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    डॉक्टर की खुली पोल, बिना लाइसेंस के 24 सालों से कर रहा था इलाज

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    Updated: Sat, 11 Jan 2014 05:12 PM (IST)

    देश की आर्थिक राजधानी में बिना डॉक्टरी लाइसेंस के वर्ष 1

    मुंबई। देश की आर्थिक राजधानी में बिना डॉक्टरी लाइसेंस के वर्ष 1988 से मरीजों का इलाज करने वाले एक मिथ्याचिकित्सक की पोल खुल गई है। सूचना के अधिकार के तहत महाराष्ट्र मेडिकल कॉउसिंल की ओर से उपलब्ध कराई गई जानकारी में मुंबई के जाने माने ऑथोपेडीक डॉक्टर एमएल सर्राफ के अवैध प्रैक्टिस की बात सामने आई है। 73 वर्षीय एक महिला की बेटी ने अपनी मां की मौत के लिए सर्राफ को कसूरवार ठहराते हुए उनके संबंध में आरटीआइ के तहत जानकारी जुटाने का साहस किया। आरटीआइ के माध्यम से एकत्रित जानकारी में इस मिथ्याचिकित्सक की पोल खुल गई।

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    महाराष्ट्र मेडिकल कांउसिंल के अध्यक्ष डॉ. किशोर तवरी ने मुताबिक कांउसिंल से बिना अनुमति के प्रैक्टिस करना मिथ्याचिकित्सक की श्रेणी में आता है। मुंबई हॉस्पीटल में प्रैक्टिस करने वाले जाने माने ऑर्थेपेडीक एमएल सर्राफ के संबंध में पूछे जाने पर डॉ. किशोर तवरी ने कहा कि बिना रजिस्ट्रेशन एवं लाइसेंस नवीनीकरण के प्रैक्टिस करना मिथ्याचिकित्सक की श्रेणी में आता है। एमएल सर्राफ के जुड़े दस्तावेजों की जांच में यह बात उजागर हुई कि 1988 के बाद से अब तक उन्होंने अपने रजिस्ट्रेशन का एक बार फिर नवीनीकरण नहीं कराया है। इन सबके बावजूद सर्राफ ने मुंबई के जाने माने केम हॉस्पीटल में एवं मुंबई हॉस्पीटल में अपनी सेवाएं दी है।

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    मुंबई निवासी नंदिनी सचदेव ने आरटीआइ के जरिये इस संबंध में पूरी जानकारी इकठ्ठा की। इसके साथ ही मुंबई के आजाद मैदान स्थित पुलिस स्टेशन में इस बाबत उन्होंने रिपोर्ट भी दर्ज कराई है। नंदिनी ने एमएल सर्राफ के साथ-साथ मुंबई हॉस्पीटल के पांच अन्य डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए 73 वर्षीय अपनी मां गीतिका घोष की 25 अक्टूबर, 2013 को हुई मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

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