छत्तीसगढ़ नसबंदी कांड : 15 फीट नीचे तहखाने में बन रही थी दवा
फैक्टरी रायपुर नगर निगम के रिकॉर्ड के मुताबिक अवैध है और राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के सूत्रों के मुताबिक फैक्टरी में दवा बनाने की गाइड-लाइन का पालन नहीं किया जा रहा है।
रायपुर। खम्हारडीह स्थित महावर फॉर्मा प्राइवेट लिमिटेड की दवा बिलासपुर के पेंडारी नसबंदी ऑपरेशन में इस्तेमाल में लाई गई थी। यह फैक्टरी रायपुर नगर निगम के रिकॉर्ड के मुताबिक अवैध है और राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के सूत्रों के मुताबिक फैक्टरी में दवा बनाने की गाइड-लाइन का पालन नहीं किया जा रहा है। लेकिन इन सबके बावजूद नगर निगम को नसबंदी कांड से पहले न तो इस फैक्टरी के बारे में पता था, न ही राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के इंस्पेक्टर्स ने लाइसेंस जारी करने के पहले कभी फैक्टरी का निरीक्षण किया।
हद तो तब है जब राज्य शासन ने टेबलेट सिप्रोसीन 500 एमजी, बैच नम्बर 14101सीडी, निर्माता मेसर्स महावर फार्मा प्रा.लिमि. खम्हारडीह की इस दवा को बैन किया और इससे पहले और बुधवार की सारी रात फैक्टरी संचालकों ने सबूत मिटाने की हर संभव कोशिश की। लेकिन 'नईदुनिया' के हाथ कुछ ऐसे सबूत लगे हैं, जो दवा निर्माता कंपनी को कठघरे में खड़ा करने के लिए काफी हैं। गुरुवार को निगम ने फैक्टरी को सील कर दिया है और राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने सभी दवाओं के सैंपल लेकर जांच के लिए प्रयोगशाला भिजवा दिया।
बुधवार को खम्हारडीह, वीआईवी स्ट्रीट स्थित महावर फार्मा प्रा.लि. की दवा को राज्य शासन ने प्रतिबंधित किया तो गुरुवार की सुबह ड्रग इंस्पेक्टर्स और नगर निगम जोन-2 कमिश्नर मौके पर पहुंच गए। जब संचालक रमेश महावर ने फैक्टरी दिखाई तो अफसरों के होश उड़ गए। क्योंकि यह फैक्टरी जमीन से 15 फीट नीचे तहखाने में संचालित हो रही थी।
न यहां से आवाज बाहर जा सकती है, न ही आने-जाने वाले पर शक की कोई गुंजाइश। सबकुछ तहखाने में होता था। सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक स्टाफ आता, अपना काम करता और चला जाता। दवा बनाने का कच्चा माल, टैबलेट बनाने की मशीनें, केमिकल और टेस्टिंग सबकुछ यहीं पर। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक महावर फॉर्मा 8-10 प्रकार की टेबलेट का निर्माण करती है और सभी दवाएं बिलासपुर, महासमुंद, जांजगीर चांपा और धमतरी क्षेत्रों में ही सप्लाई होती हैं।
महावर फॉर्मा की हकीकत
फैक्टरी में दवाइयों का निर्माण 1996 से जारी है। दवा में कौन से तत्व मिलाए जाने हैं, कितनी मात्रा में, दवा की टेस्टिंग सबकुछ 1 केमिस्ट के जिम्मे है, जिसका नाम संतोष है। पाउडर (दवा बनाने की सामग्री) को टेबलेट की शक्ल देने वाला स्टाफ मलिक चंद्राकर और हेमंत तांडी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं। मलिक ने तो कुछ नहीं बताया, लेकिन हेमंत ने कहा कि वह 10वीं पास है। अन्य कर्मचारी भी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं।
टॉयलेट के बाजू में होती है दवाओं की जांच
