायबरेली सदर विधानसभा क्षेत्र में घूम घूम कर उनको हराने के लिए खूब प्रचार किया, लेकिन अखिलेश बड़े अंतर से जीते। एक ज़माने में रायबरेली से खुद इंदिरा गांधी सांसद हुआ करती थीं।
राजा महेंद्र अरिदमन सिंह
आगरा की बाह विधानसभा सीट पर राजा महेंद्र अरिदमन सिंह का आधिपत्य लंबे अरसे से है। वे किसी भी पार्टी से चुनाव लड़े जीत उन्हें ही मिली। राजा महेंद्र अरिदमन सिंह इस वक्त समाजवादी पार्टी से विधायक हैं। लेकिन इतिहास देखें तो ये भाजपा और जनता दल से भी चुनाव लड़कर विधायक बन चुके हैं। वह इसी सीट पर 1993 में जनता दल, 1996 और 2002 में भाजपा से विधायक रह चुके हैं। उनके पिता महेंद्र रिपुदमन सिंह भी चार बाह बाह सीट से विधायक रह चुके हैं।
शेर बहादुर सिंह
विवादों में रहने वाले विधायक शेर बहादुर सिंह की राजनीतिक यात्रा में दल बदलने का किस्सा अजब ही है। जनता में उनकी पकड़ इस कदर है कि वे किसी भी पार्टी से लड़ें जीत उन्हें ही मिलती है। वे जलालपुर (अंबेडकर नगर) विधानसभा क्षेत्र से इस समय समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। इससे पहले शेर बहादुर सिंह घाट-घाट का पानी पी चुके हैं। वे लगभग सभी पार्टियों के साथ रहे। अंबेडकर नगर सीट पर 1980 में कांग्रेस, 1985 में निर्दलीय, 1996 में भाजपा और 2007 में बसपा से विधायक रह चुके हैं। अब चर्चा जोरों पर है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में वे सपा का दामन छोड़ भाजपा के साथ जुड़ गए हैं।
शिवेंद्र सिंह
वर्तमान में उत्तर प्रदेश की सिसवा (महराजगंज) सीट से विधायक शिवेंद्र सिंह इस समय समाजवादी पार्टी के नेता हैं। इनका राजनीतिक सफर भी कई दलों से होकर गुजरा है। जनता में अपनी धाक जमा चुके शिवेंद्र सिंह 1985, 1991 में कांग्रेस, 1996 में बसपा और 2002 में भाजपा की टिकट से विधानसभा चुनाव लड़े और जीत हासिल की।
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