फैक्टरी में दवा बनाने के लिए जांच होती है यहा नहीं, यह बड़ा सवाल है, लेकिन दवाओं की जांच के लिए यहां साधारण-सा कमरा और कुछ उपकरण हैं। इसी कमरे में टॉयलेट है और जमीन पर पानी। ड्रग इंस्पेक्टर्स के मुताबिक टेस्टिंग लेबोरेट्री मानकों पर नहीं है, मशीनों की संख्या भी प्रोड्क्ट के मुताबिक कम है।
नहीं मिली दवाएं, कंट्रोल सैंपल जब्त किए
ड्रग इंस्पेक्टर जब सैंपल लेने महावर फार्मा प्रा. लि. के पते पर पहुंचे तो यहां पर एक भी दवा नहीं थी। सारी दवाएं मानो गायब कर दी गई थी, इस बात से इंस्पेक्टर चकित रह गए। लेकिन उन्होंने कंट्रोल सैंपल जब्त कर लिए, जिसे जांच के लिए भेजा जाएगा। ड्रग विभाग की टीम ने संचालक रमेश महावर से मैन्युफैक्चरिंग के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया, उससे जुड़े दस्तावेज मांगे हैं, जो फिलहाल मुहैया नहीं करवाए गए हैं। यह जानकारी भी मांग गई है कि वे कौन-कौन सी दवाएं बनाते हैं, दवाओं की सप्लाई कहां-कहां करते हैं, अब तक कहां-कहां की है। टेस्टिंग की प्रक्रिया क्या होती है। सभी स्टाफ के नाम-पते, बॉयोडाटा भी मांगे गए हैं।
सबूत मिटाने दवाओं में लगाई आग
फैक्टरी एक बड़े घर में हैं, जिसकी मालकिन हैं रमेश महावर की पत्नी कौशल महावर। यहां सिर्फ कार्यालय और गोदाम की अनुमति नगर निगम द्वारा दी गई, न की दवा फैक्टरी चलाने की। 'नईदुनिया' ने इस घर के बाहर चारों तरफ घूमकर पड़ताल की। पाया कि घर के ठीक पीछे बड़ी मात्रा में दवाइयां जला दी गई हैं। यह दवा है टेबलेट सिप्रोसीन 500 एमजी, जिसे बैन किया गया है।
आग बुधवार की देर रात ही लगाई गई होगी, क्योंकि इससे हल्का धुआं उठ रहा था। रात के अंधेरे में दवाइयां अच्छे से नहीं जलीं और कुछ रैपर सलामत बच गए, जो 'नईदुनिया' के पास मौजूद हैं, टेबलेट सिप्रोसीन 500 एमजी के। कुछ टैबलेट को तो रैपर से निकालकर भी नष्ट किया गया है। इससे साफ है कि सबूत मिटाए गए।
लाइसेंस है हमारे पास
जिला उद्योग केंद्र, ड्रग विभाग का लाइसेंस मेरे पास है और उसी के आधार पर हम फैक्टरी चला रहे हैं। हम शासकीय सप्लाई नहीं करते हैं, ट्रेडर्स वाले हमसे खरीदी कर सप्लाई करते हैं। हां, दो साल पहले हमारी एक दवा का एक बैच टेस्टिंग में फेल हो गया था, दवा नहीं। (रमेश महावर के बेटे सुमित महावर ने यह भी कहा कि दवा खाने से कोई मरता थोड़ी न है, यह सबकुछ मंत्री, अफसरों को बचाने की कोशिश है।)
रमेश महावर, संचालक, महावर फॉर्मा प्राइवेट लिमिटेड
फैक्टरी अवैध है
यहां गोदाम और कार्यालय की अनुमति थी, दवा फैक्टरी की नहीं। लेकिन यहां दवाइयों की मैन्युफैक्चरिंग चल रही है, जो अवैध ही है। पूरी फैक्टरी सील कर दी गई है।
राजकुमार डोंगरे, आयुक्त जोन-2, नगर निगम रायपुर
ये हैं सीधे-सीधे जिम्मेदार
रायपुर नगर निगम प्रशासन-नगर निगम को अपनी सीमा में चल रही दवा निर्माता कंपनी महावर फॉर्मा प्राइवेट लिमिटेड के बारे में जानकारी ही नहीं थी। आखिर क्यों? राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग- आखिर राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने महावर फॉर्मा प्राइवेट लिमिटेड को कैसे दे दिया दवा बनाने का लाइसेंस? क्या लाइसेंस घर बैठे दे दिया गया, सिर्फ दस्तावेजों को देखकर, तो क्या विभागीय अफसरों पर नहीं होनी चाहिए कार्रवाई?

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